
वास्तविक सीमा नियंत्रण (एलएसी) पर यांगत्से इलाके में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प के बाद एक बार फिर से भारत का चीन के साथ सीमा विवाद गहराता नजर आ रहा है. अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सेना की चीनी सैनिकों से झड़प के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बैठक बुलाई है.
सेना के सूत्रों के अनुसार, 9 दिसंबर को 300 से ज्यादा चीनी सैनिकों ने 17 हजार फीट की ऊंचाई पर भारतीय चोटी की ओर बढ़ने की कोशिश की. हालांकि, भारतीय सैनिकों ने सभी चीनी सैनिकों के मंसूबों पर पानी फेरते हुए खदेड़ दिया.
चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताकर अपना दावा पेश करता रहा है. चीन ने पिछले साल ही अरुणाचल प्रदेश के 15 इलाकों के नाम बदल दिए थे. भारत सरकार ने इस पर सख्त आपत्ति जताई थी. भारतीय विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है और रहेगा. चीन ने अप्रैल 2017 में भी इस तरह से नाम बदलाने की कोशिश की थी.
तो आइए जानते हैं अरुणाचल प्रदेश में चीन के साथ क्या है सीमा विवाद
अरुणाचल प्रदेश को लेकर भारत और चीन के बीच लंबे समय से विवाद रहा है. भारत की चीन के साथ लगभग 3500 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है. इसे वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी कहा जाता है. अरुणाचल प्रदेश को चीन दक्षिणी तिब्बत बताते हुए इसे अपनी जमीन होने का दावा करता है. तिब्बत को भी चीन ने 1950 में हमला कर अपने में मिला लिया था. भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार, चीन अरुणाचल प्रदेश की करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर पर अपना दावा करता है.
चीन के साथ सीमा साझाकरण को तीन सेक्टर्स में बांटा गया है. पहला- पूर्वी, दूसरा- मध्य और तीसरा- पश्चिमी. अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम ईस्टर्न यानी पूर्वी सेक्टर में सीमा साझा करता है. इसकी लंबाई 1346 किमी है. उत्तराखंड और हिमाचल मिडिल सेक्टर में तो लद्दाख पश्चिमी सेक्टर में चीन के साथ सीमा साझा करता है.
चीन और भारत के बीच मैकमोहन रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा माना जाता है. अंतरराष्ट्रीय मानचित्र में भी अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा माना गया है. लेकिन चीन इससे इनकार करते हुए दावा करता है कि तिब्बत (जो वर्तमान में चीन का हिस्सा है) के दक्षिणी हिस्से अरुणाचल प्रदेश पर भारत का कब्जा है. तवांग मठ भी अरुणाचल प्रदेश में ही है, जहां छठे दलाई लामा का जन्म 1683 में हुआ था.
1912 तक कोई सीमा रेखा नहीं
दरअसल, 1912 तक भारत और तिब्बत के बीच कोई सीमा रेखा नहीं थी. क्योंकि यह क्षेत्र न ही कभी अंग्रेजों का और न ही कभी मुगलों के अधीन रहा. लेकिन साल 1914 में अरुणाचल प्रदेश में प्रसिद्ध बौद्ध स्थल तवांग मठ मिलने के बाद सीमा निर्धारित करने का फैसला किया गया.
उसके बाद 1914 में शिमला समझौते के तहत तिब्बत, चीन और ब्रिटिश अधिकारियों के साथ बैठक में सीमा निर्धारण करने का फैसला किया गया. शिमला समझौते में भी चीन ने हर बार की तरह तिब्बत को स्वतंत्र देश नहीं माना. वहीं कमजोर राष्ट्र देखते हुए ब्रिटिश अंग्रेजों ने दक्षिणी तिब्बत और तवांग को भारत में मिलाने का फैसला किया.
दक्षिणी तिब्बत और तवांग को भारत में मिलाये जाने से नाराज चीन ने बैठक का बहिष्कार कर दिया था. हालांकि वहां के नागरिकों ने इसे स्वीकार कर लिया. बाद में चीन ने 1950 में तिब्बत पर हमला बोलकर अपने में मिला लिया. चूंकि तिब्बत में बौद्ध धर्मों को मानने वाले अधिक थे. इसलिए चीन चाहता था कि बौद्धों के दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल तवांग पर उसका अधिकार रहे. इसलिए चीन बार-बार अरुणाचल प्रदेश को चीन का हिस्सा बताता है.
भारत ने दी थी कड़ी प्रतिक्रिया
दिसंबर 2021 में चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी का मुखौटा माने जाने वाला ग्लोबल टाइम्स ने एक रिपोर्ट में कहा था कि चीन सरकार ने अरुणाचल प्रदेश के 15 इलाकों के चीनी, तिब्बती और रोमन नाम जारी किया है. रिपोर्टस में ग्लोबल टाइम्स ने दावा किया था कि चीन ने जांगनान (अरुणाचल प्रदेश का चीनी नाम) के रिहाइशी स्थानों, नदी और पहाड़ समेत कुल 15 इलाकों के नाम बदले हैं.
इस पर विदेश मंत्रालय ने प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि ऐसा पहली बार नहीं है जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश का नाम बदलने की कोशिश की है. विदेश मंत्रालय ने साफ करते हुए कहा था कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा. नए नाम रख देने से तथ्य नहीं बदल जाता.
भारतीय नेताओं के अरुणाचल दौरे का करता है विरोध
अरुणाचल प्रदेश को लेकर अपना दावा मजबूत करने के लिए चीन समय-समय पर भारतीय नेताओं के अरुणाचल दौरे का भी विरोध करता रहता है. चीन की ओर से इस आपत्ति पर भारत हमेशा से कहता रहा है कि अरुणाचल प्रदेश भारत के अन्य राज्यों के तरह ही है. इसलिए भारतीय नेताओं के अरुणाचल दौरे पर सवाल उठाना कहीं से तर्कशील नहीं है.
अक्टूबर 2021 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया था. इस पर चीन ने आपत्ति जताते हुए था कि भारत ऐसा कोई भी काम न करे, जिससे सीमा विवाद और बढ़े. इससे पहले भी चीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अरुणाचल दौरे का विरोध किया था. चीन ने गृह मंत्री अमित शाह के दौरे पर भी आपत्ति जताई थी.