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पहले विदेश दौरे में सऊदी अरब ही क्यों जाते हैं ट्रंप? MBS से दोस्ती, ईरान या इस्लामिक देश का पैसा... क्या है वजह

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद अपने पहले विदेश दौरे में सऊदी अरब जाने वाले हैं. उन्होंने कहा था कि सऊदी अरब ने अमेरिका में निवेश का फैसला किया है इसलिए वो पहले सऊदी जाएंगे. उनके सत्ता में आने के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सऊदी का कद भी बढ़ गया है.

अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सऊदी अरब जाने वाले हैं (Photo- Reuters) अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सऊदी अरब जाने वाले हैं (Photo- Reuters)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 31 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 4:25 PM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व्हाइट हाउस लौटने के बाद अपने पहले विदेश दौरे में सऊदी अरब जाने की योजना बना रहे हैं. बताया जा रहा है कि ट्रंप के सऊदी दौरे का प्लान अभी बनाया जा रहा है. न्यूज वेबसाइट एक्सियोस ने रविवार को ट्रंप के सऊदी जाने के प्लान की जानकारी देते हुए बताया कि ट्रंप प्रशासन इजरायल और फिलिस्तीनी समूह हमास के बीच गाजा में युद्ध विराम को बहाल करने की कोशिश में है. ट्रंप प्रशासन हमास से बाकी के बंधकों को रिहा करवाने की कोशिश कर रहा है और राष्ट्रपति इसी बीच सऊदी अरब जा सकते हैं.

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पहले विदेश दौरे में सऊदी अरब क्यों जा रहे ट्रंप?

ट्रंप ने 6 मार्च को भी मीडिया से बात करते हुए कहा था कि वो "अगले डेढ़ महीने में" सऊदी अरब का दौरा करेंगे. उन्होंने कहा था, 'मैं सऊदी अरब जा रहा हूं. आम तौर पर आपको पहले ब्रिटेन जाना चाहिए था, पिछली बार मैं सऊदी अरब गया था. उन्होंने 450 अरब डॉलर का निवेश किया था.'

अपने दूसरे कार्यकाल के पहले विदेश दौरे में सऊदी अरब जाने को लेकर उन्होंने आगे कहा था, 'इस बार मैंने कहा कि मैं तभी जाऊंगा जब आप अमेरिकी कंपनियों को एक खरब डॉलर देंगे. इसका मतलब है कि सऊदी चार सालों में अमेरिका में एक खरब डॉलर लगाएगा. वे ऐसा करने के लिए सहमत हो गया है इसलिए मैं वहां जा रहा हूं.'

एक अमेरिकी अधिकारी और मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बताया है कि ट्रंप मई के मध्य में सऊदी अरब का दौरा करेंगे. अमेरिकी अधिकारी ने बताया, 'सऊदी दौरे में विदेशी निवेश, खाड़ी देशों के साथ रिश्ते मजबूत करने और मध्य-पूर्व में संघर्ष की समाप्ति पर बात होगी.'

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ट्रंप के आने से बढ़ा सऊदी अरब का 'कद'

सऊदी अरब रूस और यूक्रेन के बीच चल रही शांति वार्ता में अहम प्लेयर है. ट्रंप ने जब इस पहल की शुरुआत की तो रूस के साथ बातचीत के लिए सऊदी अरब की राजधानी रियाद को चुना था. इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सऊदी का कद काफी बढ़ गया है.

रियाद में ही अमेरिकी और रूसी प्रतिनिधियों के बीच रूस-यूक्रेन पीस प्लान पर बात हुई थी. यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की भी वार्ता के लिए सऊदी पहुंचे थे जिसके बाद रूस और यूक्रेन 30 दिनों के लिए एक दूसरे के ऊर्जा इंफ्रास्ट्रक्चर पर हमले रोकने के लिए राजी हुए.

मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बताया कि सऊदी अरब चाहता था कि जब दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम की यह स्थिति लागू हो जाए तो ट्रंप सऊदी का दौरा करें.

