
श्रीलंका बढ़ते कर्ज के कारण डिफॉल्टर होने की कगार पर है. चीन पर आरोप लगते रहे हैं कि उसने श्रीलंका को कर्ज जाल में फंसाया है. श्रीलंका के सांसद भी चीन पर ये आरोप लगा चुके हैं. इस बात को लेकर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र समझे जाने वाले अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारत और पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका पर निशाना साधा है.
ग्लोबल टाइम्स ने अपने एक लेख में लिखा है कि 'कुछ पश्चिमी और भारतीय षड्यंत्रकारियों' के बीच श्रीलंका को दी जा रही चीनी मदद और उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को कोसने की होड़ लगी है.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, 'चीन वित्तीय संकट में फंसे श्रीलंका की मदद कर रहा है. श्रीलंका में चीनी निवेश को भारत और पश्चिमी देश दुष्प्रचारित कर जनता को गुमराह कर रहे हैं. वो तथाकथित 'चीनी कर्ज जाल' को बढ़ावा देकर चीन-श्रीलंका रिश्तों पर हमला करने के प्रयास में हैं.'
भारत और पश्चिमी देशों को चीन ने घेरा
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि ये देश चीन के खिलाफ झूठी खबरों की मुहिम चला रहे हैं. सोशल मीडिया पर ये अफवाह फैलाई गई कि चीन के केंद्रीय बैंक ने श्रीलंका में 10 हजार के नोट जारी किए और श्रीलंका की मुद्रा संप्रभुता का उल्लंघन किया. ग्लोबल टाइम्स आगे लिखता है कि इन खबरों खंडन श्रीलंका की ही फैक्ट चेक एजेंसी फैक्टक्रेसेंडो ने किया है. भारत और पश्चिमी देश अपने लाभ के लिए चीन को बदनाम करने का काम कर रहे हैं.
'चीनी कर्ज जाल' को लेकर अखबार लिखता है कि ये चीन पर लगने वाला एक पुराना आरोप है. इसमें कोई सच्चाई नहीं बल्कि ये चीन-श्रीलंका के आर्थिक सहयोग के खिलाफ पश्चिमी देशों और भारत की तरफ से चलाया जाने वाला एक अभियान है. चीनी विदेश मंत्रालय भी इस आरोप का खंडन कर चुका है.
मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने 10 जनवरी को कहा, 'चीन-श्रीलंका सहयोग पारस्परिक रूप से लाभकारी है और श्रीलंका में सभी सेक्टर्स द्वारा इसका गर्मजोशी से स्वागत किया गया है.
श्रीलंका के राष्ट्रीय शिक्षा आयोग के सलाहकार समिता हेटिगे के हवाले से ग्लोबल टाइम्स लिखता है, 'चीनी कर्ज जाल जैसी कोई चीज नहीं है. हमने विदेशों से जितना कर्ज लिया है, उसमें चीन का हिस्सा 10 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा है. अंतर्राष्ट्रीय पूंजी बाजारों, बहुपक्षीय विकास बैंकों और जापान के बाद चीन हमें कर्ज देने वाला चौथा बड़ा देश है. मीडिया ने तथ्य नहीं दिखाया है.'
अमेरिका और भारत पर चीन का हमला
ग्लोबल टाइम्स ने विश्लेषकों के हवाले से लिखा है कि चीन-श्रीलंका सहयोग और श्रीलंका में चीन की परियोजनाओं के खिलाफ बदनामी अभियान चलाने में अमेरिका और भारत सबसे आगे हैं.
चीनी अखबार ने अमेरिका के प्रमुख अखबारों का नाम लेते हुए कहा है कि सभी श्रीलंका में चीनी निवेश के खिलाफ निंदनीय रिपोर्ट छापते हैं. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, 'द न्यूयॉर्क टाइम्स, द वॉल स्ट्रीट जर्नल, फॉरेन पॉलिसी और द अटलांटिक सहित अमेरिकी समाचार पत्र और पत्रिकाएं कथित "चीनी कर्ज जाल" के बारे में निंदनीय लेख प्रकाशित करती हैं.'
अखबार आगे लिखता है कि पश्चिमी देशों और भारत के इन हमलों का जवाब देते हुए श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने अक्टूबर 2020 में एक आधिकारिक बयान दिया था जिसमें उन्होंने श्रीलंका में चीन की तरफ से बनाए जा रहे हंबनटोटा बंदरगाह का जिक्र किया था.
राजपक्षे ने कहा था, 'हंबनटोटा में बंदरगाह का निर्माण श्रीलंका का आइडिया है, न कि चीन का. इस परियोजना में श्रीलंका के लिए आय और रोजगार के अवसर पैदा करने की काफी संभावनाएं हैं.'
शिंहुआ विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय अनुसंधान विभाग के निदेशक कियान फेंग के हवाले से ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, 'अमेरिका अक्सर श्रीलंका में चीन द्वारा निवेश की गई परियोजनाओं को बदनाम करता है. अमेरिका को उम्मीद है कि ऐसा करने से श्रीलंका चीनी निवेश को रोककर अमेरिका की तरफ से दी जानेवाली मदद को स्वीकार लेगा.'
फेंग ने भारत का जिक्र करते हुए कहा है कि श्रीलंका में चीनी निवेश से भारत डरा हुआ है कि दक्षिण एशिया क्षेत्र में उसका प्रभाव कम हो रहा है.
श्रीलंकाई सांसद भी कर चुके हैं चीन के कर्ज जाल की आलोचना
कुछ समय पहले श्रीलंका के प्रमुख सांसद डॉ. विजेदास राजपक्षे ने चीन पर आर्थिक हमले, भ्रष्टाचार और श्रीलंका को कर्ज जाल में फंसाने का आरोप लगाया था. चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर बात करते हुए उन्होंने कहा था कि चीन विश्व शक्ति बनने की अपनी महत्वाकांक्षा के लिए श्रीलंका का इस्तेमाल कर रहा है.
उन्होंने कहा था, 'यह स्पष्ट है कि हमारे साथ चीन की दोस्ती अब वास्तविक और स्पष्ट नहीं रही. चीन हमारे संबंधों का इस्तेमाल श्रीलंका के निर्दोष लोगों के जीवन की कीमत पर विश्व शक्ति बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को हासिल करने के लिए करता है.'
चीन के कर्ज जाल का उदाहरण है हंबनटोटा बंदरगाह
हंबनटोटा बंदरगाह की बात करें तो, चीन ने कुछ सालों पहले श्रीलंका में इस बंदरगाह की शुरुआत की थी. अरबों डॉलर की ये परियोजना चीनी कर्ज और कॉन्ट्रैक्टर की मदद से शुरू की गई थी लेकिन जल्द ही विवादों में आ गई और चीन ने इसमें निवेश बंद कर दिया.
साल 2017 में चीन ने श्रीलंका से एक समझौते के तहत बंदरगाह में दोबारा निवेश शुरू किया. इस समझौते के तहत चीन की सरकारी कंपनियों को बंदरगाह की 70 फीसद हिस्सेदारी 99 साल की लीज पर दे दी गई. यही से कहा जाने लगा कि चीन श्रीलंका को कर्ज जाल में फंसाकर वहां अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा है.