
अफ्रीकी देश कांगो हिंसा की आग में झुलस रहा है. विद्रोही ग्रुप M23 एक के बाद एक इलाके पर अपना कब्जा जमा रहा है. अब तक हजारों लोगों का कत्लेआम किया गया है. वहां के बिगड़ते हालात को देखते हुए भारत ने भी अपने नागरिकों के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. कांगो में करीब 25 हजार भारतीय रहते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर 61 लाख की आबादी वाले कांगो में ऐसा क्या है कि दशकों से इस देश ने केवल तबाही ही देखी है. हिंसा का कारण क्या है और आखिर M23 क्या है. आइए जानते हैं हर सवाल के जवाब...
30 साल से हिंसा जारी
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) एक सेंट्रल अफ्रीकी देश है. कांगो अपनी खनिज संपन्नता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. लेकिन पिछले 30 वर्षों से संघर्ष जारी है, जो 1994 के रवांडा नरसंहार के बाद से जारी है. लड़ाई इसी खनिज को लेकर है. कई सशस्त्र समूह सत्ता और खनिजों पर नियंत्रण के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. इस अस्थिरता ने पड़ोसी देशों को भी प्रभावित किया है. इसका एक बड़ा उदाहरण 1990 का है, जब संघर्ष में लाखों लोगों की मौत हुई थी, जिसे अफ्रीका के विश्व युद्ध के नाम से जाना जाता है.
कई इलाकों पर M23 का कब्जा
M23 विद्रोही समूह के लड़ाकों ने क्षेत्र में तेजी से हमला करते हुए गोमा पर लगभग पूरी तरह से कब्जा कर लिया है. गोमा कांगो का एक प्रमुख शहर है, जिसकी जनसंख्या एक मिलियन से अधिक है. यह रवांडा की सीमा पर और किवु झील के किनारे स्थित है, और यह खनन क्षेत्रों से आपूर्ति होने वाले सोने, टिन और कोल्टन जैसे धातुओं और खनिजों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापार और परिवहन केंद्र है. M23 ने कांगो की राजधानी किंशासा पर हमले की धमकी भी दी है. लेकिन इसे मुश्किल माना जा रहा है क्योंकि यह गोमा से 2,600 किमी दूर देश के दूसरे छोर पर स्थित है.
अब जानिए कौन हैं M23
M23 का नेतृत्व तुत्सी समुदाय के लोग कर रहे हैं, जो कहते हैं कि उन्हें अपने समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए हथियार उठाने पड़े. उनका कहना है कि संघर्ष को समाप्त करने के लिए किए गए कई समझौतों का पालन नहीं किया गया है. 2012 में इसका गठन हुआ था. इसके बाद M23 ने तेजी से क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और गोमा पर कब्जा कर लिया था. लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचनाओं के बाद M23 को गोमा से पीछे हटना पड़ा था.
M23 के लड़ाकों से फिर एक समझौता हुआ. लड़ाके सेना में शामिल होने के लिए मान गए. इसके बदले उन्हें तुत्सियों के संरक्षण का वादा किया गया था. लेकिन, 2021 में समूह ने फिर से हथियार उठाए, यह कहते हुए कि वादे टूट गए थे.
क्या रवांडा भी इस संघर्ष में शामिल है?
M23 के नेता सुर्तानी माकेंगा एक कांगो तुत्सी हैं, जिन्होंने पहले रवांडा की सेना में लड़ा था. रवांडा ने हमेशा M23 का समर्थन करने से इनकार किया है, लेकिन 2012 से संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने आरोप लगाया है कि रवांडा ने विद्रोहियों को हथियार, लॉजिस्टिक समर्थन दिया.
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कांगो की सरकार, साथ ही अमेरिका और फ्रांस ने भी रवांडा को इस समूह का समर्थन करने के रूप में पहचाना है. पिछले साल एक संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट में कहा गया था कि 4,000 तक रवांडा के सैनिक M23 के साथ लड़ रहे थे.
हालांकि, रवांडा ने पहले कहा था कि उसे बलि का बकरा बनाया जा रहा है और हालिया संघर्ष के लिए कांगो की सरकार को दोषी ठहराया था.
दरअसल, 1994 के रवांडा नरसंहार में करीब 8 लाख लोगों की मौत हुई थी. इनमें ज्यादातर तुत्सी समुदाय से थे. जिन्हें हूटू उग्रवादियों ने मारा था. बाद में स्थिति बदली तो करीब एक मिलियन हूटू रवांडा से भागकर आज के कांगो में आ बसे. इसके बाद से स्थिति बदल गई. रवांडा की सेना ने दो बार कांगो पर आक्रमण किया था, यह कहते हुए कि वे नरसंहार के दोषियों का पीछा कर रहे हैं.
खनिज ने कैसे बढ़ाई समस्या
कांगो और कई संयुक्त राष्ट्र रिपोर्टों ने रवांडा पर कांगो के खनिजों का दोहन करने का आरोप लगाया है. हाल के वर्षों में M23 ने कई लाभकारी खनन क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है. बीबीसी रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों की रिपोर्ट ने पिछले दिसंबर में कहा था कि M23 हर चार हफ्ते में रवांडा को 120 टन कोल्टन भेज रहा था. रिपोर्ट में यह भी जिक्र है कि पिछले कुछ वर्षों में रवांडा के खनिज निर्यात में भारी वृद्धि हुई है, जो ज्यादातर कांगो से आ रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या पहल हुई
कहने को 1999 से कांगो में एक संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन तैनात है. वर्तमान में इस मिशन को मुनुस्को कहा जाता है, जिसमें 10,000 से अधिक सैनिक हैं. हालांकि, इनमें से केवल "फोर्स इंटरवेंशन ब्रिगेड" को ही सशस्त्र समूहों के खिलाफ आक्रामक कार्यवाही करने की अनुमति है. कांगो में लोगों के मन में संयुक्त राष्ट्र सैनिकों के खिलाफ भी गुस्सा है. उनका कहना है कि ये लोग अपनी जिम्मेदारी अच्छे से नहीं निभा रहे हैं.