
जरा सोचिये क्या हो अगर कोई अंजान शख्स आपका किडनैप कर ले? आपसे उससे डरेंगे और नफरत करने लगेंगे. लेकिन आज हम आपको ऐसी कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं जहां 6 दिनों तक 4 लोगों को बंधक बनाकर रखा गया. लेकिन जब वे लोग रिहा हुए तो उनमें एक अजीब चीज देखने को मिली. वे लोग पूरी तरह से किडनैपर के साथ भावनात्मक तौर पर जुड़ चुके थे. उल्टा उन्हें किडनैपर नहीं, बल्कि पुलिस से ही डर लग रहा था. ये मामला दुनिया भर में इतना मशहूर हुआ कि मनोवैज्ञानिकों ने उनकी दशा को देखते हुए उस दशा को एक नया नाम दे डाला. चलिए जानते हैं इस पूरी कहानी के बारे में...
कहानी है 23 अगस्त 1973 की. स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में जैन एरिक ओलसन (Jan-Eric Olsson) नामक क्रिमिनल अपने एक साथी के साथ हाथों में गन पकड़े डकैती के मकसद से बैंक में गया. डकैती के दौरान उन्होंने एक सिक्योरिटी गार्ड को घायल कर दिया. फिर बैंक में मौजूद 4 लोगों को बंधक बनाकर वॉल्ट में ले गए. फिर पुलिस को खबर दी गई. जैसे ही पुलिस वहां आई, ओल्सन ने अपनी डिमांड रखनी शुरू की.
ओल्सन की डिमांड
पहली डिमांड- उसके सेलमेट क्लार्क ओलोफसन को रिहा कर दिया जाए. दूसरी डिमांड- 3 मीलियम स्वीडिश क्रोनर (Swedish Kronor Currency). तीसरी डिमांड- दो कार, दो गन, बुलेट प्रूफ वेस्ट और वहां से निकलने का सेफ पैसेज, यानि बिना किसी रुकावट के उसे वहां से निकलने दिया जाए वो भी उन बंधक बनाए गए लोगों के साथ.
TV पर हो रहा था घटना का लाइव प्रसारण
ओल्सन ने कहा कि अगर उसकी डिमांड पूरी नहीं की गई तो वह चारों बंदियों (तीन महिलाएं एक पुरुष) को तकलीफ देगा. फिर मार डालेगा. थोड़ी ही देर बाद पुलिस ने ओल्सन की सारी डिमांड मान भी ली. लेकिन उन्होंने इस बात से इनकार किया कि वे किसी भी बंधक को उसे अपने साथ ले जाने नहीं देंगे. बता दें, ये पूरी घटना टीवी पर Live दिखाई जा रही थी. पूरी दुनिया की निगाहें इसी बात पर टिकी थीं कि क्या पुलिस बंधंकों को आजाद करवा पाएगी या नहीं?
दुनिया भर के लोग भेजने लगे अजीबोगरीब सुझाव
इसी के चलते वहां की लोकल पुलिस को दुनिया भर से लोग अपने-अपने सुझाव लिखकर भेजने लगे. इनमें से एक सुझाव ये भी था कि बैंक वॉल्ट के बाहर सेल्वेशन आर्मी (The Salvation Army) के कुछ भक्ति के गाने सुनाए जाएं, जिससे ओल्सन का दिमाग बदल जाए और वह बंधकों को आजाद कर दे. इसके अलावा ये भी सुझाव दिया गया कि मधुमक्खियों के झुंड को वहां छोड़ दिया जाए. ताकि वह ओल्सन को काट लें और वह परेशान होकर सरेंडर कर दे.
ओल्सन ने बंधकों को रखा पूरा ख्याल
एक तरफ लोगों को जहां लग रहा था कि ओल्सन न जानें बंधकों के साथ कैसा बर्ताव कर रहा होगा. तो बता दें, वहां तो कुछ और ही चल रहा था. बताया जाता है कि वॉल्ट के अंदर एक महिला बंदी को जब ठंड लग रही थी तो ओल्सन ने उसे अपनी गर्म जैकेट पहनने को दे दी. उसके बाद उस औरत कहा कि उसे बहुत घबराहट हो रही है, तो ओल्सन ने उसे बड़े ही प्यार से शांत करवाया. साथ ही अपनी गन से एक बुलेट दी और कहा कि देखना आप आगे चलकर इस घटना को याद रखोगी. तभी एक अन्य बंधक ने कहा कि उसे अपने घर में बात करनी है. ओल्सन ने उसे फोन लगाने दिया. जब फोन नहीं लगा तो उसने ये तक कह डाला कि कोई बात नहीं फिर से कोशिश कर लो. बताया जाता है कि ओल्सन ने हर एक बंधक का अच्छे से ख्याल रखा. किसी को तकलीफ नहीं होने दी.
