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अमेरिकी संस्था CDC को कोरोना पर अपनी गाइडलाइन तीसरी बार बदलनी पड़ी, ये है वजह

इससे पहले, अमेरिकी एजेंसी सीडीसी ने अपनी वेबसाइट पर गाइडेंस को अपडेट किया था, ये कहने के लिए कि कोरोना वायरस आमतौर पर "सांस की ड्रॉपलेट्स या छोटे कणों के माध्यम से फैल सकता है, जैसे कि एरोसोल से", जो किसी व्यक्ति के सांस लेने पर भी उत्पन्न होते हैं.

सीडीसी की गाइडलाइंस में तीसरी बार संशोधन (फोटो-रॉयटर्स) सीडीसी की गाइडलाइंस में तीसरी बार संशोधन (फोटो-रॉयटर्स)
मिलन शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 22 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 9:58 PM IST
  • बार बार बयान बदल रही अमेरिकी एजेंसी CDC
  • सीडीसी ने वेबसाइट पर गाइडेंस को अपडेट किया
  • मई के बाद तीसरी बार वेबसाइट को संशोधित किया

अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) ने अपने उस वेब पेज को संपादित किया है जिसमें बताया गया है कि कोरोना वायरस कैसे फैलता है. इसमें से उस अंश को हटा दिया गया है जिसमें कहा गया था कि इसका हवा में संक्रमण (एयरबोर्न) से भी फैलना ‘संभव’ था. 

मई के बाद से सीडीसी की सूचना या गाइडलाइंस में यह तीसरा प्रमुख संशोधन है.  

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एजेंसी ने शुक्रवार को पोस्ट की गई जानकारी में कहा कि वायरस छह फीट से अधिक दूरी पर भी ट्रांसमिट हो सकता है. साथ ही एजेंसी ने सुझाव दिया कि वायरस से बचने के लिए इनडोर वेंटिलेशन महत्वपूर्ण है. 

इससे पहले, अमेरिकी एजेंसी सीडीसी ने अपनी वेबसाइट पर गाइडेंस को अपडेट किया था, ये कहने के लिए कि कोरोना वायरस आमतौर पर "सांस की ड्रॉपलेट्स या छोटे कणों के माध्यम से फैल सकता है, जैसे कि एरोसोल से", जो किसी व्यक्ति के सांस लेने पर भी उत्पन्न होते हैं. 

सीडीसी की साइट अब कहती है, "कोविड-19 सहित एयरबोर्न वायरस, सबसे अधिक संक्रामक और आसानी से फैलने वाले हैं." 

इससे पहले, सीडीसी पेज ने कहा था कि कोविड-19 को मुख्य रूप से करीब संपर्क वाले लोगों (लगभग 6 फीट) के बीच फैलने के बारे में सोचा गया था. तब "जब एक संक्रमित व्यक्ति खांसी, छींक या बातचीत करता है, तो उसकी सांस की ड्रॉपलेट्स के जरिए.” 

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क्या कोविड-19 एयरबोर्न था?  इस सवाल पर भारत सरकार ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा था- “वायरस का एयरबोर्न ट्रांसमिशन हेल्थ केयर सेटिंग्स में हो सकता है जहां विशेष मेडिकल प्रक्रियाएं, एरोसोल नामक बहुत छोटी बूंदें उत्पन्न करती हैं. इन मेडिकल प्रक्रियाओं को एरोसोल जेनेरेटिंग प्रोसीजर्स कहा जाता है.  

पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPE) के तर्कसंगत उपयोग पर भारत सरकार ने अपनी गाइडलाइंस में एयरोसोल जनरेटिंग प्रोसीजर्स में एयरबोर्न ट्रांसमिशन की संभावना को शामिल किया है और ऐसी सभी सेटिंग्स के लिए उपयुक्त PPEs की सिफारिश की है.” 

“विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मौजूदा सबूत बताते हैं कि SARS-CoV-2 का ट्रांसमिशन मुख्य रूप से लोगों के बीच तब होता है जब प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष या नजदीकी तौर पर संक्रमित व्यक्ति की लार, सांस की ड्रॉपलेट्स से संपर्क होता है. ये संक्रमित व्यक्ति के खांसने, छींकने, बातचीत करने या गाने से होता है.” 


 

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