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चीन की आपत्ति के बावजूद अमेरिका को लेकर नेपाल का बड़ा फैसला, संसद में बहुमत से पास MCC

अमेरिकी सहयोग परियोजना (Millennium Challenge Corporation- MCC) को अमेरिका ने हर हाल में 28 फरवरी तक नेपाल की संसद से पास करने का अल्टिमेटम दिया था. अमेरिका की बात मानते हुए अब नेपाल ने चीन से दुश्मनी मोल ले ली है.

नेपाल की संसद ने पास किया अमेरिकी परियोजना एमसीसी नेपाल की संसद ने पास किया अमेरिकी परियोजना एमसीसी
सत्यजीत कुमार
  • नई दिल्ली,
  • 01 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 10:33 AM IST
  • अमेरिकी सहयोग परियोजना संसद में बहुमत से पास
  • नेपाल को अमेरिका ने दिया था अल्टीमेटम
  • चीन भी लगातार कर रहा था विरोध

चीन के तमाम विरोध, चेतावनी और हस्तक्षेप के बावजूद, नेपाल के सत्ताधारी गठबंधन ने अमेरिकी सहयोग परियोजना (Millennium Challenge Corporation- MCC) को संसद ने बहुमत से पास कर दिया है. रविवार की देर शाम तक चली संसद की कार्यवाही में एमसीसी पारित करने के साथ ही, व्याख्यात्मक टिप्पणी को भी सदन से पारित कर दिया गया है.  

रविवार दोपहर से शुरू हुई संसद की कार्यवाही में 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर के आर्थिक सहयोग संबंधी एमसीसी परियोजना पर चर्चा के बाद हुए मतदान में, इसे बहुमत से पारित कर दिया गया. अमेरिका ने इस परियोजना को हर हाल में 28 फरवरी तक संसद से पास करने का अल्टिमेटम दिया था. अल्टिमेटम के एक दिन पहले ही, सत्ताधारी गठबंधन में नाटकीय ढंग से आए परिवर्तन के बाद इस परियोजना को संसद से मंजूरी मिल गई. 

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दरअसल, प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में रहे गठबंधन के दो प्रमुख घटक दल, माओवादी और एकीकृत समाजवादी पार्टी शुरू से ही इस बात पर अड़े थे कि एमसीसी नेपाल के हित में नहीं है, यह राष्ट्रघाती समझौता है. इसको स्वाकार नहीं करना चाहिए. 

इन दोनों दलों के विरोध के पीछे चीन का दबाब काम कर रहा था. चीन ने खुलेआम नेपाल को एमसीसी नहीं स्वीकारने के लिए नेपाली राजनीतिक दलों पर दबाब डाला था. चीन का यह तर्क था कि अमेरिका एमसीसी के जरिए नेपाल में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाएगा और वहां से तिब्बत के जरिए, चीन को अस्थिर करने की कोशिश कर सकता है. इसे लेकर चीन की सरकारी मीडिया के जरिए लगातार आपत्ति जताई जाने लगी. 

इतना ही नहीं, चाईनीज कम्यूनिस्ट पार्टी के विदेश विभाग के प्रमुख सैंग टाओ (Sang Tao) हर दूसरे दिन नेपाल के सत्ताधारी नेताओं को फोन और वर्चुअली मीटिंग के ज़रिए, एमसीसी को अस्वीकृत करने के लिए दबाब डालते रहे. विदेश विभाग के अन्य उपप्रमुख और सहायक मंत्री तो लगभग रोज ही यहां के कम्यूनिस्ट नेताओं को फोन करते थे. 

