
खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के भारत पर आरोप लगाने के बाद से दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों में खटास बढ़ गई है. कनाडा और भारत दोनों ने एक दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित कर दिया है. इस मामले ने इतना तूल पकड़ लिया कि भारत ने कनाडा के नागरिकों की वीजा सर्विस सस्पेंड कर दी.
लेकिन यहां बड़ा सवाल ये है कि कनाडा में खालिस्तानी तत्व सक्रिय क्यों हैं? ऐसे में इंडिया टुडे ने भारत और कनाडा के पत्रकारों, अकादमिकों और विश्लेषकों से बातकर इस समस्या की जड़ जानने की कोशिश की.
असल वास्तविकता नजरअंदाज
कनाडा में 20 लाख प्रवासी भारतीय रहते हैं जिनमें लगभग आठ लाख सिख हैं लेकिन कनाडा में रह रहे सिखों की एक छोटी आबादी खालिस्तानी समर्थक है. 80 और 90 के दशक में हजारों खालिस्तानी समर्थक भारत छोड़कर पश्चिमी देशों में बस गए थे.
कनाडा के ब्रॉम्पटन में रहने वाले एक पत्रकार इशरत सिंह बनवेत ने बताया कि पंजाब छोड़ चुके कई चरमपंथी अब कनाडा में बसे हुए हैं. इनकी उम्र भी अब बहुत हो गई है. लेकिन अभी भी भारत को लेकर उनके मन में नफरत बनी हुई है. इतना ही नहीं उन्होंने नफरत के ये बीज युवा पीढ़ियों में भी भरने शुरू कर दिए हैं.
बनवेत कहते हैं कि यह नई पीढ़ी भारत और पंजाब की वास्तविकता से वाकिफ नहीं है, जहां सिख और हिंदू एक साथ मिलकर खुशी से साथ रहते हैं. ये लोग भ्रम के बीच रह रहे हैं.
गुरुद्वारे की राजनीति
कनाडा के कई शहरों में सिखों की आबादी बहुत अधिक है और गुरुद्वारे इस समुदाय का केंद्रबिंदु है. खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर सर्रे में गुरुद्वारे का अध्यक्ष था. कनाडा के पीएम ने निज्जर की हत्या के पीछे भारतीय एजेंसियों का हाथ बताया है. 45 साल के हरदीप को इस साल जून महीने में गुरुद्वारे के बाहर दो नकाबपोश बंदूकधारियों ने गोली मार दी थी.
पंजाब के बंगा के सिख नेशनल कॉलेज में पंजाब के पूर्व प्रोफेसर हरपाल सिंह बताते हैं कि कनाडा के गुरुद्वारा पैसे और चरमपंथियों के प्रभुत्व का टूल बन गए हैं. इन गुरुद्वारों को नियंत्रित करने से उन्हें अपनी पहचान स्थापित करने में मदद मिलती है.
वह कहते हैं कि कुछ चरमपंथी अपनी उपस्थिति बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं. उनका मानना है कि भारत के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार करने से उन्हें मदद मिलेगी लेकिन यह उनकी गलती है.
जनमत संग्रह को लेकर कनाडा का रुख
नई दिल्ली में जी20 समिट से इतर कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी. उन्होंने भारत कनाडा संबंधों पर चर्चा की थी और खालिस्तानी मुद्दे पर भी विचार-विमर्श किया था.
ट्रूडो ने मोदी से मिलने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि कनाडा हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विवेक की आजादी और शांतिपूर्ण विरोध की स्वतंत्रता की रक्षा करेगा और यह हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है. हम हिंसा और नफरत के खिलाफ भी खड़े हैं.
कनाडा की उदारवादी मानसिकता भी खालिस्तानी आंदोलन का कारण है. इशरत कहते हैं कि खालिस्तान चरमपंथ भारत के लिए मुद्दा है लेकिन कनाडा के लिए नहीं है. इस वजह से कनाडा सरकार इसे खत्म करने की जहमत नहीं उठा रही. यहां तक कि कनाडाई सरकार ने क्यूबेक को कनाडा से अलग करने के लिए जनमत संग्रह की भी मंजूरी दे दी. यह दिखाता है कि कनाडा की विचारधारा कितनी उदारवादी है.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अभिव्यक्ति की आजादी और पश्चिमी सरकारों की नजरअंदाजी ने अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में भारत विरोधी भावनाओं को पनपने में मदद की है.
कम संख्या में है खालिस्तानी
हाल के सालों में कनाडा जाकर पढ़ाई करने वाले छात्रों में सर्वाधिक संख्या भारत के छात्रों की है. पिछले साल भारत के 226450 छात्र पढ़ाई के लिए कनाडा गए थे, जिनमें एक बड़ी आबादी पंजाब के छात्रों की थी.
कनाडा के एक स्थानीय निवासी ने कहा कि कुछ मुट्ठीभर चरमपंथी छात्रों में भारत के खिलाफ नफरत घोल रहे हैं. जब छात्र कनाडा पहुंचते हैं तो उनके मन में भारत को लेकर हमदर्दी होती है लेकिन चरमपंथी इन छात्रों का ब्रेनवॉश करते हैं और इनमें गुरुद्वारों की अहम भूमिका है. ऐसे में कहा जा सकता है कि ये सभी फैक्टर खालिस्तानी आंदोलन की लौ जलाए हुए हैं.