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पाकिस्तान में अब पूरा होगा 1947 से रुका हुआ ये ऐतिहासिक काम

पाकिस्तान के सियालकोट जिले की दस्का तहसील स्थित गुरुद्वारे का निर्माण कार्य 1944 में शुरू हुआ था लेकिन 1947 में बंटवारे की वजह से यह पूरा नहीं हो पाया. अब खबर है कि इसका निर्माण कार्य पूरा करा रहा है. ऐतिहासिक गुरुद्वारे नानकसर के रेनोवेशन और रेस्टोरेशन का काम शुरू कर दिया है. यह गुरुद्वारा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की दस्का के फतेह भिंडर गांव में है. 

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 30 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 3:59 PM IST

भारत-पाकिस्तान बंटवारे का दंश लाखों लोगों ने झेला लेकिन इसकी मार पाकिस्तान के एक गुरुद्वारे पर भी पड़ी. आज से लगभग आठ दशक पहले पाकिस्तान के सियालकोट में एक गुरुद्वारे का निर्माण कार्य शुरू हुआ था लेकिन 1947 में भारत, पाकिस्तान विभाजन की वजह से इस गुरुद्वारे का निर्माण कार्य कभी पूरा नहीं हो पाया. कहा जाता है कि सिखों के पहले गुरु नानक देव अपनी चौथी उदासी (भ्रमण) के दौरान इसी गुरुद्वारे में ठहरे थे. 

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टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 75 साल की बदहाली के बाद अब गुरुद्वारा नानकसर (Gurdwara Nanaksar) का निर्माण कार्य दोबारा शुरू किया जा रहा है. 

पाकिस्तान के सियालकोट जिले की दस्का तहसील स्थित गुरुद्वारे का निर्माण कार्य 1944 में शुरू हुआ था लेकिन 1947 में बंटवारे की वजह से यह पूरा नहीं हो पाया. अब खबर है कि पाकिस्तान का Evacuee Trust Property Board (ETPB) इसका निर्माण कार्य पूरा करा रहा है.

ईटीपीबी के चेयरमैन हबीब उर रहमान का कहना है कि उन्होंने ऐतिहासिक गुरुद्वारे नानकसर के रेनोवेशन और रेस्टोरेशन का काम शुरू कर दिया है. यह गुरुद्वारा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की दस्का के फतेह भिंडर गांव में है. 

हाल ही में इस गुरुद्वारे का दौरा कर चुके और इसके रेनोवेशन को लेकर उचित दिशानिर्देश दे चुके रहमान ने कहा, गुरुद्वारे के रिस्टोरेशन का काम सिख मर्यादा के अनुसार किया जा रहा है. 

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पाकिस्तान के इतिहासकार शाहिद शब्बीर बताते हैं कि गुरु नानक देव की चौथे उदासी पूरा होने पर वह फतेह भिंडर गांव में ठहरे थे. 

उन्होंने कहा, लगभग 100 साल पहले इसी स्थान पर एक गुरुद्वारे का निर्माण किया गया था. हालांकि, विभाजन से तीन साल पहले एक स्थानीय सिख फतेह सिंह भिंडर ने गुरुद्वारे की नई इमारत की नींव डाली. लेकिन विभाजन के बाद वह भारत चले गए और गुरुद्वारे के निर्माण का काम अधूरा रह गया.

सूत्रों का कहना है कि स्थानीय सिखों ने गुरुद्वारे के लिए अपनी जमीनें दान की थीं और अभी भी 10 एकड़ से अधिक जमीन गुरुद्वारे नानकसर के नाम पर है.

ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जब भारत से कई सिखों ने पाकिस्तान जाकर गुरुद्वारे नानकसर का दौरा किया और इसकी जर्जर इमारत को देखा. यह इमारत कभी बेइंतहा खूबसूरत हुआ करती थी लेकिन अब स्थानीय ग्रामीण इस गुरुद्वारे परिसर का इस्तेमाल उपलों को रखने के लिए कर रहे हैं. 

इस मामले को हाल ही में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) के संज्ञान में लाया गया. एसजीपीसी ने इस मामले को पाकिस्तान सरकार के समक्ष रखा लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. साल 2005 में पाकिस्तान में आए भूकंप के दौरान इस गुरुद्वारे की इमारत को भारी नुकसान पहुंचा था. 

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इस मामले पर ईटीपीबी के प्रवक्ता आमिर हाशमी का कहना है कि अब गुरुद्वारे के रेनोवेशन का काम जोरों पर चल रहा है और जल्द ही इसके पूरा होने की उम्मीद है. 

एक अन्य सूत्र का कहना है कि पाकिस्तान के सियालकोट जिले में कई अन्य गुरुद्वारे भी हैं, जिन पर अभी भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है. 

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