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आंखों का डॉक्टर जो नहीं बनना चाहता था राष्ट्रपति, जिसकी ताजपोशी के लिए बदले गए नियम... बशर अल असद की कहानी

दमिश्क की सड़क पर जहां जश्न-ए-आजादी का शोर है, उसी के बीच में खड़े होकर समय में पीछे की ओर झांक कर देखें तो तकरीबन 25 साल पहले का वो पूरा दौर सिलसिलेवार तरीके से आंखों के आगे घूम जाता है. साल था 2000, अपने पिता हाफ़िज़ अल-असद की मौत के बाद बशर के हाथ सत्ता की चाबी आई थी. उन्होंने इसे संभाला भी, लेकिन आज वह देश छोड़कर भाग गए हैं.

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 08 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 6:37 PM IST

सीरिया के इतिहास में रविवार का दिन ऐतिहासिक साबित हुआ. 13 साल का संघर्ष रंग लाया, बशर अल-असद की तानाशाह सत्ता का खात्मा हुआ, बीते पांच दशकों से एक ही परिवार के केंद्र में रही सत्ता की परिपाटी बदल गई. यह दिन न केवल 13 वर्षों से चले आ रहे विनाशकारी युद्ध का अंत है, बल्कि बशर अल-असद के 24 वर्षों के सत्तावादी शासन का भी अंत माना जा रहा है. अब सत्ता पर विद्रोही ताकतों का कब्जा है और राजधानी दमिश्क की सड़कों पर हजारों लोग जश्न मनाने के लिए जुटे हैं. जो अब मान रहे हैं कि वे आजाद हैं.

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कहानी बशर अल-असद की
दमिश्क की सड़क पर जहां जश्न-ए-आजादी का शोर है, उसी के बीच में खड़े होकर समय में पीछे की ओर झांक कर देखें तो तकरीबन 25 साल पहले का वो पूरा दौर सिलसिलेवार तरीके से आंखों के आगे घूम जाता है. साल था 2000, अपने पिता हाफ़िज़ अल-असद की मौत के बाद बशर के हाथ सत्ता की चाबी आई थी. उन्होंने इसे संभाला भी, लेकिन आज वह देश छोड़कर भाग गए हैं. रिपोर्टों के अनुसार, उन्होंने किसी अनजान जगह पर शरण ली है. यह घटना उनके परिवार के 53 साल लंबे शासन का अंत है, जिसने दशकों तक सीरिया पर सख्ती से शासन किया.

कहने को तो असद शासन अब नहीं रहा, उसका खात्मा हुआ, लेकिन अब सीरिया का क्या? वह तो अब भी संघर्ष, विनाश और अनिश्चित भविष्य की चुनौतियों से जूझ रहा है. लाखों सीरियाई नागरिक, जिन्होंने युद्ध के दौरान अपने घर खोए, अब यह सोचने पर मजबूर हैं कि आगे क्या होगा.

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बशर अल-असद को शुरुआत में एक नेता के रूप में देखा भी नहीं गया था. उन्होंने लंदन में बतौर आई सर्जन ट्रेनिंग ली थी, और पॉलिटिक्स जिससे उनका तबतक दूर-दूर से नाता नहीं था और न उन्होंने इस बारे में सोचा था, एक दिन यूं ही अचानक इस सत्ता की चाबी उनके हाथ में आ गिरी, जब उनके बड़े भाई बासिल की मौत हुई और अब असद के लिए राजनीति में आना जरूरी हो गया. 

सत्ता किस कदर इस आंख के डॉक्टर को अपना बनाना चाहती थी इसकी एक बानगी देखिए, साल 2000 में जब उनके पिता हाफ़िज़ अल-असद की मौत हुई तब बशर अल-असद को सत्ता संभालने के लिए वापस बुलाया गया. जब उन्हें यह जिम्मेदारी दी जा रही थी, उस समय उनकी उम्र केवल 34 वर्ष थी. वह राष्ट्रपति बन सकें इसके लिए सीरियाई संसद ने न्यूनतम आयु सीमा 40 से घटाकर 34 कर दी. तब बशर ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में 97% से अधिक वोट हासिल किए.

हालांकि उनके शांत और रिजर्व स्वभाव ने कुछ लोगों में राजनीतिक सुधार की उम्मीदें जगाईं, लेकिन असद का शासन जल्दी ही उनके पिता की तानाशाही के ही प्रतिबिंब के रूप में सामने आया.

