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बांग्लादेश ने कहा है कि चीन ने तीस्ता नदी पर एक जलाशय बनाने का प्रस्ताव दिया है. भारत से बांग्लादेश में प्रवेश करने वाली तीस्ता नदी को लेकर चीन के प्रस्ताव पर शेख हसीना की सरकार का कहना है कि वो प्रस्ताव पर भूराजनीतिक मुद्दों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ेगी. भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे को लेकर दशकों से विवाद रहा है और अभी तक कोई समझौता नहीं हो पाया है.
बांग्लादेशी विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता सेहेली सबरीन ने चीनी प्रस्ताव के संबंध में साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में कहा, 'उन्होंने (चीन ने) तीस्ता के बांग्लादेश हिस्से पर विकास कार्यों के लिए सहयोग बढ़ाने की इच्छा जताई है. संबंधित मंत्रालय और इकोनॉमिक रिलेशंस डिविजन उनके प्रस्ताव पर विचार करेंगे.'
चीन बांग्लादेश के रणनीतिक सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे चिकन नेक के नाम से भी जाना जाता है, के पास एक प्रमुख प्रोजेक्ट में बांग्लादेश का अहम हिस्सेदार है. भारत ने इसे लेकर सख्त आपत्ति जताई है. जब इसे लेकर सवाल किया गया तो प्रवक्ता ने कहा, 'ऐसे मामले में बांग्लादेश प्रस्ताव के साथ आगे बढ़ते हुए भूराजनीतिक मुद्दों को ध्यान में रखेगा.'
चीन के राजदूत ने क्या कहा था?
बांग्लादेशी विदेश मंत्रालय की तरफ से यह टिप्पणी चीनी राजदूत याओ वेन के उस बयान के एक हफ्ते बाद आई है जिसमें उन्होंने कहा था कि बीजिंग को तीस्ता बेसिन के विकास के लिए कई प्रस्ताव मिले हैं.
चीनी राजदूत ने कहा था, 'हमें बांग्लादेश की तरफ से कई प्रस्ताव मिले हैं और हम वहां आम चुनाव खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं.
चीनी राजदूत ने कहा कि बांग्लादेश में 7 जनवरी के आम चुनाव के बाद चीन इस मुद्दे पर काम आगे बढ़ाएगा.
बांग्लादेश के अधिकारियों के अनुसार, चीन ने 2020 में तीस्ता नदी की तली की एक बड़े हिस्से की तली की सफाई और जलाशयों और बांधों के निर्माण का प्रस्ताव रखा था. लेकिन करोड़ों डॉलर के इस प्रोजेक्ट को बांग्लादेश ने अभी तक रोक रखा है.
क्या है भारत-बांग्लादेश तीस्ता विवाद?
414 किलोमीटर लंबी तीस्ता नदी हिमालय से करीब सात हजार मीटर ऊंचे पाहुनरी ग्लेशियर से निकलती है. यह सिक्किम के जरिए भारत में प्रवेश करती है और पश्चिम बंगाल से होते हुए बांग्लादेश में जाती है.
इस नदी के पानी को लेकर भारत और बांग्लादेश में दशकों से विवाद रहा है लेकिन अभी तक कोई समझौता नहीं हुआ है. केंद्र सरकार पानी बंटवारे को लेकर कोई समझौता करना चाहती है लेकिन बंगाल की ममता बनर्जी सरकार इसके विरोध में है.
दोनों देशों के बीच सचिव स्तर पर तीस्ता नदी जल बंटवारे को लेकर एक मसौदे पर सहमति बन गई थी लेकिन ममता बनर्जी की सरकार ने मसौदे पर असहमति जताकर 2011 से ही उसे लंबित रखा है.
देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 2011 की बांग्लादेश यात्रा के दौरान मसौदे पर हस्ताक्षर के लिए तैयार थे लेकिन ममता बनर्जी ने ऐन वक्त पर अपना विरोध जताया जिसके बाद प्रस्तावित समझौते को निलंबित कर दिया गया. तब से ही यह मामला अधर में लटका हुआ है.
कई विश्लेषकों का कहना है कि तीस्ता नदी के प्रोजेक्ट में चीन की भागीदारी भारत-बांग्लादेश विवाद को और जटिल बना सकती है. चीन और भारत के बीच कूटनीतिक संतुलन बनाते हुए प्रधानमंत्री शेख हसीना की मौजूदा सरकार ने बांग्लादेश के हितों को कुशलतापूर्वक साधा है. लेकिन यह मुद्दा भारत-बांग्लादेश के मधुर रिश्तों के बीच कड़वाहट पैदा कर सकता है.