
जनवरी 2023 में पुरातत्वविदों ने काहिरा के पास सक्कारा के प्राचीन नेक्रोपोलिस में कब्रों की खुदाई की थी जहां से हेकाशेप्स नाम के एक व्यक्ति की ममी को खोजा गया. सोने की परत में लिपटी यह ममी 2300 ईसा पूर्व की है जिसे एक पत्थर के ताबूत में दफनाकर चूना पत्थर से ढक दिया गया था. कहा जा रहा है कि यह ममी अब तक खोजी गई सभी ममियों की अपेक्षा अधिक संरक्षित अवस्था में मिली है. इस खोज से पुरातत्वविदों को प्राचीन मिस्र और ममीकरण की कई बड़ी जानकारी हाथ लगी है.
The Conversation की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ममीकरण की इस प्रक्रिया को समझने के लिए पुरातत्विदों को यूनानी इतिहासकार हेरोडोट्स की किताबों से काफी मदद ली. 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हेरोडोट्स ने मिस्र के लोगों द्वारा मरे हुए लोगों के शवों को संरक्षित करने की प्रक्रिया को विस्तार से बताया है.
हेरोडोट्स ने लिखा है कि मिस्र के लोग शवों को संरक्षित करने के लिए शव के नाक में एक हुक लगाते थे और उसके जरिए मस्तिष्क को निकाल कर हटा देते थे. पेट पर चीरा लगाकर शरीर के बाकी अंगों को भी निकाल दिया जाता था और फिर पेट को सिल दिया जाता था. इसके बाद मृत शरीर को शराब और मसालों से धोया जाता था. शरीर को 70 दिनों तक नेट्रॉन नमक में लपेटकर सुखाया जाता था और फिर उसे सावधानीपूर्वक लिनन की पट्टियों में लपेटकर अंत में एक ताबूत के अंदर रख दिया जाता था.
हेरोडोट्स ने जिस दौर में ममीकरण की इस प्रक्रिया का वर्णन किया है, उसके दो हजार साल पहले से ही मिस्रवासी शवों का ममीकरण करते आए हैं. समय के साथ धीरे-धीरे ममीकरण की तकनीक में सुधार होता गया.
मिस्र में खोजी गई हेकाशेप्स की ममी चौथी सदी की है जिसे सूखे रेगिस्तान की रेत से इतनी अच्छी तरह से संरक्षित किया गया था कि उसके टैटू अभी भी दिखाई दे रहे हैं. हेकाशेप्स की यह ममी अब तक की सबसे संरक्षित अवस्था में मिली ममी है.
प्राचीन मिस्र के लोग मृतकों की ममी क्यों बनाते थे?
प्राचीन मिस्र में लोगों का मानना था कि अगर शरीर को संरक्षित करके नहीं रखा गया तो आत्मा संसार में भटकती रहेगी और लोगों को नुकसान पहुंचाएगी. उनका मानना था कि मरने के बाद शरीर में आत्मा लौटकर वापस आती है. इसलिए मिस्रवासियों ने ममीकरण तकनीक को विकसित किया ताकि आत्मा के लिए शरीर को लंबे समय तक संरक्षित रखा जा सके.
3100 ईसा पूर्व मिस्र में ममीकरण की जो शुरुआती तकनीक प्रचलित थी उसमें शवों को रेजिन से भिगोकर लिनेन की पट्टियों से लपेट दिया जाता था. उस दौरान मिस्रवासी आंतों को शरीर में ही छोड़ देते थे जिस कारण उस समय की ममियों का विघटन जल्दी हो जाता था. लेकिन बाद में ममीकरण की तकनीक को काफी विकसित कर लिया गया.
हेकाशेप्स की ममी से वैज्ञानिक कई तरह की जानकारियां हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. उसके कंकाल और दांतों का अध्ययन कर पता लगाया जा सकता है कि वह कहां बड़ा हुआ, उसका खान-पान कैसा था, स्वास्थ्य कैसा था और किस कारण उसकी मौत हुई.
हेकाशेप्स को कैसे संरक्षित किया गया?
हेकाशेप्स के हाथ और पैर अलग-अलग लपेटे गए थे. उसके सिर पर आंख, मुंह और काले बालों के चित्र बनाए गए थे. सबसे आकर्षक बात यह है कि उसके शरीर को सोने की पत्तियों से ढका गया था जिससे उसकी त्वचा सुनहरी दिखे.
मिस्र की पुरानी मान्यताओं के अनुसार, सोना देवताओं का रंग है. मिस्र वासी शवों को सोने से इसलिए ढकते थे क्योंकि उनका मानना था कि इससे मृत व्यक्ति बाद के जीवन में दैवीय गुणों वाला होगा.
कई और जानकारियां भी आईं सामने
जिस स्थान पर हेकाशेप्स की ममी को खोजा गया उसके पास ही एक मकबरे में, पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की चूना पत्थर की मूर्तियां भी मिली हैं. ये चित्र ममियों के साथ दफनाने के लिए धनी लोग बनवाते थे.
इन मूर्तियों में महिलाओं को घरेलू काम करते दिखाया गया है और पुरुषों को पब्लिक क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाते देखा जा सकता है.
परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु पर भोज का रिवाज
प्राचीन मिस्र में परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु पर रिश्तेदारों को भोजन, जिसे प्रसाद समझा जाता था, कराने का रिवाज था. मिस्र के लोगों का मानना था कि इस प्रसाद के बदले में मृतक व्यक्ति को जरूरत के समय सहायता के लिए बुलाया जा सकता है. मृत व्यक्ति जीवन और मिस्र के अंडरवर्ल्ड के देवता ओसिरिस के बीच दूत का काम करने लगता है.