
दुश्मन का दुश्मन दोस्त... ये कहावत तो आपने सुनी ही होगी. कुछ ऐसा ही किरदार इस वक्त चीन अदा कर रहा है. जो भारत के खिलाफ बोले, चीन उसके पक्ष में बोलने से पीछे नहीं हटता. लेकिन जो चीन के खिलाफ बोले, चीन उसकी तब तक आलोचना करता है, जब तक कि वो थक न जाए. जब मालदीव में चीन समर्थित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की सरकार आई, तो चीन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
इंडिया आउट के नारे लगाकर चुनाव अभियान करने वाले मुइज्जू का चीन ने इस कदर साथ दिया, कि वो सही गलत भी भूल गया. हाल का ही मामला ले लीजिए. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लक्षद्वीप की यात्रा पर गए.
उन्होंने इसकी कुछ तस्वीरें अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर कीं. उन्होंने भारतीयों से कहा कि वो देश के भीतर मौजूद इस खूबसूरत जगह को देखने आएं. वो केवल भारत के टूरिज्म की बात कर रहे थे. उन्होंने दूर दूर तक मालदीव का नाम नहीं लिया.
न ही भारत के लोगों ने मालदीव का कहीं जिक्र किया. लेकिन नफरत क्या न कराती, मालदीव की ट्रोल आर्मी सोशल मीडिया के इस मैदान में कूद पड़ी. यहां के मंत्रियों और नेताओं ने भी अपने अंदर मौजूद जहर को यहीं पर उगलना शुरू कर दिया.
उन्होंने मालदीव की लक्षद्वीप से तुलना की. भारतीय प्रधानमंत्री का मजाक उड़ाया.
चीन ने तनाव के बीच मालदीव के लिए कही बड़ी बात
आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां भारत की दूर दूर तक कोई गलती नहीं थी. मुइज्जू ने सबसे पहले तुर्की की यात्रा की. फिर वो चीन गए. उनकी चीन की यात्रा ऐसे वक्त पर हुई, जब सोशल मीडिया लक्षद्वीप बनाम मालदीव की जंग में बिजी था.
भारत से सबसे ज्यादा पर्यटक मालदीव छुट्टियां मनाने जाते हैं लेकिन मालदीव में अपने देश के लिए ऐसी नफरत देख भारतीयों ने बायकॉट मालदीव करना शुरू कर दिया.
महज पर्यटन के सहारे चलने वाले मालदीव की सरकार इससे इतना डरी कि तीन मंत्रियों को सस्पेंड कर दिया. साथ ही चीन से भीख मांगी कि अपने पर्यटकों को मालदीव भेजे.
मुइज्जू की चीन यात्रा के दौरान चीन ने ऐसे बयान जारी किए, जिसे सुनकर कोई भी कह दे कि वो भारत की तरफ ही इशारा कर रहा है. चीन और मालदीव के शीर्ष नेताओं की तरफ से जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि दोनों पक्ष अपने-अपने मूल हितों की रक्षा के लिए एक दूसरे का समर्थन करना जारी रखेंगे.
चीन ने कहा कि वो अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता, स्वतंत्रता और राष्ट्रीय गरिमा को बनाए रखने के लिए मालदीव का दृढ़ता से समर्थन करता है. चीन ने सबसे बड़ी बात ये कही कि वो मालदीव के आंतरिक मामलों में बाहरी हस्तक्षेप का दृढ़ता से विरोध करता है.
बता दें, मुइज्जू भारतीय सेना को मालदीव से जाने की बात कई बार कह चुके हैं. यहां 88 भारतीय सैनिक मौजूद हैं. जिनका काम समुद्री सुरक्षा की निगरानी में मदद करना और राहत बचाव कार्य सहित मेडिकल सहायता पहुंचाना है.
भारत लंबे वक्त से मालदीव की मदद करता आया है. भारतीय सेना भी तब यहां गई थी, जब खुद मालदीव ने उससे मदद मांगी. बात 1988 की है, जब मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गायूम के अनुरोध पर तख्तापलट की कोशिश को विफल करने के लिए भारतीय सेना को यहां भेजा गया था.
लेकिन बावजूद इसके मोइज्जु बार बार भारतीय सेना को मालदीव से वापस भेजने की मांग करते हैं. उन्होंने अपने ताजा बयान में सेना के लिए 15 मार्च तक जाने की डेडलाइन जारी की है.
चीन के हक में बोलता गया मालदीव
दूसरी तरफ मालदीव ने कहा कि वो एक चीन सिद्धांत के प्रति अपनी दृढ़ता जाहिर करता है. उसने कहा कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार पूरे चीन का प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र कानूनी सरकार है और ताइवान चीनी क्षेत्र का अविभाज्य हिस्सा है.
मालदीव ने ये भी कहा कि वो चीन की संप्रभुता और आखंडता को कमजोर करने वाले किसी बयान या कार्रवाई का विरोध करता है. साथ ही ताइवान की स्वतंत्रता की मांग वाली अलगाववादी गतिविधियों का विरोध करता है और ताइवान के साथ किसी भी तरह के आधिकारिक संबंध विकसित नहीं करेगा.
