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ताइवान की कंपनी का ये फैसला मोदी सरकार के लिए बड़ा झटका?

भारत की नरेंद्र मोदी सरकार देश को सेमीकंडक्टर्स के क्षेत्र में आगे ले जाना चाहती है. 'मेक इन इंडिया' के तहत भारत की कंपनी वेदांता ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन के साथ मिलकर सेमीकंडक्टर के लिए एक प्लांट स्थापित करने वाली थी लेकिन अब ताइवान की कंपनी इस संयुक्त उद्यम से अलग हो गई है.

सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में भारत को बड़ा झटका लगा है (File Photo) सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में भारत को बड़ा झटका लगा है (File Photo)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 11 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 3:27 PM IST

सितंबर 2022 में भारत सरकार ने वेदांता और ताइवान की दिग्गज कंपनी फॉक्सकॉन के बीच गुजरात में सेमीकंडक्टर प्लांट बनाने को लेकर हुए समझौते को एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर दिखाया था. जब गुजरात सरकार के साथ प्लांट बनाने को लेकर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हो रहा था तब वहां गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के साथ आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव भी मौजूद थे.

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लेकिन एक साल से भी कम समय में दोनों कंपनियों के बीच हुआ 19.5 अरब डॉलर का यह समझौता टूट गया है. ताइवान स्थित फॉक्सकॉन ने सोमवार को घोषणा की कि वो भारत की वेदांता के साथ मिलकर सेमीकंडक्टर प्लांट बनाने के समझौते से बाहर हो गई है. इस समझौते के टूटने को मोदी सरकार के भारत को सेमीकंडक्टर हब बनाने के प्रयासों के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है.

फॉक्सकॉन कंपनी ने क्या कहा?

आईफोन और अन्य ऐप्पल प्रोडक्ट्स को असेंबल करने वाली इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की दिग्गज कंपनी फॉक्सकॉन ने अपने एक बयान में कहा, 'ज्यादा बेहतर अवसरों की तलाश में फॉक्सकॉन ने आपसी सहमति से तय किया है कि वो वेदांता के साथ संयुक्त उद्यम से बाहर हो रही है.' कंपनी ने कहा कि सेमीकंडक्टर को लेकर बड़ी परियोजना को जमीनी हकीकत बनाने के लिए उसने वेदांता के साथ मिलकर एक साल तक कड़ी मेहनत की थी. 

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फॉक्सकॉन ने अपने बयान में हालांकि, यह जरूर कहा कि वो पूरी तरह से भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र से अलग नहीं हो रही है. कंपनी ने कहा कि वो अब भी मोदी सरकार के देश के भीतर चिप बनाने के प्रयासों का समर्थन करती है.

फॉक्सकॉन के समझौते से बाहर होने पर वेदांता ने क्या कहा?

फॉक्सकॉन के समझौते से बाहर होने पर वेदांता ने एक बयान जारी किया है कि कंपनी सेमीकंडक्टर के लिए मोदी सरकार के विजन को पूरा करने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना कर देगी. बयान में फॉक्सकॉन का कहीं जिक्र नहीं किया गया है.

वेदांता ने अपने बयान में कहा है कि वह सेमीकंडक्टर उत्पादन को लेकर अपने लक्ष्यों के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है और वह भारत की पहली सेमीकंडक्टर उत्पादन इकाई को स्थापित करने के लिए अन्य सहयोगियों के साथ वार्ता कर रही है.

क्या था समझौता?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृहराज्य गुजरात में सेमीकंडक्टर्स के निर्माण के लिए फॉक्सकॉन ने पिछले साल वेदांता लिमिटेड के साथ मिलकर 19.5 अरब डॉलर के एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था. प्रस्तावित सेमीकंडक्टर प्लांट में शुरू में मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोटिव और नेटवर्क उपकरण के लिए हर महीने करीब 40,000 40-नैनोमीटर चिप्स का उत्पादन होने वाला था.

क्यों टूटा समझौता?

वेदांता और फॉक्सकॉन के संयुक्त उद्यम पर पिछले कुछ दिनों से खतरा मंडरा रहा था. ऐसी रिपोर्ट्स आ रही थीं कि दोनों ही कंपनियां यूरोपीय फर्म STMicroelectronics से अधिक तकनीक और निवेश हासिल नहीं कर पा रही हैं. भारत सरकार की कोशिश थी कि इस यूरोपीय फर्म से अधिक से अधिक तकनीक और निवेश हासिल हो सके लेकिन दोनों ही कंपनियां ऐसा करने में असफल रहीं. और इसी बीच फॉक्सकॉन के संयुक्त उद्यम से बाहर निकलने की खबर आई है.

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फॉक्सकॉन ने समझौते से हटने को लेकर कोई वजह नहीं बताई है लेकिन माना जा रहा है कि वेदांता भारी कर्ज तले दबी है और उसके पास उतना पैसा नहीं है कि वो चिप बनाने के लिए जरूरी तकनीक हासिल करने के लिए पैसे जुटा पाए.

