
'यूक्रेन रेड लाइन है और अगर नाटो ने इसे किसी भी सूरत में पार किया तो अंजाम ठीक नहीं होगा...'
पिछले साल नवंबर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देशों को सीधी चेतावनी दी थी. उसके बाद रूस ने यूक्रेन की सीमा पर सैनिकों की तैनाती बढ़ानी शुरू कर दी. तब से यूक्रेन में युद्ध रोकने की तमाम कोशिशें होती रहीं, रूस के खिलाफ पश्चिमी देश प्रतिबंध लगाते रहे लेकिन गुरुवार यानी 24 फरवरी को रूस ने यूक्रेन के शहरों पर चढ़ाई कर दी. यूक्रेन की सीमा को पार करते हुए रूसी टैंक शहरों की ओर दौड़ने लगे, रूसी मिसाइलें यूक्रेन की राजधानी कीव समेत तमाम शहरों पर बरसने लगीं और यूक्रेन की सेना और एयरफोर्स के अड्डों पर रूस की ताबड़तोड़ बमबारी ने पूरी दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध की आहट महसूस करा दी.
रूसी हमलों से तहस-नहस होते यूक्रेन के शहरों और लहूलुहान लोगों की तस्वीरें पूरी दुनिया को झकझोर रही हैं. युद्ध किस हद तक आगे बढ़ेगा इसपर पूरी दुनिया की निगाह है. लेकिन यूक्रेन की जंग ने सोवियत संघ के विघटन के 31 साल बाद कोल्ड वॉर का नया दौर शुरू कर दिया है ये बात तो अब साफ है. जिस यूक्रेन के पीछे अमेरिका समेत तमाम नाटो देश गोलबंद थे उसपर सीधा हमला करके रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने साफ संदेश दे दिया है कि दुनिया फिर दो गुटों में तनाव का नया दौर देखने जा रही है यानी Cold War-2 के हालात बन गए हैं.
सोवियत संघ की हिस्ट्री और पूर्वी यूरोप की स्ट्रेटजिक पोजिशन को समझने वाले एक्सपर्ट मानते हैं कि सिर्फ यूक्रेन तक अब ये लड़ाई सीमित रहेगी इसकी संभावना बिल्कुल ही नहीं है. बल्कि ये लड़ाई यूक्रेन के कई पड़ोसी देशों और बाल्टिक सागर के देशों को भी अपनी जद में लेगी और आने वाले कई महीनों और दशकों तक प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस लड़ाई की तपिश पूरी दुनिया को महसूस करनी ही होगी.
पुतिन ने रूसियों को कौन सा सपना दिखाया?
यूक्रेन पर हमले का ऐलान करते हुए गुरुवार को व्लादिमीर पुतिन ने अपने देश के लोगों से साफ कहा कि वह सोवियत संघ के काल वाला रूसी वर्चस्व अपने जीवनकाल में वापस दिलाकर रहेंगे. इस ऐलान को दुनियाभर के एक्सपर्ट इस रूप में देख रहे हैं कि आज भले ही यूक्रेन में जंग दिख रही हो लेकिन आने वाले महीनों और सालों में उस इलाके के बाकी देशों में भी इसी तरह की कार्रवाई रूस की ओर से देखने को मिल सकती है. दिसंबर 2021 में पुतिन ने पश्चिमी देशों पर धोखा देने का आरोप लगाया था. पुतिन ने कहा था कि 1990 के दशक में नाटो ने वादा किया था कि पूर्व में एक इंच भी विस्तार नहीं करेंगे. लेकिन पश्चिमी देशों ने इस वादे को तोड़ा है.
क्या है 'एक इंच' वाले वादे का सच?
हालांकि, पश्चिमी देश इस तरह के किसी वादे से इनकार करते हैं. दरअसल 1997 में रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसीन ने बिल क्लिंटन के सामने इस तरह का प्रस्ताव रखा था लेकिन क्लिंटन ने इसे खारिज कर दिया था. तब से अबतक नाटो का करीब तीन गुना विस्तार हो चुका है. पहले चेक रिपब्लिक, हंगरी और पोलैंड को नाटो में शामिल किया गया. फिर सात देशों को शामिल किया गया जिनमें पूर्व में सोवियत संघ का हिस्सा रहे एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया शामिल थे. इसके बाद 2009 में अल्बानिया और क्रोएशिया को नाटो में शामिल किया गया. लेकिन जब 2014 में यूक्रेन को शामिल करने की बात उठी तब तक रूस पुतिन की अगुवाई में मजबूत हो चुका था और उसने आपत्ति जताना शुरू कर दिया. इसकी पहली प्रतिक्रिया 2014 में क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर रूस ने दी और अब ये ताजा युद्ध.