विद्रोह की चिंगारी
2011 में अरब स्प्रिंग की लहर ने पूरे क्षेत्र को हिला दिया. सीरिया में भी लोग सड़कों पर उतरे और लोकतंत्र, नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक बंदियों की रिहाई की मांग करने लगे. बशर अल-असद ने इन विरोधों को विदेशी साजिश बताया और प्रदर्शनकारियों को आतंकवादी करार दिया. उनकी सेना ने प्रदर्शनकारियों पर हिंसक कार्रवाई की, जिससे विरोध तेज हो गया. जल्द ही, यह शांतिपूर्ण आंदोलन एक बड़े सशस्त्र संघर्ष में बदल गया.

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...और फिर भड़कती गई जंग
2012 तक, सीरियाई सेना ने विद्रोहियों के खिलाफ हवाई हमलों और भारी हथियारों का इस्तेमाल शुरू कर दिया. इस संघर्ष ने देश को खंड-खंड कर दिया. रूस और ईरान जैसे देशों ने असद को अपने राजनीतिक और सैन्य समर्थन के जरिए सत्ता में बनाए रखा. हिज़बुल्लाह जैसे ईरानी-समर्थित समूहों ने भी इस संघर्ष में भूमिका निभाई. असद सरकार पर मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन का आरोप लगाया गया. उन पर हजारों लोगों को मारने, राजनीतिक बंदियों को यातनाएं देने और रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल करने के गंभीर आरोप लगे.

2018 में रासायनिक हथियार निषेध संगठन ने यह पुष्टि की कि डौमा में हुए हमलों में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल असद सरकार द्वारा किया गया था. 2023 में फ्रांस ने बशर अल-असद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय गिरफ्तारी वारंट जारी किया. साथ ही, संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने सीरिया सरकार को यातनाएं और अमानवीय व्यवहार रोकने का आदेश दिया.

अरब लीग में वापसी और बदलाव की उम्मीद
2023 में, असद को अरब लीग में फिर से शामिल किया गया, जिससे उनकी अंतरराष्ट्रीय स्थिति मजबूत हुई. लेकिन देश के भीतर स्थिति जस की तस बनी रही. आर्थिक संकट, मानवीय आपदाएं और राजनीतिक अस्थिरता ने सीरिया को जकड़ रखा था. पिछले 10 दिनों में सीरिया में अचानक तेजी से बदलाव आया. विद्रोही बलों ने बड़ी तेजी से कई प्रमुख शहरों पर कब्जा कर लिया. इस दौरान, असद के सहयोगी देशों जैसे रूस और ईरान अपने-अपने संघर्षों में व्यस्त थे.

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यह स्थिति असद सरकार के पतन का कारण बनी. रविवार को विद्रोहियों ने दमिश्क पर कब्जा कर लिया, और रिपोर्टों के अनुसार, बशर अल-असद देश छोड़कर भाग गए. असद के जाने के बाद, सीरिया में एक नए युग की शुरुआत होने की संभावना है. विद्रोही नेताओं और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब देश को लोकतंत्र और स्थिरता की ओर ले जाने का समय है. सीरियाई नेटवर्क फॉर ह्यूमन राइट्स के निदेशक फादेल अब्दुलगनी ने कहा, "यह दशकों से चले आ रहे उत्पीड़न और विनाश का अंत है. हमें उम्मीद है कि यह एक लोकतांत्रिक सीरिया की नींव रखने का अवसर बनेगा."

भविष्य की चुनौतियां और उम्मीदें
सीरिया के पुनर्निर्माण का काम आसान नहीं होगा. युद्ध के दौरान देश का बुनियादी ढांचा पूरी तरह से तबाह हो चुका है. लाखों लोग विस्थापित हैं और देश का आर्थिक संकट गहराता जा रहा है.
फिर भी, लोग भविष्य के प्रति आशान्वित हैं. जश्न मनाने वाले लोग सिर्फ असद के पतन का जश्न नहीं मना रहे थे, बल्कि उस उम्मीद का भी जश्न मना रहे थे कि उनका देश अब एक नए रास्ते पर चलेगा.

सीरिया को है कुछ बेहतरी की उम्मीद
असद के शासन ने सीरिया को अस्थिरता और विनाश की ओर धकेल दिया. लेकिन अब देश के नागरिक, जिनमें कई ऐसे हैं जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी संघर्ष में बिताई है, उम्मीद कर रहे हैं कि यह बदलाव एक नए और बेहतर भविष्य की शुरुआत होगी.दमिश्क के एक प्रदर्शनकारी ने कहा, "यह बदलाव केवल सत्ता परिवर्तन नहीं है. यह हमारी पहचान और हमारे भविष्य की दिशा तय करने का अवसर है."  इस उम्मीद और चुनौतियों के बीच, सीरिया एक बार फिर खड़ा होने की कोशिश कर रहा है. क्या यह देश लोकतंत्र और शांति की दिशा में आगे बढ़ेगा, यह आने वाले समय में स्पष्ट होगा.

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