
रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच हाल में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मॉस्को का दौरा किया और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की. इसके साथ ही दो तरह के कयास लगने लगे, या तो जंग रुक जाएगी या फिर रूस और यूक्रेन से अलग बाकी देश भी इसमें शामिल हो जाएंगे. कुल मिलाकर ये तीसरे वर्ल्ड वॉर का अनुमान है. इस बीच मानवीय के साथ-साथ इकनॉमिक लॉस की भी गणना हो रही है.
वर्ल्ड बैंक ने इसका डेटा जारी किया है. उसके अनुसार बीते एक साल में जो नुकसान हुआ है, उसके रिकंस्ट्रक्शन और रिकवरी में लगभग 411 बिलियन डॉलर का खर्च आएगा. इसमें सड़कों, इमारतों और बिजली-पानी की रिपेयरिंग का खर्च शामिल है.
क्या कहता है डेटा?
वर्ल्ड बैंक में यूरोप और सेंट्रल एशिया की वाइस प्रेसिडेंट एना जेर्डे ने माना कि इतने सारे पैसे आ जाएं तो भी रिकवरी एक दिन में नहीं होगी, बल्कि कई साल लग जाएंगे. बुधवार को जारी रिपोर्ट में माना गया कि इसी साल कीव को कम से कम 14 बिलियन डॉलर की जरूरत पड़ेगी ताकि वो प्राइमरी कंस्ट्रक्शन कर सके. वर्ल्ड बैंक की इस रिपोर्ट में यूक्रेन की सरकार भी शामिल हुई और बताया कि उसका क्या-क्या बड़ा नुकसान हुआ है. बीते साल सितंबर में भी नुकसान की भरपाई का डेटा निकाला गया था, जो लगभग 349 बिलियन डॉलर था, लेकिन पांच ही महीनों के भीतर इसमें 62 बिलियन का इजाफा हो गया.
विश्व युद्ध में बर्बाद हो गए थे कई देश
दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप का बड़ा हिस्सा और एशियाई देश, खासकर जापान राख-मिट्टी और लाशों का ढेर बनकर रह गया था. रेलवे पटरियां उखाड़ी जा चुकी थीं, पुल टूटे हुए थे और लाखों मौतों के बीच लाखों लोग दूसरे देशों में शरणार्थी या मजदूर बनकर रह रहे थे. जर्मनी के बारे में माना गया कि वहां 70% हाउसिंग खत्म हो चुकी थी.
यहां तक कि रूस (तब सोवियत संघ) के 17 शहर और 70 हजार गांव तबाह हो चुके थे. नीदरलैंड में लोग ट्यूलिप खासकर जिंदा थे तो उत्तरी चीन से जंगली जानवरों को पकड़कर खाने की खबरें आ रही थीं. ये सबकुछ उस दुनिया में था, जो कथित तौर पर साइंस और मेडिसिन में काफी आगे आ चुकी थी.
अमेरिका ने की फंडिंग
साल 1947 में यूरोपियन रिकवरी प्लान आया. अमेरिका इसे लीड कर रहा था और अच्छी-खासी फंडिंग करने वाला था. बाद में इसी योजना को मार्शल प्लान कहा गया. इसके तहत अगले पांच सालों के भीतर 13 बिलियन डॉलर उन देशों को दिए गए, जो बर्बाद हो गए थे. साथ में तकनीकी सहायता भी मिली, ताकि रेलवे लाइन, पुल और बिजली-पानी बहाल हो सके. इसमें सबसे ज्यादा मदद जर्मनी को दी गई. अमेरिका के बाद फ्रांस और यूके ने भी उसकी सहायता की ताकि नया जर्मनी बस सके. अगले लगभग 5 साल रिकंस्ट्रक्शन में लगे, जिसके बाद ये देश उस पॉइंट पर पहुंच सका, जहां वो विश्व युद्ध से पहले था.
परमाणु हमले के इतने सालों बाद उबर सका जापान
जापान में भी अमेरिका ने जमकर तबाही मचाई थी. यहां तक कि परमाणु हमले ने हिरोशिमा-नागासाकी को लगभग खत्म कर दिया था, लेकिन जापान को जर्मनी के मुकाबले कम मदद मिली. मार्शल प्लान के तहत उसे लगभग 2.2 बिलियन डॉलर मिले, जिसमें से भी 500 मिलियन लोन था. जापान ने भी पांच सालों के भीतर खुद को दोबारा खड़ा कर लिया, लेकिन यहां भी वही बात थी.
मान लो, साल 1955 में जापान में सबकुछ पहले जैसा हो गया, तो भी वो बाकी दुनिया से 10 साल पीछे रहा, क्योंकि वो युद्ध के पहले की स्टेज तक ही पहुंच सका था. इस बीच अमेरिका काफी आगे जा चुका था.
जंग के बाद बहुत से देश गृह युद्ध के शिकार हो जाते हैं
ये तो हुई तब की बात, जब दो देशों या दुनिया में जंग छिड़े, लेकिन इसके बाद भी सब शांत नहीं होता है, बल्कि हालात और बिगड़ते चले जाते हैं. ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट के मुताबिक वॉर के बाद लगभग 40 प्रतिशत देशों में सिविल वॉर छिड़ जाता है. इसे कन्फ्लिक्ट ट्रैप कहते हैं.
क्यों होता है ऐसा?
असल में युद्ध के दौरान रही सरकार से लोगों का असंतोष बढ़ चुका होता है. सरकार बदल जाए तो भी मौजूदा सरकार पर लोग भड़के हुए होते हैं क्योंकि उनके मनमुताबिक ग्रोथ नहीं हो रही होती है. कई ग्रुप बन जाते हैं जो आपस में ही लड़ते-भिड़ते हैं और आग पूरे देश में फैल जाती है. इसके बाद जो नुकसान होता है, उसकी भरपाई में दो दशक से भी ज्यादा वक्त लग सकता है. यानी दुनिया अगर 2023 में है, तो युद्ध के बाद गृह युद्ध से निकले देश 2000 के आसपास खड़े होंगे.