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यही वजह थी कि अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू ने नेपाल के प्रधानमंत्री देउबा सहित सत्तारूढ़ दल के नेता प्रचण्ड और माधव नेपाल को फोन कर, 28 फरवरी तक हर हाल में एमसीसी को संसद से पारित करने के लिए दबाब डाला. इतना ही नहीं अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री लू ने नेपाल सरकार और नेपाली राजनीतिक दलों के नेताओं को चेतावनी दी कि अगर संसद से एमसीसी पास नहीं होता है, तो इसे सीधे-सीधे चीन का हस्तक्षेप माना जाएगा और उसके बाद नेपाल के साथ कूटनीतिक संबंधों पर अमेरिका पुनर्विचार करने पर मजबूर हो जाएगा. अमेरिकी चेतावनी के बाद प्रधानमंत्री ने इसे गंभीरता से लिया और सत्तारूढ गठबंधन तोड़कर भी, एमसीसी पास करने का प्रयास करने लगे. 

अमेरिका के मंत्री की चेतावनी के 24 घंटे बाद ही, अमेरिका के विदेश मंत्री ने एक भारतीय मीडिया को इंटरव्यू देते हुए नेपाल की अपनी नीति पर पुनर्विचार करने और अमेरिका सहित सभी मित्र देशों और आर्थिक मदद करने वाली संस्थाओं जैसे वर्ल्ड बैंक, एशियाई विकास बैंक, यूएन की तमाम डोनर संस्थाओं की तरफ से, हर साल दिए जाने वाली आर्थिक मदद पर इसका सीधा असर पड़ने तक की बात कह डाली. 

अमेरिका के इन बयानों के बाद बौखलाए चीन ने अपने विदेश मंत्रालय के जरिए, अमेरिका का विरोध करना शुरू कर दिया था. पिछले दिनों 24 घंटे में दो बार चीन की तरफ से नेपाल को अमेरिकी सहयोग को लेकर सतर्क रहने को कहा गया. इतना ही नहीं, अमेरिका की चेतावनी पर चीन ने तंज कसते हुए कहा कि यह कैसी आर्थिक मदद है जो डरा धमका कर दी जा रही है. अमेरिका की इस धमकीपूर्ण कूटनीति का हम विरोध करते हैं. नेपाल एक स्वतंत्र और सार्वभौमिक देश है, इसलिए इस तरह का डर धमकीपूर्ण भाषा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. 

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जवाब में अमेरिका ने भी कहा कि नेपाल अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है और जिस देश से चाहे वो आर्थिक मदद ले सकता है. इसमें किसी तीसरे देश को बोलने की या सलाह देने की कोई जरूरत नहीं है. अगले ही दिन, चीन ने अमेरिका को पलटकर कहा कि यह आर्थिक मदद है या पंडोरा बॉक्स, जो जबरदस्ती नेपाल के गले में बांधा जा रहा है. 

अमेरिका और चीन के बीच कूटनीति की तमाम मर्यादा को लांघते हुए, निम्न स्तर की भाषा के प्रयोग के बीच आखिरकार चीन को झुकना पडा. सिर्फ झुकना ही नहीं, बल्कि उसे शर्मिंदगी का सामना करना पडा, जब सत्ता में बैठे उसके विश्वासपात्र तीन महत्वपूर्ण नेताओं ने चीन का भरोसा तोडकर, अमेरिका का पक्ष लेने का फैसला कर लिया. 

नेपाल में चीन को यह बहुत बडा झटका है और धमकी ही सही, अमेरिका चीन को उसके पड़ोस में ही पटखनी देने में कामयाब हो गया. अब बौखलाया चीन नेपाल के खिलाफ क्या कदम उठाएगा, इसको लेकर नेपाल के कम्यूनिस्ट नेताओं में अलग ही चिंता है. 

माओवादी के वरिष्ठ नेता और नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री नारायणकाजी श्रेष्ठ ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि चीन के खिलाफ जाकर अमेरिका को सपोर्ट करने से, नेपाल की हालत यूक्रेन जैसी ना हो जाए. जिस तरह से अमेरिका के उकसाने पर यूक्रेन को रूस के आक्रमण का सामना करना पड़ रहा है, इसी तरह के हालात नेपाल में नहीं होंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है.

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