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बर्फ के नीचे अंडरग्राउंड बस्तियां और सैकड़ों सैनिक, ग्रीनलैंड में छिपा है अमेरिका का कौन सा विनाशकारी सच?

डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने जा रहे हैं. इससे पहले से ही वे कई मुद्दों पर बात करते रहे, जिनमें से एक है ग्रीनलैंड. ट्रंप लगातार इसे अमेरिका का हिस्सा बनाने पर जोर देते रहे. इस क्षेत्र का रणनीतिक लिहाज से अहम होना अकेली वजह नहीं, बल्कि बर्फ के नीचे एक बड़ा सीक्रेट है, जिसे यूएस साठ के दशक में दफन कर चुका.

डोनाल्ड ट्रंप खुले तौर पर ग्रीनलैंड को यूएस से जुड़ने का प्रस्ताव दे चुके. (Photo- Reuters) डोनाल्ड ट्रंप खुले तौर पर ग्रीनलैंड को यूएस से जुड़ने का प्रस्ताव दे चुके. (Photo- Reuters)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 1:19 PM IST

डोनाल्ड ट्रंप के आधिकारिक तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति बनने से पहले से ही कई चीजें उनके मुताबिक होती जा रही हैं. मसलन, कनाडा के पूर्व पीएम जस्टिन ट्रूडो को आखिरकार पद छोड़ना पड़ा, या फिर हमास-इजरायल फ्रंट पर शांति दिखने लगी. इस बीच ग्रीनलैंड भी सुर्खियों में है. आर्कटिक और नॉर्थ अटलांटिक महासागर के बीच बसे इस द्वीप देश को ट्रंप यूएस का नया राज्य बनाना चाहते हैं. वैसे अमेरिका पहले भी यहां एक सीक्रेट प्रोजेक्ट चला चुका. बर्फीली सुरंगों के उसका मिलिट्री बेस बना हुआ था, जिसका टारगेट था तत्कालीन सोवियत संघ. 

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अब इसकी चर्चा क्यों हो रही है?

कुछ साल पहले नासा के वैज्ञानिकों को एक चौंकाने वाली जानकारी मिली. हुआ यूं कि नासा गल्फस्ट्रीम 3 ने बर्फीले इलाकों के सर्वे के दौरान ग्रीनलैंड में कुछ अलग सा देखा. जांच में समझ आया कि बर्फ की परतों के नीचे अमेरिका का मिलिट्री बेस बसा हुआ था. कैंप सेंचुरी नाम से यह कैंप बर्फ के भीतर सुरंगें बनाकर तैयार किया गया. अमेरिका का इरादा था कि वो बर्फ के अंदर ही अंदर लगभग चार हजार किलोमीटर लंबी टनल बना ले, जिसका मुंह सोवियत संघ की तरफ हो. 

अंडरग्राउंड बस्ती में जीने के सारे इंतजाम

योजना के मुताबिक काम चल पड़ा, जिसे नाम मिला कैंप सेंचुरी. ये एक पूरी बस्ती थी, जो भूमिगत थी. इसमें चर्च, दुकानें और घर थे, जहां सैकड़ों सैनिक एक साथ रह सकें. द पॉलिटिको की रिपोर्ट के अनुसार, इसे बनाने के लिए अमेरिका ने उपकरण भेजने शुरू किए. पिटफिक स्पेस बेस आखिरी पड़ाव था, जिसके बाद स्लेज से सामान भेजा जा रहा था. यूएस की ये बेहद महत्वाकांक्षी योजना थी. प्लान के मुताबिक, छह सौ के करीब न्यूक्लियर मिसाइलें बर्फ के भीतर छिपाई जा सकती थीं. 

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क्यों रुक गया काम

भूमिगत बस्ती बनाने और उसमें न्यूक्लियर प्रोजेक्ट तैयार करने का काम कुछ समय तक चला लेकिन फिर शुरू हुई असल दिक्कत. बर्फीली सुरंगें पिघलने लगीं. कहीं-कहीं बर्फ धसकने के चलते काफी सारे उपकरण दब गए. मौसम तो प्रतिकूल था ही, साथ ही अमेरिका से ग्रीनलैंड तक साजोसामान भेजने में भी काफी पैसे खर्च हो रहे थे. कई बार ये भी हुआ कि बर्फ का बड़ा टुकड़ा एकदम से चलने लगा. विपरीत हालातों के कारण साल 1966 तक कैंप सेंचुरी खाली हो गई. सारे सैनिक और इंजीनियर वहां से जा चुके थे. पीछे छूटा हुआ था, न्यूक्लियर मलबा, ईंधन और हथियार. 

