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Mette Frederiksen: डेनमार्क की सबसे कम उम्र की PM, जिन्होंने ठुकरा दिया था ट्रंप का प्रस्ताव

डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन ने कम समय में लंबा राजनीतिक सफर तय कर लिया है. वे डेनमार्क की सबसे कम उम्र वालीं प्रधानमंत्री हैं. इसके अलावा वे अपने कठोर फैसलों की वजह से हमेशा चर्चा में बनी रहती हैं.

पीएम मोदी के साथ डेनमार्क प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन पीएम मोदी के साथ डेनमार्क प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिक्सन
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 मई 2022,
  • अपडेटेड 8:43 PM IST
  • नेटो सदस्य है डेनमार्क, रूस की धमकी के आगे नहीं झुका
  • भारत को मानती हैं मजबूत साझेदार, मोदी से मुलाकात

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को डेनमार्क की पीएम मेटे फ्रेडरिक्सन से मुलाकात की. दोनों नेताओं के बीच कई मुद्दों पर सहमति बनी और बाद में एक साझा बयान भी जारी किया गया. जो तस्वीरें भी सामने आईं उनको देख कहा गया कि आने वाले समय में भारत और डेनमार्क की एक मजबूत साझेदारी दिखने वाला है.

लेकिन इस सब के बीच सवाल तो ये भी है कि आखिर मेटे फ्रेडरिक्सन से पीएम की कुर्सी तक का ये सफर कैसे तय किया? कैसे मेटे फ्रेडरिक्सन डेनमार्क की सबसे युवा प्रधानमंत्री बन गईं? अब डेनमार्क पीएम की जैसी राजनीति रही है, जैसा उनका अंदाज है, वे हर मुद्दे पर हमेशा खुलकर बोलने में विश्वास दिखाती हैं. 

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यूक्रेन का समर्थन, रूस के खिलाफ उठाई आवाज

इस समय  जब रूस और यूक्रेन के बीच में भीषण युद्ध जारी है, मेटे फ्रेडरिक्सन ने साफ तौर पर अपने देश का स्टैंड स्पष्ट कर दिया है. यूक्रेन की दोनों हाथों से मदद की जा रही है, लगातार हथियारों की सप्लाई हो रही है और खुद पीएम मेटे भी यूक्रेन का दौरा कर चुकी हैं. उनका देश नेटो का सदस्य है, ऐसे में रूस की धमकी उन्हें भी लगातार मिली है. लेकिन इस सब के बावजूद भी वे ना झुकी हैं और ना ही अपने सिद्धांतों से उन्होंंने कोई समझौता किया है.

ट्रंप के प्रस्ताव को किया था खारिज

इससे पहले भी डेनमार्क पीएम की एक ऐसी छवि देखने को मिली है जहां पर वे कोई भी फैसला किसी को खुश करने के लिए नहीं लेती हैं. जो भी उन्हें सही लगता है, उनका कदम सिर्फ और सिर्फ उस दिशा में आगे बढ़ जाता है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण तब देखने को मिल गया था जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने डेनमार्क में मौजूद द्वीप ग्रीनलैंड को खरीदने की पेशकश की थी. अब यहां पर ये जानना जरूरी हो जाता है कि ग्रीनलैंड दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप है और अमेरिका द्वारा 1946 में भी इसे खरीदने की कोशिश की गई थी.

 

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लेकिन ना तब बात बन पाई थी और ना ही इस बार तब बन पाई जब ट्रंप ने इसे खरीदने की बात कर दी. बताया जाता है कि ट्रंप की इस इच्छा के बारे में डेनमार्क किंगडम के स्वायत्त क्षेत्र ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री को बताया गया था. लेकिन उन्होंने इसे बिकाऊ ना बताते हुए प्रस्ताव को सिरे से खारिज किया था. बाद में मेटे फ्रेडरिक्सन ने भी इस पूरी चर्चा को ही बेतुका करार दिया था. उनके उस रवैये की वजह से तब डोनाल्ड ट्रंप ने डेनमार्क का दौरा ही रद्द कर दिया था.

डेनमार्क पीएम का राजनीतिक सफर

मेटे फ्रेडरिक्सन के निजी जीवन की बात करें तो उनका जन्म 19 नवंबर 1977 को डेनमार्क के आलबोर्ग में हुआ था. आलबोर्ग यूनिवर्सिटी से ही साल 2000 में उन्होंने अपना ग्रैजुएशन पूरा किया था और फिर एक साल बाद वे डेनमार्क की सदन की सदस्य बन गई थीं. उस समय उनकी उम्र महज 24 साल थी. फिर दस साल बाद उनकी राजनीतिक जीवन में एक बड़ा मौका आया जब प्रधानमंत्री Helle Thorning Schmidt ने उन्हें अपनी सरकार में मंत्री का पद दिया. उन्हें तब 34 साल की उम्र में रोजगार मंत्री बनाया गया.

इसके बाद 2015 में मेटे फ्रेडरिक्सन ने नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी बखूबी संभाली. प्रधानमंत्री बनने से पहले तक वे इसी पद पर बनी रहीं और कई मुद्दों पर उनकी सरकार के साथ तकरार देखने को मिली. लेकिन बाद में जून 2019 में डेनमार्क में बड़ा राजनीतिक परिरवर्तन हुआ और मेटे फ्रेडरिक्सन देश की दूसरी महिला प्रधानमंत्री बन गईं. दूसरी महिला पीएम के अलावा सबसे कम उम्र में पीएम बनने का तमगा भी उन्हें ही दिया गया.

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जब भारत आई थीं मेटे फ्रेडरिक्सन

प्रधानमंत्री बनने के बाद मेटे फ्रेडरिक्सन ने पिछले साल भारत का दौरा भी किया था. वे तब अपने पति बो टेंगबर्ग के साथ आई थीं और उन्होंने ताजमहल का दीदार भी किया था. उस दौरे में उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी हुई थी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी. ऐसे में अब जब पीएम मोदी डेनमार्क आए हैं, तो मेटे फ्रेडरिक्सन भी इसकी अहमियत समझती हैं और इसी वजह से वे भारत को अपना करीबी साझेदार मान रही हैं.

 

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