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क्या समंदर भी बिकाऊ है? जानें खरीददार अपने हिस्से के समुद्र में क्या-क्या कर सकता है

जमीन के दाम काफी बढ़ चुके. यहां तक कि जमीन का कोई हिस्सा बाकी न होने के चलते कई देश पानी में हाउसबोट जैसे कंसेप्ट पर जाने लगे हैं. तो क्या आगे चलकर हम समुद्र का टुकड़ा भी खरीद सकेंगे, जैसे अभी जमीन खरीदते हैं! इसका जवाब काफी उलझा हुआ है. बहुत सारे मुल्क समुद्र पर मालिकाना हक को लेकर काफी हंगामा करते रहे.

समुद्र पर भी जमीन से कम विवाद नहीं. सांकेतिक फोटो (Unsplash) समुद्र पर भी जमीन से कम विवाद नहीं. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 14 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 7:44 PM IST

सत्तर के दशक में एक किताब ने हड़कंप मचा दिया था. मार्केट फॉर लिबर्टी नाम की इस बुक में लिखा था- 'जब तेल के लिए जमीन के हर हिस्से को खोदा जा रहा है तो कोई वजह नहीं, जो बड़े हिस्से को इसलिए छोड़ दिया जाए क्योंकि वो पानी के नीचे दबा हुआ है'. बात समंदर की हो रही थी. उसपर कब्जे की हो रही थी.

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इस तरह के नियम बने
देश लुक-छिपकर तो समुद्र पर अपने दावे का खेल रच रहे थे, लेकिन फिर खुलकर सामने आने लगे. कोई समुद्र छीनने की कोशिश करने लगा. कोई इसे बेचने की. तो कोई खरीदने की. समुद्र को लेकर मचे इसी झगड़े के बाद अस्सी की शुरुआत में कई पक्के नियम बने, जो तय करते हैं कि कोई देश कितनी दूर तक के समंदर को अपना कह सकता है.

क्या है पहली सीमा का नियम
यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन ऑन लॉ ऑफ द सी (UNCLOS) के मुताबिक देश की जमीनी सीमा से लगभग 12 मील यानी लगभग 22 किलोमीटर तक की समुद्री दूरी उसकी अपनी है. इस सीमा पर कोई भी देश, उसके जहाज या लोग बिना इजाजत नहीं आ सकते. अगर कोई चेतावनी के बाद भी ऐसा करे तो उसे मार गिराया जा सकता है, या गिरफ्तार किया जा सकता है. इस सीमा के भीतर आने को देश में घुसपैठ की तरह देखा जाता है. 

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ये है दूसरी सीमा
इसके बाद के 2 सौ मील यानी लगभग पौने 4 सौ किलोमीटर का हिस्सा भी देश का अपना समुद्री टुकड़ा है. ये इकनॉमिक जोन है, जिसपर किसी तरह के व्यापार, मछली-पालन, खनन का फायदा उसी देश को मिलता है. मछुआरे यहां मछलियां पकड़ सकते हैं, लेकिन इस सीमा से बाहर जाने पर गिरफ्तारी का डर रहता है. बीच-बीच में ऐसे कई मामले आते हैं, जिसमें गलती से सीमा का अतिक्रमण होने पर मछुआरों को उस देश की सरकार ने जेल में डाल दिया. तब ये साबित करना होता है कि आपने जानबूझकर ऐसा नहीं किया. 

अस्सी की शुरुआत में कई नियम बने, जो तय करते हैं कि कोई देश कितनी दूर तक समंदर को अपना कह सकता है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

इनके अलावा एक तीसरी सीमा भी है
इसके तहत देश अगर ये साबित कर सके कि समुद्र के कुल 220 मील दूरी के बाद का भी हिस्सा उसके हक का है, तो इसपर उसका अधिकार माना जा सकता है. ये द्वीपों के मामले में ही माना जाता है. जैसे कई द्वीपों से मिलकर बना देश किसी उजाड़ द्वीप पर भी अपना दावा करता है, जो उसकी समुद्री सीमा के आसपास हो, या फिर जहां की वनस्पति उसकी वनस्पति से मिलती हो, तो ये क्लेम भी मान लिया जाता है. 

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चीन हरदम रहा विवादों में
इसके बाद के हिस्से पर किसी एक देश नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का अधिकार रहता है. इसपर अगर कोई विवाद हो तो उसका निपटारा संयुक्त राष्ट्र के जरिए हो सकता है. मिसाल के तौर पर चीन को लें तो वो समुद्र के बड़े हिस्से पर अपना हक जताता है. यहां तक कि वो दूसरे देशों की सीमा पर भी घुसपैठ की कोशिश करता रहा. इंडोनेशिया, फिलीपींस, वियतनाम जैसे देश इसपर लगातार आपत्ति जताते रहे. इस विवाद को दक्षिणी चीन सागर विवाद कहते हैं. चीन पर आरोप है कि वो समुद्र के उपजाऊ हिस्से को हड़पकर पैसे कमाना चाहता है. वहीं चीन मानता है कि कानून के तीसरे नियम के मुताबिक बड़ा समुद्र उसका है. फिलहाल विवाद चल ही रहा है. 