लीक से हटकर चल रहे हैं ट्रंप

राष्ट्रपति ट्रंप जब 2017 में पहली बार सत्ता में आए थे तब भी उन्होंने अपने पहले विदेश दौरे के लिए सऊदी अरब को चुना था. और इसी के साथ ही उन्होंने अपने पहले के पांच राष्ट्रपतियों की तरफ से शुरू की गई उस परंपरा को भी तोड़ दिया था जिसमें नया अमेरिकी राष्ट्रपति पड़ोसी देशों का दौरा करता था.

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ट्रंप से पहले के राष्ट्रपति पड़ोसी देश कनाडा और मैक्सिको का दौरा करते थे. बराक ओबामा, बिल क्लिंटन और जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश चुने जाने के बाद अपने पहले विदेश दौरे में कनाडा गए थे. उससे पहले जॉर्ज डब्ल्यू. बुश और रोनाल्ड रीगन अपने पहले विदेश दौरे में मैक्सिको गए थे.

ट्रंप का पहला कार्यकाल खत्म हो जाने के बाद 2021 में जब जो बाइडेन आए तब उन्होंने अपने पहले विदेश दौरे के लिए यूरोपीय देशों को चुना था और नेटो (अमेरिका और यूरोपीय देशों का संगठन) के नेताओं के साथ मुलाकात की थी. 

शपथ लेने के बाद ट्रंप का पहला फोन सऊदी क्राउन प्रिंस MBS को

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी, सोमवार को पद की शपथ ली थी. उसी हफ्ते गुरुवार को उन्होंने सऊदी अरब के वास्तविक शासक क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को फोन किया था. दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद किसी विदेशी नेता को ट्रंप का यह पहला फोन कॉल था. इस बातचीत में ट्रंप ने निवेश के बदले सऊदी अरब का दौरा करने की शर्त रखी थी जिसे सऊदी अरब ने मान लिया और अमेरिका में चार सालों के अंदर 600 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की थी.

क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, जिन्हें एमबीएस भी कहा जाता है, और डोनाल्ड ट्रंप के रिश्ते बेहद मजबूत रहे हैं. 2018 में सऊदी पत्रकार और वाशिंगटन पोस्ट के स्तंभकार जमाल खाशोज्जी की हत्या को लेकर जब एमबीएस दुनियाभर में आलोचना का शिकार हो रहे थे, तब ट्रंप उनके साथ खड़े थे. बाइडेन प्रशासन ने खाशोज्जी की हत्या और मानवाधिकारी रिकॉर्ड को लेकर एमबीएस की काफी आलोचना की थी और दोनों देशों के रिश्ते में तल्खी आ गई थी.

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लेकिन ट्रंप के आने के बाद दोनों देशों के रिश्ते फिर से ट्रैक पर लौट आए हैं. सऊदी अमेरिका में भारी निवेश को भी राजी हो गया. निवेश को लेकर ट्रंप ने कहा, 'मैं क्राउन प्रिंस, जो कि एक शानदार इंसान हैं, उनसे कहूंगाा कि वो अमेरिका में अपना निवेश और बढ़ाएं और उसे बढ़ाकर 1 खरब डॉलर तक कर दें. मुझे लगता है कि वो ऐसा करेंगे क्योंकि हमारा रिश्ता उनके साथ बेहद ही अच्छा रहा है.'

ईरान को संतुलित करने के लिए ट्रंप को चाहिए MBS का सपोर्ट

मध्य-पूर्व में स्थिरता के लिए अमेरिका को ईरान पर नियंत्रण रखना जरूरी है. इस काम में अमेरिका को सऊदी अरब का साथ जरूरी है. ट्रंप ने आते ही ईरान समर्थित यमन के हूती विद्रोहियों को फिर से आतंकी समूह की लिस्ट में डाल दिया है. उन्होंने ईरान के तेल पर प्रतिबंधों को और कड़ा कर दिया है.

ट्रंप चाहते हैं कि सऊदी अरब ईरान को संतुलित रखने में उसकी मदद करे. सऊदी अरब भी नहीं चाहता कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम में सफल हो और क्षेत्र में फिर से एक बेहद मजबूत खिलाड़ी बनकर उभरे. इधर, ट्रंप प्रशासन ने एक बार फिर ईरान पर परमाणु समझौते के लिए दबाव तेज कर दिया है.

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