
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नए विदेश मंत्री के तौर पर रेक्स टिलरसन को चुने जाने का ऐलान किया तो दुनिया हैरान रह गई. ट्रंप ने ऐसे शख्स को अपनी कैबिनेट में बड़ा ओहदा दिया जो एक राजनेता नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी एक्सॉनमोबिल का सीईओ है. रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ टिलरसन के रिश्ते भी जगजाहिर हैं.
ट्रंप ने अमेरिका के टॉप डिप्लोमैट के तौर पर टिलरसन के नाम का ऐलान करते हुए उनकी शान में कसीद भी गढ़े. एक बिजनेस लीडर को कामयाब इंटरनेशनल डीलर बताया गया जिसने एक ग्लोबल ऑपरेशन की अगुवाई की है. डिप्लोमैसी के मोर्चे पर टिलरसन ने एक्सॉनमोबिल के लिए विदेशी मुल्कों के साथ डील की है.
64 साल के टिलरसन का विदेशों में बड़ा कारोबार है. इनमें ऐसे देश भी शामिल हैं जिनके रिश्ते अमेरिका के साथ अच्छे नहीं हैं. टिलरसन के पक्ष में यह बात भी जाती है कि वो कई दिग्गजों को जानते हैं. बात साल 2013 की है जब पुतिन ने टिलरसन को रूस के प्रतिष्ठित ऑर्डर ऑफ फ्रेंडशिप अवार्ड से नवाजा था. रूस की तरफ से टिलरसन को यह सम्मान ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग के लिए दिया गया था.
टिलरसन को विदेश मंत्री चुने जाने पर अमेरिकी सांसद भी सवाल उठा रहे हैं. सभी को पता है कि टिलरसन के पुतिन से घनिष्ठ संबंध रहे हैं. अमेरिकी चुनाव के दौरान इस बात को लेकर विवाद उठा था कि राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों में रूस के साइबर हैकरों की भूमिका रही है जिसमें ट्रंप को जीत मिली है.
टिलरसन के अमेरिका का अगला विदेश मंत्री बनने की खबरों के बीच बुधवार को क्रेमलिन ने पुतिन से उनके रिश्तों की पुष्टि की. हालांकि साथ ही यह भी दावा किया कि राष्ट्रपति पुतिन और अन्य प्रतिनिधियों के टिलरसन से पूरी तरह व्यावसायिक रिश्ते हैं.
टिलरसन का अनुभव
1975 में यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास से इंजीनियरिंग की डिग्री लेने वाले टिलरसन ने अपना कॅरियर भी एक्सॉन से शुरू किया था. उन्होंने एक्सॉन के अमेरिका, रूस और यमन के ऑपरेशंस में काम किया. नब्बे के दशक तक टिलरसन एक्सॉन के सारे विदेशी अभियान देखते थे. उन्होंने रूस के पूर्वी तट पर सखालिन तेल और गैस परियोजना में एक्सॉन की तरफ से अहम भूमिका निभाई थी.
एक्सॉन और रूस की सरकारी कंपनी रोसनेफ्ट के बीच रूस के आर्कटिक प्रांत में तेल की खोज का 3.2 अरब डॉलर का सौदा हुआ था, जो अभी तक अटका पड़ा है. तेल कंपनियों को विदेशों में बहुत ही नपी तुली डिप्लोमैसी अपनानी होती हैं और शायद यही वजह है कि ट्रंप ने टिलरसन को विदेश मंत्री चुना है.
पेरिस डील पर ट्रंप की नजर
ट्रंप जलवायु परिवर्तन पर पेरिस में हुए ऐतिहासिल समझौते का विरोध कर रहे हैं. जबकि पेरिस डील के बाद सभी देशों ने कार्बन उत्सर्जन कम करने और धरती का तापमान कम रखने के लिए एक पुख्ता रोड मैप तैयार किया और वादे किए गए. ट्रंप खुद के बूते इस समझौते को रद्द तो कर नहीं सकते. अगर रूस और खरबों डॉलर की ऑयल इंडस्ट्री की मदद ट्रंप को मिले तो शायद यह मुमकिन हो सके.