
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद चीन ने काबुल मेंअपना पूर्णकालिक राजदूत नियुक्त कर दिया है. चीन ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश भी बन गया. तालिबान के एक प्रवक्ता ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि नए चीनी राजदूत झाओ जिंग ने प्रधानमंत्री मोहम्मद हसन अखुंद और विदेश मंत्री शेख अमीर खान मुत्तकी से मुलाकात की है.
तालिबान को किसी भी विदेशी सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी गई है. बीजिंग ने यह संकेत नहीं दिया कि अफगानिस्तान में नए राजदूत की नियुक्ति तालिबान की औपचारिक मान्यता की दिशा में संकेत है.
तालिबान प्रशासन के उप प्रवक्ता बिलाल करीमी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, "एक समारोह के दौरान प्रधानमंत्री और अफगानिस्तान में नए चीनी राजदूत झाओ जिंग के बीच मुलाकात हुई. जहां दोनों ने एक-दूसरे से बातचीत की. इस दौरान नए चीनी राजदूत ने अफगानिस्तान में अपने नए मिशन पर खुशी व्यक्त की."
चीन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "यह अफगानिस्तान में चीन के राजदूत का सामान्य रोटेशन है और इसका उद्देश्य चीन और अफगानिस्तान के बीच बातचीत और सहयोग को आगे बढ़ाना जारी रखना है. अफगानिस्तान के प्रति चीन की नीति स्पष्ट और सुसंगत है."
तालिबान प्रशासन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने रॉयटर्स को बताया कि नए दूत झाओ जिंग अगस्त 2021 के बाद से पद संभालने वाले किसी भी देश के पहले राजदूत हैं, जब तालिबान ने अमेरिकी नेतृत्व वाली विदेशी सेनाओं के 20 साल बाद हटने के बाद सत्ता संभाली थी.
अफगानिस्तान में चीन के पिछले राजदूत वांग यू ने 2019 में यह पद संभाला था और पिछले महीने उनका कार्यकाल समाप्त हुआ. काबुल में राजदूत की उपाधि वाले अन्य राजनयिक भी हैं, लेकिन उन सभी ने तालिबान के कब्जे से पहले ही अपना पद ग्रहण कर लिया था.
हालांकि अन्य देशों और निकायों, जैसे पाकिस्तान और यूरोपीय संघ नेन तबसे सीनियर राजनयिकों को 'चार्ज डी अफेयर' टाइटल का उपयोग करके मिशनन का नेतृत्व करने के लिए भेजा है, जिसके लिए अफगानिस्तान को राजदूत की साख पेश करने की जरूरत नहीं है.
अमेरिका के जाने के बाद तालिबान ने 15 अगस्त, 2021 को काबुल पर कब्जा कर लिया था और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग खड़े हुए थे.