
एक अमेरिकी राजनयिक के अनुसार, अगले दलाई लामा को चुनने के लिए चीन के पास कोई धार्मिक आधार नहीं है. उन्होंने कहा कि तिब्बत के बौद्ध अनुयायियों ने सैकड़ों वर्षों तक अपने आध्यात्मिक नेता को सफलतापूर्वक चुना है. राजदूत ने संवाददाताओं से मंगलवार को एक सम्मेलन में कहा कि तिब्बती समुदाय से बात करने के लिए मैं भारत के धर्मशाला गया था. उन्हें यह बताने के लिए कि अमेरिका अगले दलाई लामा को चुनने के लिए चीन का विरोध कर रहा है.
एक सवाल के जवाब में राजदूत ल्युएल डी ब्राउनबैक ने कहा कि उन्हें ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है. उनके पास ऐसा करने का कोई धार्मिक आधार नहीं है. तिब्बत के बौद्ध अनुयायियों ने सैकड़ों वर्षों तक अपने नेता को सफलतापूर्वक चुना है, अब भी उन्हें ऐसा करने का अधिकार है. ब्राउनबैक ने कहा कि अमेरिका समर्थन करता है कि धार्मिक समुदायों को अपना नेतृत्व चुनने का अधिकार है.
उन्होंने आगे कहा कि इसमें निश्चित रूप से अगला दलाई लामा का चुनाव करना भी शामिल है. उन्होंने कहा हमें लगता है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का यह कहना पूरी तरह गलत है कि उनके पास यह अधिकार है. 14 वें दलाई लामा भारत में रह रहे हैं. 1959 में स्थानीय आबादी के विद्रोह पर चीन की कार्रवाई के बाद तिब्बत से भाग गए थे. तिब्बती सरकार का निर्वासन हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से होता है. बता दें कि भारत में 1,60,000 से अधिक तिब्बती रहते हैं.
ब्राउनबैक ने चीन पर आरोप लगाया कि दुनिया में चीन एक ऐसा देश हैं जहां लोगों का सबसे ज्यादा धार्मिक उत्पीड़न किया जाता है. उन्होंने कहा कि इससे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में उन्हें मदद नहीं मिलेगी. चीन दुनिया से कह रहा है कि धार्मिक उत्पीड़न ये आतंकवाद को रोकने का प्रयास है लेकिन वह सबसे ज्यादा आतंकवादी बना रहा है.