अंदर का माहौल देखकर पुलिस हुई हैरान
ऐसे करके पूरा एक दिन बीत गया. फिर अगले दिन लोकल पुलिस का अधिकारी जब अंदर के हालात देखने गया तो वहां का माहौल देखकर वह दंग रह गया. उसने देखा कि बंधक ओल्सन के साथ बिल्कुल घुल मिल गए हैं. पुलिस अधिकारी ने बाहर जाकर सबको ये चीज बता दी. उसने कहा कि ओल्सन उन्हें नहीं मारेगा क्योंकि उनके बीच तो अच्छी खासी दोस्ती हो गई है. बंधक उससे नहीं, बल्कि पुलिस से डर रहे हैं.
बंधक ने किया प्रधानमंत्री को फोन
इसी बीच उनमें से एक बंधक ने स्वीडन के तत्कालीन प्रधानमंत्री ओलोफ पाल्मे (Olof Palme) को फोन किया. उसने कहा कि ओल्सन अपने साथ बस एक बंधक को ले जाना चाहता है. तो मैं इसके साथ जाने के लिए तैयार हूं. क्योंकि मुझे ओल्सन पर भरोसा है. उसने कहा कि हमें ओल्सन से डर नहीं लग रहा. बल्कि इस बात से डर लग रहा है कि उन्हें बचाने के लिए पुलिस कहीं कोई ऑपरेशन ना चलाए, जिसमें उनकी जान चली जाए.
ऐसे किया ओल्सन ने सरेंडर
फिर 28 अगस्त 1973 के दिन पुलिस ने वॉल्ट के अंदर आंसू गैस छोड़ दी. जबकि ओल्सन ने मना किया था कि इस तरह की कोई हरकत मत करना. फिर भी पुलिस को तब तक भरोसा हो गया था कि ओल्सन उन्हें कुछ नहीं करेगा. इसलिए उन्होंने आंसू गैस छोड़ दी. आंसू गैस के छोड़े जाने के एक घंटे बाद ही ओल्सन ने सरेंडर कर दिया. लेकिन पुलिस और लोगों को हैरानी इस बात की थी कि आखिरी लम्हों तक बंधक ओल्सन को डिफेंड करते रहे. बताया जाता है कि पुलिस ने पहले बंदियों को बाहर आने को कहा फिर ओल्सन को. लेकिन बंधक इस बात के लिए राजी नहीं हुए. उन्हें डर था कि कहीं उनके बाहर आते ही पुलिस ओल्सन को कुछ कर ना दे. जाते समय भी बंधकों ने ओल्सन को हग किया किस किया और कहा कि हम आपसे कॉन्टेक्ट में हमेशा रहेंगे. जब पुलिस ओल्सन को लेकर जा रही थी तब भी बंधक कहने लगे कि प्लीज ओल्सन को कोई तकलीफ मत देना. क्योंकि उसने हमें बिल्कुल भी तकलीफ नहीं दी. यही नहीं बाद में उन लोगों ने किडनैपर्स का केस लड़ने के लिए पैसा भी जमा किया और उनसे मिलने जेल भी जाते रहे.
ऐसे पड़ा Stockholm Syndrome नाम
इस घटना ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया कि कोई अपने किडनैपर के लिए इतनी हमदर्दी कैसे जता सकता है. इस पूरी घटना पर मनोवैज्ञानिकों ने रिसर्च किया और इस मनोदशा को नाम दिया स्टॉकहोम सिंड्रोम (Stockholm Syndrome). क्रिमनोलॉजिस्ट और मनोविज्ञानी निल्स बेजरॉट ने सबसे पहले स्टॉकहोम सिंड्रोम शब्द खोजा. ये एक ऐसी मनोदशा होती है जिसमें बंधक अपने किडनैपर के प्रति भावनात्मक तौर पर जुड़ जाता है, हमदर्दी जताने लगता है और उसे वह अच्छा लगने लगता है और यहां तक कि किसी किसी मामलों में तो वह उससे प्यार भी करने लगता है. इसे एक स्वीडिश नाम भी दिया गया है Norrmalmstorgssyndromet. इस पूरी घटना पर एक किताब भी लिखी गई है, Six days In August.
ऐसा सिर्फ एक ही मामला नहीं है. बल्कि दुनिया में और भी कई ऐसे मामले देखने को मिले हैं जहां किडनैपर से ही भावनात्मक तौर पर जुड़ गए और उनके प्रति नफरत करने के बजाय उनसे प्यार करने लगे.
स्टॉकहोम सिंड्रोम के तीन पहलू
बता दें कि इस सिंड्रोम के तीन पहलू या आयाम हैं. पहली स्थिति में किडनैप होने वाले को किडनैपर से लगाव हो जाता है. दूसरी स्थिति में इसके उलट किडनैपर को लगाव हो जाता है. तीसरी स्थिति में दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है. स्टॉकहोम सिंड्रोम के इन तीनों पहलुओं पर बॉलीवुड में फिल्में बन चुकी हैं, जैसे हाईवे, किडनैप और मदारी. इन सभी फिल्मों में किडनैपर से बंधक के लगाव को दर्शाया गया है.