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ईरान की इस परियोजना के लिए भारत का बड़ा कदम, चाबहार बंदरगाह पहुंची भारतीय उपकरणों की पहली खेप

ईरान के चाबहार बंदरगाह पर भारतीय उपकरणों की पहली खेप रविवार को पहुंच गई. अब यहां तेजी से परियोजना का कार्य शुरू हो जाएगा. भारत एकमात्र ऐसा विदेशी देश है जो वर्तमान में यूएस के बाद ईरान की एक विकास परियोजना में शामिल है.

चाबहार बंदरगाह पहुंची भारतीय उपकरणों की पहली खेप चाबहार बंदरगाह पहुंची भारतीय उपकरणों की पहली खेप
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 2:47 PM IST
  • भेजे गए 8.5 मिलियन डॉलर के भारतीय उपकरण
  • भारत एकमात्र देश, जो ईरान की इस परियोजना में शामिल
  • शाहिद बेटेशटी इस बीओटी का कर रहे हैं संचालन

ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए भारत ने आगे बढ़ कर सहयोग किया है. इस बंदरगाह के विकास के लिए भारत की ओर से 8.5 मिलियन डॉलर मूल्य के भारतीय उपकरण की पहली खेप रविवार को दक्षिण-पूर्वी बंदरगाह पर पहुंची. सिस्तान -बलूचिस्तान प्रांत के बंदरगाह और समुद्री विभाग के महानिदेशक बेहृज आगैई ने कहा कि यह समझौता भारतीय पक्ष और पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन (पीएमओ) के बीच हुआ है, जिसके आधार पर भारत 8.5 मिलियन डॉलर का निवेश करने जा रहा है. यह पहली बार हो रहा है जब 100 प्रतिशत के साथ बंदरगाहों में विदेशी निवेश के साथ अनुबंध किया गया है. भारत की ओर से शाहिद बेटेशटी बंदरगाह के इस बीओटी का संचालन करने जा रहे हैं

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पोर्ट्स एंड मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन के प्रमुख मोहम्मद रस्तद ने जुलाई 2020 में कहा था कि भारत बीओटी (बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर) अनुबंध के ढांचे के तहत चाबहार बंदरगाह में आवश्यक उपकरणों के निर्माण और स्थापना का काम कर रहा है.भारत एकमात्र ऐसा विदेशी देश है, जो वर्तमान में यूएस के बाद ईरान की एक विकास परियोजना में शामिल है.

भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण ये बंदरगाह

चाबहार बंदरगाह भारत के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है. इस बंदरगाह के माध्यम से भारत को मध्य एशिया से जुड़ने का सीधा रास्ता मिल जाएगा.  इसमें पाकिस्तान का कोई दखल नहीं होगा. खासकर अफगानिस्तान और रूस से भारत का जुड़ाव और बेहतर हो जाएगा.

चाबहार के खुलने से भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच व्यापार को बड़ा सहारा मिलेगा. इस बंदरगाह के जरिए भारत अब बिना पाकिस्तान गए ही अफगानिस्तान और फिर उससे आगे रूस और यूरोप से जुड़ सकेगा. अभी तक भारत को अफगानिस्तान जाने के लिए पाकिस्तान होकर जाना पड़ता था.

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