
2018 की बात है. ट्रंप और पुतिन की मुलाकात हो रही थी. जगह थी फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी. यह मुलाकात 2018 फीफा विश्व कप के समापन के ठीक बाद हुई थी, जिसकी मेजबानी रूस ने की थी. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रंप और पुतिन अगल-बगल खड़े थे. उस समय पुतिन ने ट्रंप को एक फुटबॉल देते हुए कहा, "Mr president I will give this ball to you. And Now the ball is in your court." यानी कि श्रीमान राष्ट्रपति महोदय मैं ये गेंद अब आपको दे रहा हूं और अब गेंद आपके पाले में है.
यहां बात तो फुटबॉल की थी. लेकिन कूटनीति समझने वाले जानते हैं कि यह एक प्रतीकात्मक इशारा था. इसका मतलब उस समय सीरिया, यूक्रेन और परमाणु हथियारों पर सार्थक चर्चा से था. इसके अलावा दुनिया के दो सबसे शक्तिशाली देशों के साथ-साथ चलने से था.
2016 में तो हेलसिंकी में ही पुतिन ने कहा था कि वे ट्रंप को राष्ट्रपति के रूप में देखना चाहते हैं. 2016 में ट्रंप जब सत्ता में आए तो इस अमेरिकी चुनाव में कथित रूसी दखंलदाजी की खूब चर्चा हुई.
ट्रंप-पुतिन का 'ब्रोमांस' और बाइडेन का 'हत्यारा' संबोधन
2020 में ट्रंप की सत्ता में विदाई हो गई. इसके बाद बाइडेन सत्ता में आए तो कुछ भी नहीं बदला. रूस को लेकर बाइडेन और अमेरिका की नीति शीत युद्ध के चश्मे से ही देखी जा रही थी. बाइडेन ने पुतिन को अमेरिका का पारंपरिक दुश्मन ही माना और पुतिन को 'हत्यारा' कहा. बाइडेन ने पुतिन को एक ऐसे नेता के रूप में देखा, जिसे कंट्रोल करना जरूरी था, जबकि पुतिन ने बाइडेन को अमेरिकी साम्राज्यवादी नीतियों का प्रतीक माना.
2025 में ट्रंप अपनी दूसरी पारी में फिर से लौटे हैं और मीडिया में पुतिन और ट्रंप का 'ब्रोमांस' फिर से चर्चा में है. ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने (20 जनवरी, 2025) के बाद पुतिन ने उन्हें बधाई दी और "लंबे समय तक शांति" के लिए बातचीत का प्रस्ताव रखा, ट्रंप ने जवाब में कहा कि वह पुतिन के साथ "जल्द बात करेंगे," इसके बाद उनके "ब्रोमांस" की चर्चा फिर शुरू हो गई.
ट्रंप ने शपथग्रहण के एक ही दिन बाद 21 जनवरी को कहा था कि वे यूक्रेन जंग को जल्द खत्म करवाना चाहते हैं. ट्रंप ने बार-बार कहा कि वह पुतिन के साथ 'अच्छे संबंध' चाहते हैं. ट्रंप तर्क देते हुए कहते हैं कि रूस के साथ बेहतर रिश्ते वैश्विक शांति के लिए फायदेमंद होंगे. पुतिन ने भी ट्रंप के साथ काम करने की इच्छा जताई, खासकर 2024 के चुनाव के बाद, जब उन्होंने ट्रंप की जीत को "खुले दिमाग" से स्वीकार किया और बातचीत की पेशकश की.
सवाल उठता है कि क्या ट्रंप और पुतिन विश्व की दो महाशक्तियों के संबंधों को नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं. आखिर राष्ट्रपति ट्रंप रूस और पुतिन के साथ रिश्ते बेहतर क्यों करना चाहते हैं?
एंटी-अमेरिका ब्लॉक और ट्रंप की चिंता
हमने यही सवाल विदेश मामलों के विशेषज्ञ और डोनाल्ड ट्रंप पर लिखी गई किताब ‘ट्रम्पोटोपिया’ के लेखक रोबिंदर सचदेव से पूछा. वे कहते हैं, "राष्ट्रपति ट्रंप के लिए रूस के साथ रिश्ते सुधारने की सबसे बड़ी वजह यह है कि वे मानते हैं कि रूस मूल रूप से अमेरिका का दुश्मन नहीं है, और यह लंबा चला आ रहा अमेरिका-रूस टकराव दोनों देशों के हित में नहीं है. ट्रंप का मानना है कि रूस पर जरूरत से ज्यादा दबाव डालने से रूस चीन के और करीब चला गया है, जिससे एक मजबूत एंटी-अमेरिका ब्लॉक बन गया है. ट्रंप चाहते हैं कि रूस-चीन गठबंधन कमजोर हो और रूस को पश्चिमी देशों के साथ फिर से जोड़ने की गुंजाइश बने."
