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Afghanistan: दर्दनाक कहानी, घास खाने को मजबूर हुआ इंसानों का ये परिवार

सूखे के कारण हालात खराब हो गए. एक परिवार को लंबे वक्त तक खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला. ऐसे में परिवार के लोगों ने विवशता में घास खाना शुरू कर दिया. खाना नहीं मिलने के कारण उनकी तबीयत पहले से ही ठीक नहीं थी, ऊपर से घास खाने की वजह से उनकी आंतों पर बुरा असर पड़ा.

एक परिवार को मजबूरी में घास खानी पड़ी (प्रतीकात्‍मक फोटो/ Credit: Arete/Disasters Emergency Committee) एक परिवार को मजबूरी में घास खानी पड़ी (प्रतीकात्‍मक फोटो/ Credit: Arete/Disasters Emergency Committee)
aajtak.in
  • नई दिल्‍ली ,
  • 20 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 5:25 PM IST

इंसानों का एक परिवार घास खाने को मजबूर हो गया. लंबे वक्त तक खाना नहीं मिलने की वजह से ये लोग घास खाने को विवश हुए. भूख से शरीर का बुरा हाल हो चुका था और फिर घास खाने की वजह से इनकी आंतें खराब होने लगीं. त्रासदीनुमा ये सच्ची कहानी, अफगानिस्तान के एक परिवार की है.

अफगानिस्‍तान के लोग बीते 27 सालों के सबसे खराब सूखे का लोग सामना कर रहे हैं. एक बड़ी आबादी खाने के संकट से जूझ रही है.

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सूखे ने लोगों के रोजगार की कमर तोड़ी ही है. वहीं, चरमराती अर्थव्‍यवस्‍था और खाने की बढ़ती कीमतें भी खराब हालात के पीछे अहम वजह हैं.

'गार्जियन' की रिपोर्ट के मुताबिक, वहां का एक इलाका कभी बादाम के बागों के तौर पर फेमस था. लेकिन, अब यहां के लोग मुफ़लिसी में अपनी जिंदगी बिता रहे हैं. माहेर (परिवर्तित नाम) भी इसी इलाके में रहते हैं. माहेर ने बताया कि कई बार ऐसा हुआ कि जब हमें घास खानी पड़ी.

माहेर के परिवार में 6 लोग हैं. एक बेटा रहीम है. उनकी पत्‍नी और दूसरा बेटा इस समय अस्‍पताल में हैं.

माहेर ने बताया कि सूखे की वजह से जिंदगी बहुत कठिन हो गई है. कई बार हमारे पास कोई च्‍वाइस नहीं थी, ऐसे में मजूबरी में घास खानी पड़ी.

घास खाने की वजह से उनकी पत्‍नी और बेटा अस्‍पताल में भर्ती है. डॉक्‍टर ने बताया कि दोनों की आंतें क्षतिग्रस्‍त हो गई हैं. माहेर ने कहा कि वह हर दिन प्रार्थना करते हैं ताकि दोनों ही जल्‍द ठीक हो सकें.

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माहेर ने कहा कि हम भी बादाम की खेती करते थे लेकिन सूखे के कारण कई एकड़ खेती बर्बाद हो गई. हालांकि, इस परिवार को काफी मदद मिली है. अब यह परिवार दिन में दो बार रोटी खाता है. 

'कैश डिस्‍ट्रीब्‍यूशन प्रोग्राम' के कारण माहेर के परिवार को मिल जाता है अब खाना

माहेर के परिवार की तरह खाने के संकट का फरहाना (परवर्तित नाम) भी सामना कर रही हैं. वह अपने दो बच्‍चों के साथ रहती हैं. एक बेटी का नाम हुस्‍ना है. उन्‍होंने बताया कि खाने का तेल पिछले साल की तुलना में डबल कीमत का हो गया है.

फरहाना की बेटी हुस्‍ना

अली (परिवर्तित नाम) मजदूर हैं. उन्‍होंने कहा कि जब काम मिल जाता है तो 250 रुपए दिहाड़ी प्राप्‍त होती है. जब काम नहीं मिलता है, तो कूड़ा बीनने का काम करते हैं. इससे पूरे दिन में 80 से 150 रुपए ही कमा पाते हैं.

अली के तीन जुड़वां बच्‍चे हैं, लेकिन वह किसी को भी स्‍कूल नहीं भेज पाते हैं. अफगानिस्‍तान में ऐसे करोड़ों बच्‍चे हैं, जो शिक्षा हासिल नहीं कर पा रहे.

अली के बच्‍चे

Global Hunger Index में 103 नंबर पर है अफगानिस्‍तान
2021 वैश्विक भूख सूचकांक (Global Hunger Index) की रिपोर्ट की बात की जाए तो अफगानिस्‍तान 116 देशों में 103 नंबर पर था. अफगानिस्‍तान का स्‍कोर 28.3 रहा था. अफगानिस्‍तान में भुखमरी की समस्‍या काफी चिंताजनक बताई गई थी.

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