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पाकिस्तान के आयोग ने माना हिंदुओं के मंदिरों की बुरी स्थिति, लगाई फटकार

पाकिस्तान में हिंदुओं के धार्मिक स्थलों की दुर्दशा को लेकर सडल आयोग ने एक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी है. इसमें कहा गया है कि पाकिस्तान में हिंदुओं के धार्मिक स्थलों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है.

पाकिस्तान में हिंदू मंदिर में पूजा करती एक महिला पाकिस्तान में हिंदू मंदिर में पूजा करती एक महिला
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 08 फरवरी 2021,
  • अपडेटेड 1:59 PM IST
  • पाकिस्तान के आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट
  • हिंदुओं के धार्मिक स्थलों की दुर्दशा को लेकर जताई नाराजगी
  • ट्रस्ट का हिंदू आबादी कम होने का बहाना

पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों और उनके धार्मिक स्थलों की दुर्दशा को उजागर करने वाली एक रिपोर्ट सामने आई है. पाकिस्तान के डॉ. शोएब सडल आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को अपनी सातवीं रिपोर्ट सौंपी है जिसमें कहा गया है कि देश में हिंदू धर्म के प्रमुख स्थलों की हालत निराशाजनक है.

पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, सडल आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को 5 फरवरी को हिंदुओं के धार्मिक स्थलों के संबंध में रिपोर्ट सौंपी है. रिपोर्ट में इस बात को लेकर अफसोस जाहिर किया गया है कि 'अवाक्यूयी ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड' (ईटीपीबी), अल्पसंख्यक समुदाय के प्राचीन स्मारकों और धार्मिक स्थलों की देखभाल करने में नाकाम रहा है. आयोग ने 6 जनवरी को चकवाल स्थित कटस राज मंदिर और 7 जनवरी को मुल्तान के प्रहलाद मंदिर का दौरा किया था. रिपोर्ट में इन मंदिरों की दुर्दशा की तस्वीरें भी शामिल की गई हैं.

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इस आयोग को सुप्रीम कोर्ट ने ही गठित किया था. वर्तमान में एक सदस्यीय आयोग में तीन सहायक सदस्य एमएनए डॉ. रमेश वंकवानी, साकिब जिलानी और पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल हैं.

रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई है कि 'अवाक्यूयी ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड'  (ईटीपीबी) को तेरी मंदिर/समाधि का पुनर्निर्माण कराने का निर्देश दिया जाए और खैबर पख्तूनख्वां की प्रांतीय सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन कराने के लिए समय-समय पर मदद करती रहे.

रिपोर्ट में तेरी मंदिर (कटक), कटस राज मंदिर (चकवाल), प्रहलाद मंदिर (मुल्तान) और हिंगलाज मंदिर (लासबेला) के रेनोवेशन के लिए सामूहिक प्रयास करने का सुझाव दिया गया है. आयोग ने कहा है कि ईटीपीबी ऐक्ट में संशोधन किया जाना चाहिए ताकि हिंदुओं और सिखों के धार्मिक स्थलों की देखभाल और पुनर्निर्माण के लिए एक कार्यकारी समूह गठित किया जा सके.

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रिपोर्ट में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी को अपने आदेश में ईटीपीबी को निर्देश दिए थे कि वो अपने नियंत्रण में आने वाले सभी मंदिरों, गुरुद्वारा और अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपे. आयोग ने ईटीपीबी से कई बार जानकारियां मांगीं लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. ईटीपीबी ने 25 जनवरी को आखिरकार रिपोर्ट सौंपी लेकिन उसमें भी कई जानकारियां शामिल नहीं कीं.

ईटीपीबी के मुताबिक, 365 मंदिरों में से सिर्फ 13 मंदिरों का ही प्रबंधन उनके पास है जबकि 65 मंदिरों की देखरेख की जिम्मेदारी हिंदू समुदाय पर छोड़ी गई है. यानी 287 मंदिर भूमि माफियाओं के अधिग्रहण के लिए छोड़ दिए गए हैं. रिपोर्ट में हैरानी जताई गई है कि तकनीक के इस युग में भी ईटीपीबी अभी तक अपनी संपत्तियों की जियो टैगिंग नहीं करा सकी है.

रिपोर्ट में कहा गया है, "ईटीपीबी ने मंदिरों और गुरुद्वारों के सुचारू रूप से ना चलने के पीछे हिंदू-सिख आबादी के कम होने की वजह बताई है जिसे लेकर आयोग ने ऐतराज जताया है. आयोग का मानना है कि कई ऐसे मंदिर हैं जो आस-पास हिंदू आबादी के कम होने के बावजूद खुले हुए हैं, जैसे कि बलूचिस्तान में हिंगलाज माता मंदिर और करक जिले में श्रीपरमहंस जी महाराज मंदिर."

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रिपोर्ट में ये भी आरोप लगाया गया है कि ट्रस्ट केवल अल्पसंख्यकों की छोड़ी हुई मूल्यवान संपत्तियों के अधिग्रहण में ही दिलचस्पी ले रही है.

 

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