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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले वर्ष पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका का नाम वापस लेकर सभी को चौंका दिया था. लेकिन अब अमेरिका ने इसमें वापसी के संकेत दिए हैं. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को कहा कि उनके देश के फिर से पेरिस जलवायु समझौते में शामिल होने की संभावनाएं हैं.
ट्रंप ने कहा, ''साफ तौर पर कहूं तो इस समझौते से मुझे कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन उन्होंने जिस समझौते पर हस्ताक्षर किए मुझे उससे दिक्कत थी क्योंकि हमेशा की तरह उन्होंने खराब समझौता किया.''
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि हम संभावित रूप से समझौते में फिर से शामिल हो सकते हैं. पिछले साल जून में ट्रंप ने ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार उत्सर्जन पर रोक लगाने के लिए 2015 में हुए समझौते से अलग होने की मंशा जताई थी. समझौते से अलग होने की प्रक्रिया लंबी और जटिल है और ट्रंप की टिप्पणियों से यह सवाल उठेंगे कि क्या वह वास्तव में अलग होना चाहते हैं या अमेरिका में उत्सर्जन की राह आसान बनाना चाहते हैं.
नॉर्वे की प्रधानमंत्री एर्ना सोलबर्ग के साथ संयुक्त रूप से संवाददाता सम्मेलन का संबोधित करते हुए ट्रंप ने खुद को पर्यावरण का हितैषी दिखाया. उन्होंने कहा कि मैं पर्यावरण को लेकर गंभीर हूं, हम स्वच्छ जल, स्वच्छ हवा चाहते हैं लेकिन हम ऐसे उद्यम भी चाहते हैं जो प्रतिस्पर्धा में बने रहे सकें.’’
ट्रंप बोले कि नॉर्वे की सबसे बड़ी संपत्ति जल है, उनके पास पनबिजली का भंडार है. यहां तक कि आपकी ज्यादातर ऊर्जा या बिजली पानी से उत्पन्न होती है. काश हम इसका कुछ हिस्सा ही कर पाएं.’’
गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते से अलग कर लिया था. ट्रंप का कहना था कि इस समझौते में भारत और चीन के लिए सख्त प्रावधान नहीं किए गए थे, जबकि ये दोनों देश प्रदूषण रोकने के लिए कुछ नहीं कर रहे थे. इस तरह ग्लोबल वार्मिंग से निपटने की अंतरराष्ट्रीय कोशिशों से अमेरिका अलग हो गया. उस दौरान भारत समेत दुनिया के कई बड़े देशों ने अमेरिका के इस फैसले का भारी विरोध किया था.
उस दौरान ट्रंप ने ऐलान किया था कि पेरिस जलवायु समझौता अमेरिका के लिए बेहद खराब करार है. इस समझौते से अमेरिका को अलग करने की घोषणा करते हुए ट्रंप ने यह भी कहा कि वह पेरिस समझौते पर फिर से बातचीत शुरू करेंगे, ताकि अमेरिका और इसके लोगों के हित में उचित समझौता किया जा सके.
सिर्फ अमेरिका दे रहा पैसा
ट्रंप के अनुसार, भारत और चीन इस पर कुछ खास नहीं कर रहे थे. भारत को लगातार इस मुद्दे पर विदेशी मदद मिल रही है. 2015 में भारत को 3.1बिलियन डॉलर की मदद मिली थी, जिसमें से कुल 100 मिलियन डॉलर की मदद तो सिर्फ अमेरिका ने ही की थी. अनुमान के मुताबिक इस मदद का आंकड़ा 2018 तक 34 मिलियन डॉलर तक जा सकता था.