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भारत से पंगा, खालिस्तानी प्रोपेगेंडा और ट्रंप का कोप... कनाडा में ट्रूडो का गेम ऐसे हुआ फिनिश

Justin Trudeau Resign: जस्टिन ट्रूडो का इस्तीफा देने का ऐलान कनाडा की राजनीति में चल रहे घटनाक्रमों का स्वभाविक नतीजा है. ट्रूडो अपने घरेलू चुनौतियों से निपटने के बजाय लगातार खालिस्तानी पॉलिटिक्स को शह देते रहे. महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर विपक्ष उनको लगातार घेर रहा था. ट्रंप उन निशाना साध रहे थे लेकिन ट्रूडो कहीं सफल नहीं हो पा रहे थे. कई मुश्किलों में घिरे ट्रूडो ने अब ये कदम उठाया है.

जस्टिन ट्रूडो जस्टिन ट्रूडो
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 06 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 12:04 AM IST

खालिस्तानी प्रोपगेंडा और भारत विरोधी एजेंडा के दम पर अपनी राजनीति चमकाने वाले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के दिन पूरे हो गये हैं. लोकप्रियता में कमी और अपनी ही पार्टी में आंतरिक असंतोष जैसी वजहों के कारण  ट्रूडो को इस्तीफा देना पड़ा है.

ट्रूडो ने 2013 में लिबरल नेता का पद संभाला था, जब पार्टी गहरे संकट में थी और पहली बार हाउस ऑफ कॉमन्स में तीसरे स्थान पर आ गई थी. ट्रूडो ने दो साल तक कनाडा में धुआंधार कैम्पेन किया और अक्टूबर 2015 में जब कनाडा में चुनाव हुए तो उन्हें ट्रूडो को शानदार जीत मिली. इस चुनाव में लिबरल को 338 सीटों में से 184 सीटों पर जीत मिली. जबकि ट्रूडो की पार्टी को लोकप्रिय मतों का 39.5 फीसदी मिला. ये एक मजबूत  और ताकतवर सरकार थी.

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ट्रूडो की जीत कितनी बड़ी थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2011 के चुनाव में उनकी पार्टी को मात्र 34 सीटें मिली थी. जबकि 2015 के चुनाव में लिबरल पार्टी को 184 सीटें मिलीं. 

इसके बाद ट्रूडो ने 2019 और 2021 के चुनावों में भी जीत हासिल की. लेकिन हर जीत के साथ ट्रूडो की नीतियों पर पकड़ कमजोर होती गई और कंजरवेटिव पार्टी हावी होती गई. अब स्थिति ये आ चुकी है कि ट्रूडो को अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा है. 

खालिस्तानी प्रोपगेंडा, भारत विरोधी एजेंडा

कनाडा में ट्रू़डो की राजनीति खालिस रूप से भारत के खिलाफ रही है. ट्रूडो कनाडा की जमीन से भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने वाले हार्डकोर खालिस्तानियों को चुपचाप न सिर्फ बर्दाश्त किया बल्कि वहां की पुलिस ने उन्हें कानूनी संरक्षण भी दिया. कनाडा में जब भारत की पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या को आपत्तिजनक रुप में दिखाया गया तो वहां की पुलिस चुप रही. कनाडा में हिन्दुओं के मंदिरों पर हमले हुए तो भी वहां पुलिस चुप रही. 

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विकसित देशों के कतार में शामिल ट्रूडो से ये उम्मीद की जा रही थी कि वे खालिस्तानियों के इन करतूतों की आलोचना करते और तुरंत अपनी पुलिस को इन पर एक्शन लेने को कहते. लेकिन वे चुप रहे और कुछ उग्रवादियों के वोट के लिए इन्हें शह देते रहे.ट्रूडो ने खुद स्वीकार किया है कि कनाडा में खालिस्तानी तत्व मौजूद हैं. हालांकि ट्रूडो ने यह कहकर उनके अपराध को कम करने की कोशिश की कि वे पूरे सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. ट्रूडो के इन कदमों से एक आम कनाडाई शहरी के मन अपने पीएम को लेकर विश्वास का ह्रास हुआ.

ट्रूडो के आरोपों से सन्न भारत

भारत से फरार आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत सरकार की भूमिका बताकर ट्रूडो ने द्विपक्षीय संबंधों की मर्यादा ही खत्म कर दी. सितंबर 2023 में ट्रूडो ने जब कनाडा की संसद में कहा कि कनाडा के राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र के पास यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि "भारत सरकार के एजेंटों" ने एक कनाडाई नागरिक की हत्या की है." ट्रूडो के आरोप से भारत सन्न रह गया. ट्रूडो के आरोपों के बाद 16-17 महीने गजुर गये लेकिन अबतक कनाडा इस हत्याकांड में भारत की एजेंसियों के शामिल होने का कंक्रीट सबूत नहीं दे सका है. 

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सर्वे ट्रूडो की कारगुजारियों की ओर इशारा करते रहे, लोकप्रियता घटती रही

ट्रूडो के इन कदमों से कनाडा में उनकी लोकप्रियता घटती गई.  एंगस रीड इंस्टीट्यूट (ARI) और एशिया पैसिफिक फाउंडेशन ऑफ कनाडा द्वारा किये गये सर्वे में कनाडा के 39 फीसदी नागरिक मानते हैं कि कनाडा अपने संबंधों को अच्छी तरह से प्रबंधित नहीं कर रहा है, जबकि 32 फीसदी लोगों का नजरिया इसके उलट है. वहीं, 29 फीसदी लोगों ने कहा कि वे कुछ कह नहीं सकते हैं.

सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि 39 फीसदी कनाडाई मानते हैं कि जब तक ट्रूडो प्रधानमंत्री हैं, तब तक संबंधों में सुधार नहीं होगा. 