कंसास यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और रूसी मामलों के जानकार Valery Dzutsati अंतरराष्ट्रीय मीडिया को दिए अपनी प्रतिक्रिया में कहते हैं- 'पुतिन का ये ऐलान कि वे यूक्रेन पर कब्जा नहीं चाहते बल्कि उसे डिमिलिटराइज करेंगे. काफी मायने रखता है. आखिर एक तानाशाही शासन वाला नेता अपने बॉर्डर पर ऐसा देश कैसे बर्दाश्त कर सकता है जहां लोकतांत्रिक तरीके से सरकार का चुनाव होता हो. जो हर चीज के लिए रूस नहीं बल्कि पश्चिमी देशों की ओर देखता हो. रूस में लोकतंत्र के लिए उठ रही आवाजों को दबाने के लिए यूक्रेन पर कार्रवाई एक बड़ा संदेश दे सकता है.'
Dzutsati मानते हैं कि पुतिन की ये महत्वाकांक्षा यूक्रेन तक ही रुक जाएगी ऐसा नहीं लगता. एक बार यूक्रेन पर नियंत्रण कर लेने के बाद कुछ हफ्तों की शांति के बाद यही रुख बाल्टिक देशों को लेकर दिख सकता है. जहां रूस नाटो का प्रभाव खत्म कर अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है. पुतिन के लॉन्ग टर्म ड्रीम में इन देशों के लिए आने वाला खतरा काफी स्पष्ट दिख रहा है.
कहां से बनना शुरू हुआ इस जंग का बैकग्राउंड?
दिसंबर 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद से यूरोप के इस इलाके में अमेरिका और सहयोगी नाटो देशों का वर्चस्व बढ़ने लगा. रूस इसे खुद के लिए अपमान के रूप में देख रहा था. यूक्रेन जैसे देश जो कभी सोवियत साम्राज्य का हिस्सा हुआ करते थे अमेरिका के गुट में शामिल हो जाएं इसे रूस कुछ सालों तक तो बर्दाश्त करता रहा लेकिन पुतिन के शासनकाल में जैसे-जैसे रूस आर्थिक और सैन्य रूप से फिर मजबूत होता गया पलटवार की तैयारी भी तेजी से बढ़ने लगी.
पूर्वी यूरोप के इलाके में अपनी पैठ बनाने के लिए नाटो ने साल 2004 में इस इलाके से 7 देशों को अपना मेंबर बनाया जिसमें पूर्व सोवियत संघ के सदस्य रहे बाल्टिक देश एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया जैसे देश भी शामिल थे. 2014 में यूक्रेन में रूस समर्थक सरकार को हटा दिया गया और नई सरकार ने अमेरिका के साथ नजदीकी दिखाई. तब से यूक्रेन के नाटो में शामिल होने की अटकलें तेज हो गईं. रूसी बॉर्डर से सटे इलाकों में नॉटो के सैन्य अभ्यास ने रूस को और भड़का दिया. रूस ने यहीं से आक्रामक रुख दिखाना शुरू कर दिया.
साल 2014 में क्रीमिया पर कब्जा करके रूस ने पहला कदम उठाया. इसके बाद डोनबास के इलाके को भी यूक्रेन से काटकर विद्रोहियों को मदद दे रूस ने अपने फ्यूचर प्लान का संकेत दे दिया. इससे पहले 2008 में जब नाटो ने जॉर्जिया को मेंबर बनाने की मंशा जताई थी तब भी पुतिन की सेना ने जॉर्जिया में घुसकर जमकर तबाही मचाई थी. साफ संकेत था कि पुतिन के काल का मजबूत रूस अपने पड़ोस में नाटो की मौजूदगी को अब बर्दाश्त करने को कतई तैयार नहीं है. इसके बावजूद यूक्रेन प्लान पर नाटो आगे बढ़ रहा था. यही वर्तमान जंग का तत्कालिक कारण साबित हुआ है. नाटो के साथ-साथ रूस पूर्वी यूरोप में यूरोपीय संघ के बढ़ते प्रभाव से भी नाराज है. बाल्टिक क्षेत्र के तीन देश लातविया, लिथुआनिया, एस्टोनिया के अलावा पोलैंड, हंगरी, Czechia, स्लोवाकिया, रोमानिया, बुल्गारिया, क्रोएशिया EU के फुल टाइम मेंबर हैं. जबकि अल्बानिया, मोंटनेग्रो और नॉर्थ मेसोडोनिया जैसे देश नाटो में शामिल हो चुके हैं.
अब आगे क्या?
यूक्रेन पर रूस के हमले ने पड़ोसी देशों को भी डरा दिया है. पड़ोस के देश रोमानिया, पोलैंड, लातविया, एस्टोनिया सब अलर्ट पर हैं. इन देशों में इमरजेंसी का ऐलान कर दिया गया है और सेना किसी भी हमले का सामना करने के लिए तैयार रखी गई है. ये वे देश हैं जो नाटो के मेंबर बन चुके हैं और रूस की आंखों में लगातार खटकते रहे हैं. रूस नाटो देशों के खिलाफ खड़ा होकर सोवियत संघ के पुराने प्रभाव वाले इलाकों में फिर वर्चस्व स्थापित करना चाहता है.