फिर कैसे खुला भेद

प्रोजेक्ट का शटर बंद हो चुका था. अमेरिकी आर्मी ने माना कि बर्फ की आंधियां अपने-आप ही सारे कैंप को खत्म कर देंगी, या खत्म न भी कर सकें तो ये सीक्रेट नीचे ही दबा रहेगा. साठ के दशक में ग्लोबल वार्मिंग का कंसेप्ट उतना चलन में नहीं था. लेकिन बर्फ पिघलने लगी और यूएस का जतन से दबा ये सीक्रेट न केवल ग्रीनलैंड, बल्कि सारी दुनिया के सामने आ गया. ये बात होगी नब्बे के दशक की. इस जानकारी के सामने आने के बाद ही यूएस ने कैंप सेंचुरी के होने पर हामी भरी और वादा किया कि वो डेनमार्क के साथ काम करके ग्रीनलैंड को खतरे से निकाल लेगा. 

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क्या है जोखिम

साल 2003 से 2010 के बीच ग्रीनलैंड की बर्फ पूरी 20वीं सदी की तुलना में तेजी से पिघली. इसके बाद से यह डर गहराने लगा कि बर्फ इसी रफ्तार से पिघलती रही तो छूटा हुआ न्यूक्लियर वेस्ट भी तापमान के संपर्क में आ जाएगा. इसका नतीजा काफी खतरनाक हो सकता है. यूनाइटेड नेशन्स की पिछले साल आई रिपोर्ट के मुताबिक, केवल 2 से 3 डिग्री सेल्सियस की बात है, और कैंप सेंचुरी का मलबा बर्फ से ऊपर आ जाएगा. यह अगले 7 दशकों के भीतर हो सकता है, या गर्मी इसी रफ्तार से बढ़ी तो शायद और पहले. 

साल 1979 में स्वायत्ता लेने के बाद से ग्रीनलैंड ने इसपर कई बार बात की, लेकिन अब तक कोई फैसला नहीं हो सका. वादों के बावजूद रेडियोएक्टिव वेस्ट पर यूएस ने कोई एक्शन नहीं लिया.

क्या बर्फ की ड्रिलिंग भी हो सकती है

कैंप सेंचुरी पर स्टडी कर चुके वैज्ञानिक विलियम कोलगन का कहना है कि ग्रीनलैंड पर काम करने में एक खतरा ये भी है कि किसी को नहीं पता, बर्फ के कितनी चीजें दबी हुई हैं और ये कितनी खतरनाक हैं. ऐसे में ड्रिलिंग भी की जाए तो ज्यादा जोखिम हो सकता है. कोलगन की टीम ने कैंप सेंचुरी के भीतर खुदाई की कोशिश भी की लेकिन बर्फ की मूवमेंट की वजह से रुकना पड़ा. 

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ज्यादातर रेडियोएक्टिव वेस्ट 30 से 50 साल के भीतर अपनी आधी ताकत खो देता है, लेकिन यहां बात अलग है. इसका बर्फ के भीतर दबा होना ही इसे ज्यादा खतरनाक बना देता है. वहीं कुछ तत्वों, जैसे प्लूटोनियम में हजारों साल की जिंदगी होती है. चूंकि बर्फ के भीतर ये संरक्षित तो हैं तो जाहिर तौर पर उन्हें ड्रिल करना नए सिरे से मुश्किल ला सकता है.

ऐसे में ट्रंप अगर ग्रीनलैंड लेना भी चाह रहे हैं तो इसके पीछे शायद एक वजह ये भी हो कि वे उन सुरंगों को दोबारा जिंदा करना चाहें, जहां अमेरिका का भारी पैसा पहले से ही लगा हुआ है. या फिर वो यह जांचना चाहते हों कि दबा हुआ रेडियोएक्टिव वेस्ट उनके खुद के देश के लिए क्या जोखिम ला सकता है, या क्या इंटरनेशनल मंच पर वो इसे लेकर घिर भी सकता है. 

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