
भारत (India) और तालिबान (Taliban) सरकार के बीच एक बार फिर राजनयिक संबंध (Diplomatic Relations) शुरू हो गए हैं. सोमवार का काबुल में भारतीय दूतावास में कामकाज शुरू कर दिया गया. वहीं, तालिबान ने भारत के इस कदम की सराहना की और भारतीय राजनयिकों (India Diplomats) को पूर्ण समर्थन और सुरक्षा का आश्वासन दिया है. इसके साथ ही तालिबान सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि चीन को अफगानिस्तान में सैन्य अड्डा (Army Base) बनाने की अनुमति नहीं दी जाएगी.
बता दें कि पिछले साल तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था. तब काबुल में भारतीय दूतावास को अस्थायी तौर पर बंद कर दिया गया था. अब सोमवार से काबुल में फिर से भारतीय दूतावास में कामकाज शुरू हो गया है. अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल कहार बल्खी ने आज तक से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि भारत के 13वें राजनयिक काबुल पहुंच गए हैं और अपना काम फिर से शुरू कर दिया है.
पड़ोसियों से अच्छे संबंध चाहते हैं: अफगानिस्तान
बल्खी ने कहा- 'हमने भारतीय राजनयिकों का स्वागत किया है और उन्हें अफगानिस्तान में पूर्ण सहयोग और सुरक्षा का आश्वासन दिया है. उन्होंने ये भी कहा कि अफगानिस्तान भारत समेत सभी पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध चाहता है.
उम्मीद है भारत फिर से काम शुरू करेगा
अफगानिस्तान में कई ऐसे डेवलटमेंट प्रोजेक्ट हैं, जो अभी अधूरे पड़े हैं. इस संबंध में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि अफगानिस्तान में भारत की कई परियोजनाएं हैं. कुछ पूरी हो चुकी हैं. कुछ अधूरी हैं. हम उम्मीद करते हैं कि भारत अफगानिस्तान के विकास के लिए उन पर काम फिर से शुरू करेगा.
'पॉलिटिकल गोल्स के लिए हम मोहरा नहीं बनेंगे'
वहीं, अफगानिस्तान में चीन द्वारा सैन्य अड्डा बनाने की मीडिया रिपोटर्स को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि हम पड़ोसियों के साथ राजनयिक और आर्थिक संबंध चाहते हैं. लेकिन, राजनीतिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अपनी जमीन का उपयोग नहीं होने देंगे.
पाक-अफगानिस्तान को लेकर चीन का ये है प्लान
दरअसल, मीडिया रिपोटर्स में कहा जा रहा है कि चीन ने अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल के तहत पाकिस्तान और अफगानिस्तान में काफी निवेश किया है. ऐसे में चीन अपने निवेश की सुरक्षा के लिए दोनों देशों में सुरक्षा चौकियां बनाकर सेना को तैनात करने की योजना बना रहा है. शीर्ष राजनयिक सूत्रों से ये जानकारी सामने आ रही है.
समाचार एजेंसी ANI के मुताबिक, चीन पाकिस्तान-अफगानिस्तान के जरिए मध्य एशिया में अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहता है. इसी वजह से उसने दोनों देशों में रणनीतिक निवेश किया है. पाकिस्तान में अब तक चीनी निवेश 60 अरब डॉलर से अधिक हो गया है. ऐसे में पाकिस्तान न सिर्फ वित्तीय बल्कि सैन्य और राजनयिक समर्थन के लिए भी चीन पर निर्भर है.