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राफेल डील पर बोली फ्रांसीसी कंपनी- सौदे के लिए रिलायंस को हमने चुना

पूरा विवाद फ्रेंच न्यूज वेबसाइट मीडियापार्ट में शुक्रवार को छपे लेख के बाद आया. फ्रेंच भाषा में छपे इस लेख में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के हवाले से कहा गया है कि अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस के साथ करार करने में फ्रांस सरकार की कोई भूमिका नहीं थी.

राफेल सौदा (फाइल फोटो-Reuters) राफेल सौदा (फाइल फोटो-Reuters)
वरुण शैलेश
  • नई दिल्ली/सैंट-क्लाउड,
  • 22 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 12:10 PM IST

फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान के बाद मचे घमासान के बीच फ्रांसीसी विमानन कंपनी दसॉ ने राफेल सौदे पर रिलायंस समूह और भारत सरकार के रुख की पुष्टि की है. कंपनी ने कहा है कि उसने खुद ही इस सौदे के लिए भारत की कंपनी रिलांयस को चुना है. एक जारी बयान में कंपनी ने कहा है कि रिलायंस समूह को रक्षा प्रक्रिया 2016 नियमों के मुताबिक चुना गया है.

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दसॉ एविएशन ने कहा कि राफेल सौदा भारत और फ्रांस सरकार के बीच एक अनुबंध था, लेकिन यह एक अलग तरह का अनुबंध था. इसमें दसॉ एविएशन को खरीद मूल्य के 50 फीसदी निवेश भारत में बनाने के लिए प्रतिबद्ध था. इसमें मेक इन इंडिया की नीति के अनुसार दसॉ एविएशन ने भारतीय कंपनी रिलायंस समूह के साथ साझेदारी करने का फैसला किया. यह दसॉ एविएशन की पसंद थी. इस साझेदारी ने फरवरी 2017 में दसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (डीआरएएल) संयुक्त उद्यम के निर्माण की शुरुआत की.

फ्रांसीसी विमानन कंपनी ने बताया कि दसॉ और रिलायंस ने फाल्कन और राफेल विमान के निर्माण के लिए नागपुर में एक प्लांट स्थापित किया है. नागपुर साइट को हवाई अड्डे के रनवे तक सीधे पहुंच के साथ जमीन की पर्याप्त उपलब्धता की वहज से चुना गया था. राफेल सौदे के तहत ऑफसेट कंट्रैक्ट के हिस्से के रूप में रिलायंस कंपनी के अलावा अन्य कंपनियों के साथ भी अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए थे.

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असल में, पूरा विवाद फ्रेंच न्यूज वेबसाइट मीडियापार्ट में शुक्रवार को छपे लेख के बाद आया. फ्रेंच भाषा में छपे इस लेख में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के हवाले से कहा गया है कि अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस के साथ करार करने में फ्रांस सरकार की कोई भूमिका नहीं थी. राफेल डील के लिए भारत सरकार ने अनिल अंबानी की रिलायंस कंपनी का नाम प्रस्तावित किया था. लिहाजा दसॉ एविएशन कंपनी के पास कोई और विकल्प नहीं था.

इसके अलावा कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने इस लेख को रीट्वीट करते हुए ओलांद से राफेल डील की कीमत बताने का आग्रह किया है. उन्होंने ओलांद से कहा, 'आप यह भी बताएं कि राफेल की साल 2012 में 590 करोड़ रुपये की कीमत साल 2015 में 1690 करोड़ कैसे हो गई? करीब-करीब 1100 करोड़ की वृद्धि. मैं जानता हूं कि यूरो की वजह से यह कैलकुलेशन की दिक्कत नहीं है.'

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