कुछ ऐसी ही राय रक्षा विशेषज्ञ कमर आगा रखते हैं. आजतक डॉट इन से बातचीत में उन्होंने कहा, "अमेरिका हर हालत में रूस को चीन से अलग करना चाहता है. क्योंकि चीन और रूस का एक मंच पर आना अमेरिका के लिए बड़ी टेंशन और चुनौती है. अमेरिका रूस से टकराव मोल लेकर चीन की चुनौतियों से नहीं निपट सकता है."
कमर आगा ने कहा कि अमेरिका को समझ आ चुका है कि रूस को तोड़ा नहीं जा सकता है. पुतिन को हटा नहीं सकते हैं. वे रूसी पावर के दो केंद्र सेना और चर्च दोनों का सपोर्ट एन्ज्वॉय करते हैं. पहले तो अमेरिका इस जंग में इसलिए था क्योंकि अमेरिकी पॉलिसी मेकर्स को लग रहा था कि पुतिन हट जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.
रोबिंदर सचदेव कहते हैं कि ट्रंप की प्राथमिकता है यूक्रेन युद्ध खत्म करना, जिसे वे यूरोप में स्थिरता लाने और एक बड़ा कूटनीतिक विजय हासिल करने का जरिया मानते हैं, जिससे उनकी पार्टी के लिए 2026 के कांग्रेस चुनावों में फायदा हो सकता है. रूस पर लगे प्रतिबंध हटने से वैश्विक ऊर्जा बाजार स्थिर होगा, जिससे अमेरिका में महंगाई घटेगी और ऊर्जा की लागत कम होगी. इन रणनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक कारकों की वजह से ट्रंप पुतिन के साथ रिश्तों को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं.
रक्षा विशेषज्ञ कमर आगा भी इस बात को मानते हैं कि अमेरिकी इकोनॉमी क्राइसेस में है. उन्होंने कहा कि रूस से अमेरिकी रिश्तों को बेहतर कर डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी हितों का ही पोषण कर रहे हैं.
ऐसे मौके पर रूस ने अमेरिका को अपने यहां निवेश के लिए आमंत्रित किया है. यही नहीं रूस ने कहा है कि अमेरिका यूक्रेन की उस जमीन पर भी पैसा लगा सकता है जहां पर अभी रूस का कब्जा है. गौरतलब है कि अभी यूक्रेन के 18 फीसदी हिस्से पर रूस का कब्जा है. अगर रूस अमेरिका के बीच रिश्ते अच्छे होते हैं तो अमेरिका रूस में मेटल इंडस्ट्री में निवेश करेगा.
शीत युद्ध का साया और भविष्य की उम्मीद
गौरतलब है कि अमेरिका और पूर्व USSR के बीच के रिश्ते बहुत पेचीदा रहे हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और रूस के रिश्ते संशय, प्रतिद्वंदिता, जासूसी, काउंटर जासूसी, कवर्ट और ओवर्ट ऑपरेशन में दुनिया के दो सबसे शक्तिशाली राष्ट्रों के डूबे रहने की कहानी है.
शीत युद्ध (Cold war) जिसे ऐतिहासिक रूप से 1940 के दशक के अंत से 1991 तक संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच वैचारिक और सैन्य गतिरोध के रूप में परिभाषित किया गया था, सोवियत संघ के विघटन के साथ औपचारिक रूप से समाप्त हो गया.
लेकिन दुनिया कोल्ड वार के साये से बाहर नहीं निकल सकी है. "शीत युद्ध" शब्द का इस्तेमाल आज अक्सर अमेरिका और रूस के बीच बढ़े हुए तनाव को दर्शाने के लिए किया जाता है. जैसे कि यूक्रेन, सीरिया या साइबर संघर्ष.
क्या ट्रम्प-पुतिन का तालमेल ऐसे तनावों को स्थायी रूप से समाप्त कर सकता है? यह एक ऐसा सवाल है जिसे सुरक्षा विशेषज्ञ और थिंक टैंक निश्चित पूर्वानुमानों के बजाय सतर्क विश्लेषण के साथ देखते हैं.
ये दोस्ताना तो ट्रंप और पुतिन का है
अमेरिकी थिंक टैंक ब्रूकिग्स इंस्टीट्यूट के लिए लिखे गए एक लेख में विशेषज्ञ रॉबर्ट कागन ने साफ साफ कहा था कि अमेरिका और रूस सहयोगी नहीं है, बल्कि ये दोस्ताना तो ट्रंप और पुतिन का है. ये 2018 की बात है जब ट्रंप-पुतिन के ब्रोमांस की चर्चा शुरू ही हुई थी. रॉबर्ग कागन ने कहा कि उनका संबंध उदारवादी विश्व व्यवस्था के साझा दृष्टिकोण से है जिसे बनाने में संयुक्त राज्य अमेरिका ने सात दशक पहले मदद की थी. दोनों नेता इसका विनाश चाहते हैं.