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, 'हम इस बात से वाकिफ थे कि दोनों कंपनियों का संयुक्त उद्यम ठीक-ठाक नहीं चल रहा है, दोनों के बीच कुछ मतभेद हैं, और कुछ महीने पहले ही हमें यह स्पष्ट हो गया था कि फॉक्सकॉन समझौते से बाहर होने जा रही है.'

Photo- Reuters

दोनों कंपनियां नहीं हासिल कर पा रही थीं तकनीक

फॉक्सकॉन ने अपने बयान में यह नहीं बताया है कि वो समझौते से क्यों बाहर हो गई. हालांकि, कौशल विकास और उद्यमिता राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने ट्विटर पर कहा कि चूंकि दोनों कंपनियों के पास सेमीकंडक्टर तकनीक को लेकर अनुभव की कमी थी, इसलिए उम्मीद थी कि वो किसी तकनीक भागीदार से तकनीक लेंगे.

चन्द्रशेखर ने अपने ट्वीट में लिखा, 'वेदांता-फॉक्सकॉन उद्यम ने मूल रूप से 28 नैनोमीटर चिप के लिए एक प्रस्ताव दिया था लेकिन दोनों ही कंपनियां किसी सही तकनीकी भागीदारी को ढूंढने में नाकामयाब रही हैं. हाल ही में वेदांता ने एक प्रमुख वैश्विक सेमीकंडक्टर कंपनी से तकनीकी लाइसेंसिंग समझौते के तहत 40 नैनोमीटर चिप्स बनाने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था जिसका अभी मूल्यांकन किया जा रहा है.'

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चन्द्रशेखर का कहना है कि फॉक्सकॉन के फैसले का भारत के सेमीकंडक्टर को लेकर तय किए गए लक्ष्यों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

वहीं, विश्लेषकों का कहना है कि भारत के पास चिप निर्माण में कोई अनुभव नहीं है. वेदांता और फॉक्सकॉन के संयुक्त उद्यम के सामने सबसे बड़ी रुकावट यह थी कि दोनों ही कंपनियां सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में नौसिखिया हैं.

काउंटरप्वाइंट रिसर्च के शोध उपाध्यक्ष नील शाह ने कहा, 'दोनों खिलाड़ी इसमें नए हैं. उन्होंने पहले कभी चिप्स का निर्माण नहीं किया है.'

Photo- Reuters

शाह ने कहा कि फॉक्सकॉन का प्रोजेक्ट से निकलना एक वरदान भी साबित हो सकता है क्योंकि इससे प्रोजेक्ट में नई कंपनियों के शामिल होने का रास्ता खुल गया है. उनका कहना है कि भारत को अपने इस प्रोजेक्ट के लिए माइक्रोन जैसे प्रमुख अनुभवी सेमीकंडक्टर कंपनियों पर ध्यान देना चाहिए.

शाह ने कहा, 'सरकार को भी मेहनत करने की जरूरत है.'

चिपमेकिंग भारत के लिए क्यों है इतना जरूरी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चिप निर्माण को भारत की आर्थिक नीति में सबसे ऊपर रखा है. पीएम मोदी चाहते हैं कि वैश्विक कंपनियां भारत में आएं और 'इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत' हो.

सभी इलेक्ट्रॉनिक सामानों में सेमीकंडक्टर चिप्स लगे होते हैं. चीन सेमीकंडक्टर का एक बड़ा हब है लेकिन उसके प्रभुत्व को खत्म करने के लिए कई देशों की कंपनियां किसी विकल्प की तलाश में हैं. भारत खुद को चीन के एक विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहा है और इसी क्रम में भारत में चिप निर्माण प्लांट बनाने के लिए सरकार जोर-शोर से कोशिश कर रही है.

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भारत सरकार की 10 अरब डॉलर की प्रोत्साहन राशि के लिए होड़

भारत सरकार सेमीकंडक्टर प्लांट लगाने के लिए 10 अरब डॉलर की प्रोत्साहन राशि भी दे रही है जिसके लिए कंपनियां सरकार को आवेदन दे रही हैं. फॉक्सकॉन और वेदांता ने भी सरकार से इस राशि के लिए आवेदन दिया था लेकिन सरकार ने उनके आवेदन पर कई सवाल खड़े किए थे. इस प्रोत्साहन राशि को पाने के लिए कई कंपनियां कतार में हैं लेकिन किसी को भी अभी तक सफलता नहीं मिली है.

भारत सरकार की चिप मेकिंग योजना के लिए दो अन्य प्रस्ताव भी लंबित पड़े हैं. अबू धाबी स्थित नेक्स्ट ऑर्बिट की ISMC और इजरायल के टॉवर सेमीकंडक्टर ने केंद्र सरकार से कहा था कि इंटेल और टावर सेमीकंडक्टर को एक साथ मर्ज कर दे तभी वो भारत में सेमीकंडक्टर प्लांट बनाने को लेकर आगे बढ़ पाएंगी. इंटेल और टावर सेमीकंडक्टर को एक साथ मर्ज करने की घोषणा एक साल से भी अधिक समय पहले की गई थी लेकिन अभी तक इसे अंजाम नहीं दिया गया है.

