
अमेरिका में 9/11 आतंकी हमले के तुरंत बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश सरकार एक्शन में आ गई. उन्होंने मिलिट्री को आतंक के खिलाफ अभियान छेड़ने का आदेश दिया. ग्वांतनामो जेल इसी का हिस्सा था. क्यूबाई द्वीप पर बनी इस जेल में कोई भी नियम-कायदा नहीं था. संदिग्ध लगने का आरोप लगाकर यहां किसी भी विदेशी शख्स को कितने भी समय के लिए अमेरिकी कस्टडी में रखा जा सकता था. लेकिन यहां सवाल आता है कि क्यूबा के द्वीप पर अमेरिका का क्या काम!
अमेरिका ने की मदद, लेकिन यूं ही नहीं
ग्वांतनामो की ये कहानी लगभग एक सदी पुरानी है, जब अमेरिका-स्पेन में जंग छिड़ी हुई थी. साल 1898 तक क्यूबा स्पेन का हिस्सा था, लेकिन फिर वहां के लोगों ने स्पेनिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी. तब पड़ोसी देश अमेरिका ने क्यूबा की मदद करते हुए स्पेन पर हमला बोल दिया. हारे हुए स्पेन ने क्यूबा को आजाद देश घोषित करने की बजाए उसका कंट्रोल अमेरिका को दे दिया. तीन सालों बाद अमेरिका ने क्यूबा को अलग राष्ट्र माना लेकिन मुफ्त में नहीं. क्यूबाई जनता को इसकी कीमत चुकानी पड़ी.
लीज पर देना पड़ा
उसे अपने कुछ हिस्से अमेरिका को लीज में देने पड़े. इस समझौते को प्लाट (Platt) अमेंडमेंट के नाम से जाना जाता है, जिसके मुताबिक क्यूबाई द्वीप ग्वांतनामो बे पर अमेरिका का कंट्रोल रहेगा. बदले में वे क्यूबाई सरकार को हर साल एक निश्चित रकम देंगे. ये कोई भारी रकम नहीं, बल्कि सिर्फ साढे़ 3 हजार डॉलर थे. इसके बदले में यूएस को साढ़े 19 हजार एकड़ में फैला द्वीप मिल गया. यहां उसने अपना नेवी बेस बनाया. बीच-बीच में कई क्यूबाई सरकारों ने इतनी कम कीमत पर अपनी अच्छी-खासी जमीन को जबरन लीज पर देने का विरोध भी किया, लेकिन अमेरिका ने हर बार बात दबा दी और नेवी बेस चलता रहा.
नेवी बेस से जेल में कैसे बदला?
नब्बे के दशक में हैती में आई भयंकर बाढ़ के बाद बहुत से लोग ग्वांतनामो आ गए. पूरा का पूरा द्वीप शरणार्थियों से भरने लगा. बहुत से लोग इस मौके को अमेरिकी नागरिकता पाने की तरह भी देख रहे थे और तत्कालीन बुश सरकार परेशान थी. तभी 9/11 हमले हुए और रास्ता मिल गया.
द्वीप में डिटेंशन सेंटर बना
यहां ऐसे संदिग्धों को रखा जाता, जिनपर अल-कायदा से कनेक्शन का शक हो. इनमें ज्यादातर लोग अफगानिस्तान या पाकिस्तान से थे. हालांकि मिडिल ईस्ट से भी बहुत से लोगों को पकड़ा गया. न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक के बाद एक लगातार कई रिपोर्ट्स इसपर कीं, जिसके मुताबिक 20 से ज्यादा सालों में यहां कुल 780 कैदी रहे. इनमें से ज्यादातर को अल-कायदा की कोई जानकारी नहीं थे, वे मामूली काम करने वाले गरीब लोग थे. फिलहाल यहां 36 कैदी बाकी हैं, जिनमें से कुछ पर ही आतंकियों से मेलजोल का अपराध साबित हो सका है.
जेल दो वजहों से लगातार चर्चा में रही, जिनमें से एक है उसका बेहद खर्चीला होना. यहां हर कैदी की सुरक्षा में 45 सैनिक तैनात हैं. इसके अलावा जेल के दूसरे कामों के लिए लंबा-चौड़ा स्टाफ है. जेल के अंदर से लेकर बाहर तक इतना सख्त पहरा रहता है कि इसकी पूरी तस्वीर तक दुनिया के सामने नहीं आ सकी. केवल छूटे हुए कुछ लोगों के बयानों से ही पता लग सका कि जेल कितनी भयावह है, या फिर वहां क्या होता है.
खर्च के पीछे अमेरिकी सरकार का तर्क रहा कि वहां सभी खतरनाक आतंकी हैं, जो मौका मिलते ही देश या फिर दुनिया को भी दोबारा किसी बड़े खतरे में डाल सकते हैं. यही वजह है कि उन्हें दुनिया से काटकर रखा गया.
रिपोर्ट्स की मानें तो जेल के रखरखाव पर सालाना 13 मिलियन डॉलर की रकम खर्च होती है. एक नेवी लॉयर कैप्टन ब्रायन एल माइजर ने जेल का मजाक उड़ाते हुए इसे अमेरिका का 'बुटीक प्रिजन' तक कह दिया था, जो जिहादियों को पाल रहा है.
कैदियों का पूरा ध्यान रखने का दावा
डिटेंशन सेंटर अपने बारे में कई भली बातें करता है, जैसे उसका दावा है कि वो कैदियों की सेहत का पूरा ध्यान रखता है. यहां तक कि कैदी को अगर कुत्ते-बिल्लियों से प्यार है तो उसे मनबहलाव के लिए जानवर भी मुहैया कराए जाते हैं. जेल में पार्लर, स्पा और जिम की बात की जाती है. दूसरी ओर कई मानवाधिकार संस्थाएं इसे सिरे से झूठ बताती हैं.
ये होती है हालत
इंटरनेशनल कमेटी ऑफ रेड क्रॉस ने एक बार यहां दौरा किया था, जिसके बाद न्यूयॉर्क टाइम्स ने उसी के हवाले से दावा किया कि जेल में कैदियों को अमानवीय यातनाएं मिलती हैं. उन्हें 6 फुट लंबे-चौड़े कमरों में रखा जाता है, जहां धूप भी न आए. हफ्ते में दो दिन ही बाहर निकलकर वॉक करने की इजाजत रहती है. साथ ही रात हो या दिन, कभी भी उन्हें पूछताछ के लिए बुलावा आ जाता है, जहां दो-चार सवाल ही बार-बार पूछे जाते हैं. सबमें वही बात रहती है कि उनका अल-कायदा से क्या कनेक्शन है.
कैदियों ने माना कि उनसे मारपीट नहीं होती है, लेकिन अलग तरह से यंत्रणा मिलती है. जैसे किसी को तेज रोशनी वाले कमरे में रख दिया जाता है तो किसी को एकदम घुप अंधेरे में. ऐसा हफ्तों-महीनों चलता है, जब तक कि कैदी बीमार न पड़ जाए.