मुइज्जू ने बाद में बताया कि चीन मालदीव को 13 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आर्थिक मदद देने को तैयार हो गया है. इसका बड़ा हिस्सा सड़कों के पुर्ननिर्माण पर इस्तेमाल होगा.
अब ताइवान के मामले में कैसे बदल गए सुर?
ताइवान में विलियम लाई नए राष्ट्रपति बन गए हैं. वो सत्ताधारी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) पार्टी के नेता हैं. अगर हम भारत के नजरिए से देखें, तो ये एक बहुत बड़ी खुशखबरी है.
क्योंकि जब नवंबर 2023 में मालदीव में चीन समर्थित और भारत विरोधी सरकार आई, तो चीन ने बहुत खुशी जताई. लेकिन अब ऊंट पहाड़ के नीचे आ गया है. ताइवान में आई विलियन लाई की सरकार के कारण चीन की टेंशन बढ़ गई है.
क्योंकि इनकी विचारधार एकदम चीन के खिलाफ है. अब आपको कुछ ऐसी बातें बता देते हैं, जो चीन की इन घटिया हरकतों पर से पर्दा हटाने के लिए काफी हैं.
जिस वक्त ताइवान में चुनाव अभियान चल रहे थे, तब चीन ने बाकायदा वॉर्निंग जारी कीं. उसने कहा कि कोई भी लाई को वोट न दे. ताइवान तो हमारा है, ये चीन से अलग देश नहीं है. हालांकि चीन की इस बकवास के बीच ताइवान में लोकतांत्रित तरीके से चुनाव हुए.
तमाम रुकावटों के बावजूद यहां विलियम लाई की सरकार सत्ता में आई. लाई ने चुनाव जीतने के बाद कहा कि ताइवान लोकतंत्र से जुड़ा हुआ देश है. उनकी पार्टी की विचारधारा की बात करें, तो उनकी पार्टी डीपीपी का फोकस ताइवान के नेशनलिज्म पर है.
जो ताइवान की पहचान को काफी अहम मानती है. ये पार्टी स्वतंत्रता, न्याय, लोकंतत्र पर विश्वास करती है. यह मानव अधिकारों और गुड गवर्नेंस को प्रमोट करने में विश्वास रखने वाली पार्टी है. पार्टी ने सेना पर होने वाले खर्च को बढ़ाने की बात कही है.
डीपीपी ये भी कहती है कि इनका देश पहले से स्वतंत्र है, तो स्वतंत्रता की बात आखिर क्यों ही करनी. अब आप इसी से समझ गए होंगे कि चीन के बुरे दिन बस शुरू हो गए हैं. वो चाहकर भी ताइवान का कुछ बिगाड़ नहीं सकता.
क्योंकि अमेरिका ने ताईवान की रक्षा की बात कही है. लाई ने भी कहा था कि वो अमेरिका, चीन और जापान के साथ रिश्ते मजबूत करेंगे. वो चीन को लेकर हमेशा से ही मुखर रहे हैं.
अपनी पर आई तो बदल गए चीन के सुर
विलियम लाई के सत्ता में आने के बाद चीन के ताइवान मामलों के कार्यालय के प्रवक्ता चेन बिनहुआ ने कहा कि डीपीपी मेनस्ट्रीम पब्लिक ओपिनियिन को फॉलो नहीं करती. इसका मतलब ये नहीं कि चीन का एकीकरण न हो.
चेन ने कहा कि ताइवान चीन का है. हमारा संकल्प चट्टान की तरह दृढ़ है. शनिवार का चुनाव दोनों तरफ के लोगों की इच्छा को नहीं बदल सकता और चीन के एकीकरण को साकार करने की अंतिम लहर को नहीं रोक सकता.
उन्होंने कहा कि एक-चीन सिद्धांत को कायम रखने की चीनी सरकार की स्थिति नहीं बदलेगी और वह 'ताइवान की स्वतंत्रता' की मांग करने वाले अलगाववादी आंदोलनों और बाहरी हस्तक्षेप का विरोध करेगा.
अब यहां प्रमुख बात ये है कि ताइवान... जो एक अलग देश है, चीन उस पर दादागिरी की खुलकर बात कर रहा है. लेकिन जब वो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) में सीपीईसी प्रोजेक्ट के तहत निर्माण कर रहा था, तब उसे भारत के आंतरिक मामलों की याद नहीं आई.
ताइवान के लिए चीन इतनी धमकी भरी बात तब करता है, जब ये देश 1940 के दशक से स्वशासित है. मगर अब लाई की सरकार आने से इतना साफ हो गया है कि चीन चाहकर भी ताइवान का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा.
भारत की संप्रभुता की परवाह नहीं करने वाले चीन को ताइवान में हुए चुनाव से करारा चांटा जरूरट पड़ा है.