इसके लिए वह नाटो देशों को मध्य यूरोप, पूर्वी यूरोप और बाल्टिक इलाकों में 1997 के पहले की सीमा रेखा से पीछे हट जाने को लगातार कहता है. अगर ऐसा हुआ तो नाटो देशों को न केवल यूक्रेन बल्कि लातविया, एस्टोनिया समेत कई देशों से पीछे हटना होगा. रूस ने पिछले साल दिसंबर माह में साफ कहा था कि न तो वह रूसी सीमा की ओर नाटो का विस्तार बर्दाश्त करेगा और ना ही यूक्रेन जैसे पड़ोसी देशों में नाटो की ओर से हथियारों की तैनाती को. तभी से रूस यूक्रेन बॉर्डर पर सेना की तैनाती बढ़ती चली गई और अब हमले के रूप में उसका प्लान सामने आ गया है.
1997 के पहले के पोजिशन पर नाटो के लौटने का मतलब ये है कि एस्टोनिया जैसे कई देश जो अब नाटो के मेंबर हैं उन्हें मेंबरशिप से पीछे हटना होगा. एस्टोनिया के रक्षा मंत्री रूसी डिमांड को लेकर कहते हैं- 'इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता. रूस की इस मांग को मानना यूरोप की सुरक्षा के लिए घातक साबित हो सकता है.' रूस की इस मांग से रोमानिया, एस्टोनिया, लातविया जैसे देशों में डर का माहौल है. नाटो ने इन देशों में सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी है ताकि किसी भी रूसी हमले की सूरत में डिफेंस किया जा सके.
यूक्रेन के पड़ोसी देशों में डर क्यों?
यूक्रेन पर हमले के बाद पड़ोसी देशों में डर बेवजह नहीं है. जिस तरीके से रूस किसी देश में रूसी आबादी के समर्थन का बहाना लेकर घुसता है उसे देखकर ये डर लाजिमी है. 2014 में रूस ने क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर अपने साथ ये कहकर मिला लिया कि रूसी कम्युनिटी की रक्षा करने के लिए ये जरूरी है. पिछले हफ्ते भी रूस ने यूक्रेन के जिन दो इलाकों Donetsk-Luhansk को अलग देश के रूप में मान्यता दी वहां भी पुतिन ने रसियन कम्युनिटी के लोगों की सुरक्षा का हवाला दिया. अब एस्टोनिया, माल्डोवा, लिथुआनिया जैसे देशों के कई शहरों में रूसी आबादी अच्छी खासी है वहां की सरकारों में भी डर है. जैसे एस्टोनिया के Narva शहर की 80 फीसदी से अधिक आबादी रूसी मूल की है. पहले ये इलाका सोवियत साम्राज्य का हिस्सा था. लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद ये इलाके नाटो के प्रभाव में आ गए.
क्या है पुतिन का Novorossiya?
अधिक रूसी आबादी वाले दूसरे देशों के हिस्सों को पुतिन New Russia यानी Novorossiya कहते हैं. इस शब्दावली का इस्तेमाल 18वीं शताब्दी में रूसी साम्राज्य के इलाकों के लिए होता था. अब यूक्रेन का हश्न देखकर रूसी आबादी वाले पड़ोसी देशों में खौफ का माहौल बनेगा. पुतिन की रूसी सेना के हमले के खतरे को देखते हुए अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने बाल्टिक सागर के देशों पोलैंड, रोमानिया, बुल्गारिया, हंगरी और स्लोवाकिया जैसे देशों में अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती की है. पूरी दुनिया कोल्ड वॉर के इस नए दौर पर नजर गड़ाए हुए है. यूक्रेन के साथ रूस क्या करता है, आगे कार्रवाई किस दिशा में जाती है ये इस आधार पर तय होगा कि रूस पूर्वी यूरोप और बाल्टिक देशों के साथ क्या स्ट्रेटजी अपनाएगा?
यूक्रेन के समाज में लंबे समय तक रहेगी ये टीस
यूक्रेन सोवियत संघ के संस्थापक देशों में से एक था लेकिन जब 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ तो स्वतंत्र देश के रूप में अस्तित्व में आया. यूक्रेन में रूसी समुदाय की अच्छी खासी आबादी है और सांस्कृतिक रूप से भी रूसी समुदाय यूक्रेनियंस के काफी करीब है. यूक्रेन में रूसी समुदाय के नेता चुनाव भी जीतते रहे हैं. लेकिन अब युद्ध के हालात में दोनों समुदायों के मन में आई दरार को भरना आसान नहीं होगा. रूसी समुदाय में एक बड़ी आबादी उस सपने के साथ है जो पुतिन दिखा रहे हैं. सपना पुराने सोवियत साम्राज्य के गौरव की वापसी का है जिसे रूस के अंदर के लोग और पूर्व के सोवियत देशों में रह रहे रूसी समुदाय के लोग देख रहे हैं. महाबली अवतार ले चुके पुतिन इस सपने को पूरा करने का दम भर रहे हैं तो जाहिर है उससे जुड़े देशों में डर का माहौल तो बनेगा.