रोबिंदर सचदेव से हमने पूछा कि ट्रंप पारंपरिक अमेरिकी विदेश नीति के खिलाफ जाकर भी पुतिन से दोस्ती क्यों करना चाहते हैं?
इसके जवाब में उन्होंने कहा कि ट्रंप मानते हैं कि अमेरिकी विदेश नीति का पारंपरिक ढांचा, जिसे अक्सर ‘डीप स्टेट’ कहा जाता है, उसने बीते दशकों में रूस के साथ रिश्तों को गलत तरीके से संभाला, जिससे बेवजह की दुश्मनी बढ़ी और आम अमेरिकी जनता को इसका कोई ठोस फायदा नहीं मिला.
रोबिंदर सचदेव का मानना है कि ट्रंप ऐसा मानते हैं कि रूस को स्थायी दुश्मन मानने की नीति ने मॉस्को को चीन के और करीब ला दिया, जिससे एक शक्ति गठजोड़ बना जो सीधे अमेरिकी वैश्विक नेतृत्व के लिए चुनौती बन गया. रूस के साथ संबंध सामान्य कर ट्रंप चाहते हैं कि चीन को रणनीतिक रूप से अलग-थलग किया जाए, जो उनकी दीर्घकालिक विदेश नीति रणनीति का हिस्सा है. इसके अलावा, ट्रंप मानते हैं कि यूरोप को अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद उठानी चाहिए.
यही बात कमर आगा भी कहते हैं, जिनके अनुसार अमेरिका के लिए यूरोप नहीं इजरायल अहम है. जहां कच्चे तेल का भंडार है. दरअसल अमेरिका दुनिया में तेल के ऊपर कंट्रोल चाहता है.
रोबिंदर सचदेव के अनुसार अगर अमेरिका-रूस तनाव घटता है, तो अमेरिका के लिए यह मौका होगा कि वह यूरोप की सुरक्षा पर अपना वित्तीय और सैन्य बोझ कम कर सके. ट्रंप के लिए रूस से संबंध सुधारना सिर्फ रूस तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ रणनीति का हिस्सा है, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रीय हितों को नए सिरे से परिभाषित किया जा रहा है, भले ही इसके लिए दशकों पुरानी विदेश नीति परंपराओं को तोड़ना पड़े.
गौरतलब है कि बुधवार को ही अमेरिकी संसद को संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहा कि हमें ऐतिहासिक जनादेश मिला है, उन्होंने कहा कि अब आधुनिक इतिहास में पहली बार अधिक अमेरिकी यह मानते हैं कि हमारा देश गलत दिशा की बजाय सही दिशा में आगे बढ़ रहा है.
तो क्या ट्रंप-पुतिन की दोस्ती से अमेरिका-रूस का कोल्ड वॉर हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा?
रोबिंदर सचदेव बताते हैं, 'यह कहना बहुत मुश्किल है कि ट्रंप और पुतिन की दोस्ती से अमेरिका-रूस का शीत युद्ध (Cold War) हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा. इसकी वजह यह है कि दोनों देशों के बीच यूरोप, आर्कटिक और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में जो बुनियादी रणनीतिक प्रतिस्पर्धा है, वह ट्रंप और पुतिन की व्यक्तिगत दोस्ती से कहीं गहरी है.
भले ही ट्रंप और पुतिन की व्यक्तिगत केमिस्ट्री कुछ समय के लिए तनाव कम कर दे, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा प्रतिष्ठान -जिसमें पेंटागन, सीआईए और कांग्रेस के दोनों दलों के नेता शामिल हैं-रूस को लंबे समय का रणनीतिक खतरा मानते हैं. यह सोच ट्रंप के बाद किसी भी नए राष्ट्रपति के आते ही फिर से उभर सकती है.
रक्षा विशेषज्ञ रोबिंदर सचदेव ने कहा कि भले ही ट्रंप कुछ आर्थिक और सुरक्षा समझौते कर लें, लेकिन गहरा अविश्वास और टकराव की संभावनाएं बनी रहेंगी. ज्यादा से ज्यादा ट्रंप इस शीत युद्ध को ‘कूल स्टोरेज’ में डाल सकते हैं-यानी खुले टकराव को कुछ समय के लिए टाल सकते हैं -लेकिन यह कोई स्थायी समाधान नहीं होगा.