भारत के साथ खराब होते गये रिश्ते

इस बीच ट्रूडो ने निज्जर का राग गाना नहीं छोड़ा. वो निज्जर जो भारत का वांछित आतंकवादी था और जिसने गलत तरीके से कनाडा की नागरिकता ली थी. 

इस वजह से दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ते गए. हालात बिगड़ने पर दोनों देशों ने एक दूसरे के हाईकमान में अधिकारियों की संख्या कम कर दी. इसके बाद कनाडा ने छात्राओं और छात्रों को जारी किया जाने वाला फास्ट ट्रैक वीजा खत्म कर दिया. इससे भारतीय छात्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुए. 

ट्रंप की जीत के बाद ट्रूडो के और भी बुरे दिन

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अमेरिकी चुनाव में ट्रंप की जीत ट्रूडो के लिए और भी बुरे दिन लेकर आई. जीत के बाद ट्रंप ने कहा था कि वे कनाडा पर 25 फीसदी टैरिफ लगाएंगे. ट्रंप का बयान ट्रूडो के लिए झटके की तरह था. उन्होंने तुरंत अमेरिका की फ्लाइट पकड़ी और ट्रंप से मिलने चले गये. ट्रूडो ने गुपचुप ट्रंप से मुलाकात की, उनके साथ डिनर किया. लेकिन उनकी समस्याएं दूर नहीं हो रही थीं. ट्रंप ने ट्रूडो को फार-लेफ्ट लूनेटिक कह कर उनका मजाक भी बनाया था. इसके अलावा ट्रंप ने ट्रूडो को 'कनाडा के महान राज्य का गवर्नर' कहकर संबोधित किया. उन्होंने कनाडा को अमेरिका का '51वां राज्य' बनाने का सुझाव देते हुए कहा कि इससे टैरिफ और व्यापार मुद्दों पर बातचीत आसान होगी.

ट्रंप के बाद मस्क ने भी दिया झटका

ट्रूडो के लिए दूसरा झटका ट्रंप के करीबी और दिग्गज बिजनेसमैन एलन मस्क से आया. एलन मस्क ने एक ट्वीट में कहा कि ट्रूडो अगला चुनाव हारने वाले हैं. उन्होंने कहा कि अगले चुनाव में इनकी विदाई तय है. 

एलन मस्क जैसे दिग्गज उद्योगपति के बयान से ट्रूडो की प्रतिष्ठा को गहरा झटका पहुंचा. 

घरेलू मोर्चे पर कमजोर पड़ते गये ट्रूडो

ट्रूडो को ये चुनौतियां तो देश के बाहर मिल रही थीं इधर देश के अंदर विपक्ष लगातार उनपर हमलावर होता जा रहा था. 

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2021 के फेडरल चुनाव के बाद से, लिबरल्स को बाई इलेक्शन में लगातार हार मिली और संसद में उनकी संख्या घटती चली गई. इसमें टोरंटो में टोरंटो-सेंट पॉल और मॉन्ट्रियल में लासेल-एमार्ड-वर्डन जैसी सुरक्षित सीटों पर हार शामिल है. इस हार के बाद के महीनों में ट्रूडो के नेतृत्व को लेकर आंतरिक हताशा और असंतोष के बारे में लगातार कहानियां मीडिया में देखी गईं. 

इन सब घटनाक्रमों के बीच ट्रूडो की लोकप्रियता लगातार कम होती रही. कई सर्वे इसकी ओर इशारा करते रहे. ग्लोबल मार्केट रिसर्च संस्थान Ipsos के ताजा सर्वे के अनुसार, लगभग 73 फीसदी कनाडाई चाहते थे कि वे इस्तीफा दे दें. यहां तक कि खुद लिबरल पार्टी को सपोर्ट करने वाले 43 फीसदी लोग ट्रूडो को अपना नेता नहीं देखना चाहते थे. 

कनाडा में महंगाई के साथ बेरोजगारी भी बढ़ रही है, कंजरवेटिव पार्टी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया है. कोरोना के बाद बेरोजगारी दर लगभग साढ़े 6 प्रतिशत तक पहुंच गई. ट्रूडो की टैक्स नीतियां भी लोगों को परेशान कर रही हैं. 

पिछले साल दिसंबर महीने में लिबरल पार्टी में भी ट्रूडो के खिलाफ विद्रोह जैसी स्थिति देखते को मिली थी. लिबरल पार्टी के दर्जनों सांसदों ने एक मीटिंग में सहमति जताई और कहा कि अब ट्रूडो को अपना पद छोड़ देना चाहिए. पार्टी के 51 सांसदों की एक बैठक में ये तय कर लिया गया कि अब ट्रूडो का समय पूरा हो गया है.

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ट्रूडो सरकार में इस्तीफों का दौर

2024 के अंतिम महीनों में ट्रूडो के मंत्रिमंडल में इस्तीफों की लहर देखी गई. 19 सितंबर, 2024 को परिवहन मंत्री पाब्लो रोड्रिग्ज ने इस्तीफा दे दिया. 20 नवंबर, 2024 को अल्बर्टा के सांसद रैंडी बोइसोनॉल्ट ने इस्तीफा दिया. 15 दिसंबर, 2024 को आवास मंत्री सीन फ्रेजर ने पारिवारिक कारणों का हवाला देते हुए अगले फेरबदल में कैबिनेट छोड़ने के अपने इरादे की घोषणा की. 

16 दिसंबर, 2024 को क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने उप प्रधान मंत्री और वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. इन इस्तीफों के बाद ट्रूडो के पास अपने पद पर बने रहने की कोई ठोस वजह नहीं रह गई है. 

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