दोनों कंपनियों ने पहले कहा था कि वो कर्नाटक में 3 अरब डॉलर का एक सेमीकंडक्टर प्लांट बनाएंगी. लेकिन माना जा रहा है कि जब तक सरकार इंटेल और टावर सेमीकंडक्टर को एक साथ नहीं मिलाती, यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ेगा.

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सरकार को सेमीकंडक्टर के लिए दूसरा प्रस्ताव सिंगापुर के IGSS वेंचर की तरफ से मिला था. लेकिन यह प्रस्ताव सरकार की सलाहकार समिति के अनुरूप नहीं था जिस कारण इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था.

वेदांता और फॉक्सकॉन अब भी दावेदार

वेदांता के साथ समझौते से बाहर होने के बाद अब मंगलवार को फॉक्सकॉन ने एक बयान जारी कर रहा है कि वो भारत में सेमीकंडक्टर प्लांट के लिए अलग से अप्लाई करने वाली है. कंपनी ने कहा है कि वो इस प्रोजेक्ट के लिए दूसरे पार्टनर्स की तलाश कर रही है.

फॉक्सकॉन ने एक बयान में कहा, 'फॉक्सकॉन सेमीकंडक्टर प्रोग्राम के लिए एक आवेदन देने पर काम कर रही है. हम इसके लिए पार्टनर की तलाश कर रहे हैं.'

वेदांता भी इस होड़ में बनी हुई है. वेदांता ने पहले ही एक प्रमुख एकीकृत डिवाइस निर्माता से 40 नैनोमीटर चिप्स के लिए उत्पादन-ग्रेड तकनीक के लिए लाइसेंस हासिल कर लिया है.  वेदांता 40 नैनोमीटर चिप्स का लाइसेंस जिस कंपनी से मिलने की बात कर रही है, माना जा रहा है कि वो यूरोपीय फर्म STMicroelectronics है. इसका मतलब है कि वेदांता अभी भी सरकारी प्रोत्साहन राशि के लिए मंजूरी हासिल कर सकता है.'

अमेरिकी कंपनी भी गुजरात में लगाएगी सेमीकंडक्टर प्लांट

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भारत की नरेंद्र मोदी सरकार का अनुमान है कि 'मेक इन इंडिया' प्लान के तहत साल 2026 तक सेमीकंडक्टर्स के बाजार 63 अरब डॉलर का हो जाएगा. भारत के इस प्रयास में अमेरिका उसका साथ दे रहा है क्योंकि वो चाहता है कि सेमीकंडक्टर्स पर चीन का आधिपत्य खत्म हो. अमेरिका की एप्पल जैसी कंपनियां भी अपने सप्लाई चेन में विविधता लाना चाहती हैं.

Photo- Reuters

भारत के संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने अप्रैल के महीने में कहा था कि देश आने वाले 10 सालों में सेमीकंडक्टर निर्माण का एक प्रमुख वैश्विक केंद्र बनने के लिए काम कर रहा है.

मई में, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और पीएम मोदी ने सेमीकंडक्टर को लेकर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किया था.

पिछले महीने पीएम मोदी जब अमेरिका दौरे पर थे तब यह खबर आई थी कि अमेरिका की सेमीकंडक्टर कंपनी माइक्रॉन गुजरात में अपना प्लांट लगाएगी. कंपनी की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया था कि माइक्रॉन गुजरात में सेमीकंडक्टर टेस्ट और असेंबली प्लांट लगाएगी. प्लांट को दो चरणों में विकसित किया जाएगा जिसमें कंपनी अपनी तरफ से 82.5 करोड़ डॉलर का निवेश करेगी. बाकी का निवेश केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से किया जाएगा.

कंपनी ने कहा कि गुजरात में प्लांट बनाने का काम इसी साल शुरू होने की उम्मीद है जिससे लगभग 5,000 नए रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे.

भारत-अमेरिका की कोशिशों में टांग अड़ाता चीन

सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में भारत को आगे ले जाने की भारत सरकार और अमेरिका की कोशिशों के बीच चीन रोड़ा बनता रहा है. चीन ने कुछ दिनों पहले ही सेमीकंडक्टर बनाने के लिए महत्वपूर्ण तत्वों गैलियम और जर्मेनियम के निर्यात पर रोक लगा दी. चीन इन दो दुर्लभ तत्वों का उत्पादन करने वाला प्रमुख देश है इसलिए चीन के इस फैसले से ग्लोबल मार्केट को बड़ा झटका लगा है.

हालांकि,  कौशल विकास और उद्यमिता राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर का कहना है कि चीन के इस प्रतिबंध का भारत पर कोई असर नहीं होगा. गैलियम और जर्मेनियम पर निर्यात प्रतिबंध के चीन के फैसले के बाद उन्होंने कहा था कि पूरी दुनिया नए भारत के साथ साझेदारी कर रही है क्योंकि भारत एक लचीला सप्लाई चेन बनाना चाहता है.  

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