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उत्तर प्रदेश के बाराबंकी से जुड़े हैं ईरान के इतिहास के तार, जानें क्या है कनेक्शन?

शिया धर्मगुरु सैयद अहमद मुसावी का जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के पास किंटूर नामक एक छोटे से शहर में हुआ था. बीबीसी पत्रकार बाकर मोईन के अनुसार, मुसावी ने भारत के साथ अपना जुड़ाव दिखाने के लिए सरनेम के रूप में 'हिंदी' का इस्तेमाल किया. उनके पोते रुहोल्ला खुमैनी को आगे चलकर 1979 की ईरानी क्रांति का जनक कहा गया.

यूपी के बाराबंकी से जुड़े हैं ईरान के इतिहास के तार यूपी के बाराबंकी से जुड़े हैं ईरान के इतिहास के तार
सुशीम मुकुल
  • तेहरान,
  • 21 मई 2024,
  • अपडेटेड 10:56 PM IST

1979 में जब इस्लामी क्रांति के जनक रुहोल्ला खुमैनी ईरान में बड़े हो रहे थे तब उनका मुल्क एक लिबरल देश था. बचपन से ही खुमैनी का झुकाव आध्यात्मिकता की तरफ था. उनका शिया वर्ग से गहरा संबंध था, जो उन्हें अपने दादा सैयद अहमद मुसावी हिंदी से विरासत में मिला था. खुमैनी के दादा अहमद हिंदी का जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के पास हुआ था. आगे चलकर वह ईरान चले गए. बाराबंकी में जन्मे हिंदी और उनकी शिक्षाओं ने ईरान के इतिहास को आकार देने में अहम भूमिका निभाई. उनके पोते खुमैनी ईरान के पहले सुप्रीम लीडर बने और इसे एक धार्मिक मुल्क में बदल दिया. 

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यह सब और ज्यादा दिलचस्प इसलिए हो जाता है क्योंकि दुनिया इस वक्त ईरान की ओर देख रही है. सवाल उठ रहा है कि रविवार को एक हेलीकॉप्टर क्रैश में राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मौत के बाद वर्तमान सुप्रीम लीडर और खुमैनी के उत्तराधिकारी अयातुल्ला अली खामेनेई की विरासत कौन संभालेगा.

यूपी के एक जिले से जुड़े हैं ईरान के इतिहास के तार

खामेनेई के उत्तराधिकारी की दौड़ में रईसी दो दावेदारों में से एक थे. दूसरा खामेनेई का दूसरा बेटा मोजतबा है. खामेनेई के पूर्वाधिकारी खुमैनी थे जिन्होंने ईरान को एक कट्टरंथी शिया मुल्क और मिडिल ईस्ट में एक वैकल्पिक शक्ति केंद्र में बदल दिया. अगर खुमैनी के दादा अहमद हिंदी ईरान नहीं गए होते तो यह मुल्क अपना वर्तमान स्वरूप नहीं ले पाता. यह बेहद अजीब और दिलचस्प है कि कैसे ईरान के इतिहास के तार उत्तर प्रदेश के एक जिले से जुड़े हुए हैं.

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1830 में बाराबंकी से ईरान गए थे मुसावी

शिया धर्मगुरु सैयद अहमद मुसावी का जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के पास किंटूर नामक एक छोटे से शहर में हुआ था. बीबीसी पत्रकार बाकर मोईन के अनुसार, मुसावी ने भारत के साथ अपना जुड़ाव दिखाने के लिए सरनेम के रूप में 'हिंदी' का इस्तेमाल किया. उनके पोते रुहोल्ला खुमैनी को आगे चलकर 1979 की ईरानी क्रांति का जनक कहा गया. उन्होंने पश्चिम एशियाई देश को हमेशा के लिए एक धर्मतंत्र में बदल दिया. अहमद मुसावी हिंदी 1830 में बाराबंकी से ईरान गए थे. 

18वीं शताब्दी में भारत आए थे मुसावी के पिता

अहमद मुसावी हिंदी के पिता दीन अली शाह 18वीं शताब्दी की शुरुआत में मिडिल ईस्ट से भारत आए थे. अहमद हिंदी का जन्म लगभग 1800 में लखनऊ से लगभग 30 किलोमीटर पूर्व में बाराबंकी के पास हुआ था. यह वह समय था जब ब्रिटिश हुकूमत मुगलों को हराकर भारत पर नियंत्रण हासिल कर रही थी. अहमद हिंदी उन मौलवियों में से थे जो इस्लामी पुनरुत्थान के विचार में विश्वास रखते थे. उनका मानना था कि मुसलमानों को समाज में अपना उचित स्थान फिर से हासिल करना चाहिए. 

चार साल बाद पहुंचे ईरान के खोमेन

बेहतर जीवन और अपने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए जगह की तलाश में अहमद हिंदी ने 19वीं शताब्दी की शुरुआत में इराक से होते हुए ईरान की यात्रा की, जिसे उस समय फारस (Persia) के नाम से जाना जाता था. वह 1830 में इराक के नजफ में अली के मकबरे की यात्रा के लिए भारत से निकले थे. चार साल बाद वह ईरानी शहर खोमेन में पहुंचे. उन्होंने वहां एक घर खरीदा और अपने परिवार का पालन-पोषण किया. 

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भारत से संबंध के चलते नाम में जोड़ा 'हिंदी'

खोमेन में उन्होंने तीन महिलाओं से शादी की और उनके पांच बच्चे थे. पत्रकार बाकर की किताब के अनुसार, इनमें खुमैनी के पिता मुस्तफा (जन्म 1902) भी शामिल थे. उस समय ईरान पर कजार वंश का शासन था और यह संघर्षों से जूझ रहा था. 1869 में अहमद हिंदी की मृत्यु हो गई थी. उन्होंने पूरे जीवन 'हिंदी' सरनेम अपने नाम के साथ जोड़े रखा जो भारत में उनके जीवन और समय की याद दिलाता था. उन्हें कर्बला में दफनाया गया था.

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