क्या समुद्र खरीदा जा सकता है?
इसकी शुरुआत हम चीन से ही करते हैं. मई 2019 में वहां की एक महिला ने दावा किया कि उसके प्रेमी ने उसे समुद्र का अच्छा-खासा बड़ा हिस्सा खरीदकर तोहफे में दिया. भारतीय मुद्रा में लगभग सवा करोड़ रुपए लगाकर उसने चाइनीज कोस्ट के पास 2 सौ हैक्टेयर समुद्र खरीदा. महिला ने चीन के सोशल मीडिया पर इसकी रसीद भी शेयर की थी. इसके बाद तो चीन में इसपर बहस छिड़ गई.

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कई वकीलों ने माना कि Cheniushan नाम के द्वीप के करीब का ये समुद्री हिस्सा मछली पालन करने वाली एक कंपनी का था. उसने ये टुकड़ा महिला के प्रेमी को बेच दिया. तो एक तरह से जमीन अब महिला की थी, हालांकि वकीलों ने ये भी माना कि सरकार जब चाहे समुद्री हिस्से पर कब्जा कर सकती है क्योंकि समुद्र खरीदना गैरकानूनी प्रैक्टिस है. अनुमान लगाया गया कि चीन की सरकार ने उस जगह को कंपनी को लीज पर दिया होगा, और उसी पीरियड में कंपनी ने उसे किसी दूसरे क्लाइंट को बेच दिया. 

बंदरगाह लीज पर दिए जा सकते हैं. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

लीज पर लेनदेन संभव
समुद्री नियमों के मुताबिक, समुद्र को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता. हां, उस देश की सरकार चाहे तो किसी खास हिस्से को लीज पर दे सकती है. ये निश्चित समय के लिए होता है. लीज का समय खत्म होते ही नए सिरे से पैसे देने होंगे. या फिर देश चाहे तो समुद्र को लीज पर देने से इनकार भी कर सकता है. 

लाइसेंस भी मिल सकता है
कई बार एक ही समुद्री टुकड़े पर कई अलग-अलग कंपनियों को अलग-अलग कामों का लाइसेंस मिलता है. जैसे कोई मत्स्यपालन कर सकता है. कोई एक्वेटिक प्लांट लगा सकता है. इसे एक्वाक्लचर कहते हैं. इससे जो भी फायदा होगा, वो कंपनी के हिस्से जाएगा. लेकिन इसपर भी कई शर्तें होती हैं, जैसे किसी भी काम से समुद्र को कोई नुकसान नहीं हो, वरना लाइसेंस रद्द हो जाता है. 

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बहुत से देश अपने बंदरगाहों को लीज पर देते हैं. इससे वहां सीमा पर लगने वाले जहाज जो भी टैक्स देंगे, वो खरीदार को मिलेगा. ये शुद्ध तौर पर व्यापारिक सौदा होता है. इससे ये नहीं होता है कि उस देश की 12 मील की एक्सक्लुजिव समुद्री सीमा पर खरीदार को हक मिल जाए. जैसे अगर श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को लें तो सारा झगड़ा इसी बात का था. आशंका जताई जा रही थी कि चीन लीज पर लेने के बहाने श्रीलंकाई समुद्री सीमा भी हथिया लेगा, फिर वहां अपने सैनिक तैनात कर देगा और श्रीलंका के साथ-साथ दूसरे देश भी खतरे में आ जाएंगे. 

समुद्र के नीचे की जमीन की खरीदी-बिक्री भी काफी घालमेल वाली है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

समुद्री सीमा सीधे-सीधे देश की सुरक्षा से जुड़ी है इसलिए लगभग सभी देश इसपर काफी सख्त रहे. हालांकि अमेरिका के दो राज्य ऐसे भी हैं, जो समुद्र का टुकड़ा बेचते हैं. मेसाच्युसेट्स और मेन के स्टेट लॉ चैप्टर 91 में जिक्र है कि उसके लोग चाहें तो समुद्र खरीद सकते हैं, लेकिन इसके 3 ही मकसद होने चाहिए- मछलियां पकड़ना, चिड़िया पकड़ना और घूमना-फिरना. लेकिन सेंटर के नियमों से अलग होने के कारण इसपर काफी विवाद रहा और किसी ने भी समुद्र का लेनदेन नहीं किया. 

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क्या समुद्र के नीचे जमीन खरीदी जा सकती है?
इसका जवाब हां और न दोनों के बीच है. किसी समय में सेन फ्रांसिस्को, सिएटल, टोक्यो और हांगकांग जैसे बड़े शहरों के समुद्र से सटी जमीन को बेचा जाने लगा था. इसके कुछ हिस्से पानी में डूबे तो रहते थे, लेकिन ये गहरा पानी नहीं था. इसे एक्सटेंडेड जमीन की तरह देखा गया. सरकार और प्रॉपर्टी इनवेस्टर्स मानने थे कि कोई तकनीक लगाकर यहां बढ़िया घर-दफ्तर बन सकते हैं. इसी बीच ग्लोबल वार्मिंग बढ़ी और समुद्र का स्तर बढ़ने लगा. जो जमीन उथले पानी में थीं, वो डूबने लगीं. इसके बाद से अंडरवॉटर लैंड पर खास काम नहीं हुआ. हां, पानी के भीतर रिजॉर्ट, होटल जरूर होते हैं, जो टूरिज्म डिपार्टमेंट या प्राइवेट मालिकों के होते हैं. ये दूसरा स्ट्रक्चर है, जो समुद्र के नीचे की जमीन से बिल्कुल अलग काम करता है.

 

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