
प्रधानमंत्री पद की कुर्सी गंवाने के करीब पहुंच चुके इमरान खान ने ये कहकर सनसनी मचा दी है कि कुछ विदेशी ताकतें नहीं चाहतीं कि वे पाकिस्तान के पीएम बने रहें. इमरान के इन आरोपों पर पाकिस्तान की राजनीति और भी उबल पड़ी. सवाल ये था कि आखिर कौन सा देश है जो इमरान खान को लेकर ऐसा चाहता है. ये भी कि क्या इमरान के इन आरोपों में दम भी है या फिर वे सहानुभूति बटोरने के लिए ऐसा बयान दे रहे हैं. इस सवाल का जवाब इमरान खान के समर्थक तो जानना चाह ही रहे हैं, पाकिस्तान की विपक्षी पार्टियों की भी इसमें दिलचस्पी है.
पाकिस्तान की PML-N के नेता शाहबाज शरीफ ने पूछा कि इमरान बताएं कि उन्हें कौन सा मुल्क सत्ता से हटाना चाहता है अन्यथा वे पाकिस्तान को बरगलाना बंद करें. दबाव पड़ने पर इमरान ने एक सीक्रेट चिट्ठी का कंटेंट पत्रकारों को दिखाया. पाकिस्तान की स्थानीय मीडिया का कहना है कि इमरान ने पत्रकारों को बताया है कि ये चिट्ठी पाकिस्तानी डिप्लोमैट ने विदेशी अधिकारी को लिखी थी. इमरान खान ने जिस चिट्ठी को 'साजिश' के तौर पर बताया, वो चिट्ठी दरअसल एक डिप्लोमैटिक केबल है. इस चिट्ठी को अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत असद मजिद खान ने पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को भेजा है. ये केबल असद मजिद खान और एक शक्तिशाली देश के सीनियर अधिकारी के बीच बातचीत का हिस्सा है.
इमरान की विदेश नीति से कौन सा देश नाराज?
इस केबल के अनुसार इस देश को प्रधानमंत्री इमरान खान की विदेश नीति, विशेष रूप से उनकी हाल की रूस यात्रा और यूक्रेन युद्ध पर इमरान की नीति से दिक्कत थी. विदेश के इस अधिकारी ने पाकिस्तानी अधिकारी को कहा था कि अगर अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ इमरान खान जीत जाते हैं यानी कि उनकी सरकार बरकरार रह जाती है तो पाकिस्तान के लिए इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं.
अमेरिका को देनी पड़ी सफाई
डॉन अखबार के अनुसार ये बात निकलकर सामने आई है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में पाकिस्तान के तत्कालीन राजदूत असद मजीद ने दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों के सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू के साथ अपनी बैठक के आधार पर ये केबल भेजा था. तो क्या अमेरिका पाकिस्तान की इमरान खान सरकार को हटाना चाहता है? इस केबल की चर्चा होते ही अमेरिका ने सफाई दी. अमेरिकी विदेश विभाग ने बुधवार को कहा कि किसी भी अमेरिकी सरकारी एजेंसी या अधिकारी ने पाकिस्तान की मौजूदा राजनीतिक स्थिति पर पाकिस्तान को पत्र नहीं भेजा है.
अमेरिका इमरान को हटाना चाहता है या नहीं? इस पर सबूतों के साथ ही कोई चर्चा हो सकती है. लेकिन ये तय है कि बाइडेन के आने के साथ ही अमेरिका और पाकिस्तान के संबंध सामान्य नहीं रह गए हैं. पिछले तीन से चार साल में इसकी कई वजहें हैं.
अफगानिस्तान में अमेरिकी रोल खत्म
दरअसल 15 अगस्त 2021 के बाद दक्षिण एशिया की राजनीति बड़ी तेजी से बदली है. 15 अगस्त को ही तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. इसके साथ ही अफगानिस्तान से अमेरिका की विदाई का रास्ता साफ हो गया? 31 अगस्त को अमेरिकी सेनाओं ने अफगानिस्तान छोड़ दिया. इससे अमेरिका के लिए पाकिस्तान का रणनीतिक महत्व कम हो गया. इकोनॉमी के मोर्चे पर लगातार पिछड़ रहा पाकिस्तान अमेरिका के लिए फिलहाल न तो एक लुभाऊ बिजनेस पार्टनर था और न ही रणनीतिक और सैन्य साझेदार. जबकि यही पाकिस्तान था जिसने 9/11 के बाद लड़ाई में अमेरिका के लिए सारे द्वार खोल दिए थे. हालांकि तब इमरान खान पाकिस्तान के नेता नहीं थे.
अफगानिस्तान में US परस्त सरकार नहीं बनवा सका पाकिस्तान
अफगानिस्तान से जाने के बाद भी अमेरिका को पाकिस्तान से उम्मीदें थीं. अमेरिका चाहता था कि पाकिस्तान उसे अफगानिस्तान में मनमर्जी की सरकार बनवाने में मदद करे, लेकिन पाकिस्तान ने इसमें भी US की मदद नहीं की. पाकिस्तान के सैन्य टीकाकार मोइद पीरजादा कहते हैं कि अमेरिका उम्मीद करता था कि पाकिस्तान उसे अपने पसंद की हुकूमत वहां बनाने में मदद करेगा, ताकि वहां राजनीतिक बदलाव न आने पाए, या बदलाव आए भी तो अमेरिका की पसंद के मुताबिक लेकिन ऐसा न होने से अमेरिकी प्रशासन में असंतोष है. अफगानिस्तान में मनमर्जी की सरकार अमेरिका को इसलिए भी चाहिए क्योंकि उसे ईरान की निगरानी करनी थी. चीन पर नजर रखनी थी, लेकिन अफगानिस्तान में जिस तालिबान की सरकार बनी वो अमेरिका की क्या सुनता, इसके उलट उसने अमेरिका की खूब खिल्ली उड़ाई.
इस बीच अमेरिका में राष्ट्रपति के तौर पर दिसंबर-जनवरी में जो बाइडेन आ गए. बाइडेन प्रशासन को इमरान का कोई महत्व नहीं समझ में आया. उन्होंने पाकिस्तान के पीएम को भाव देना बंद कर दिया. यहां तक कि इमरान खान बाइडेन से एक अदद फोन के लिए तरसते रह गए.
4 साल से पाक में अमेरिकी राजदूत नहीं है
18 अगस्त 2018 को इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. जब तक ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति थे वे इमरान खान से बातचीत करते रहे. मोइद पीरजादा कहते हैं कि बाइडेन सांस्थानिक कैरेक्टर के व्यक्ति हैं, उन्हें प्रशासन का अनुभव है, उन्हें पाकिस्तान के इतिहास की जानकारी है. बाइडेन ने इमरान से बातचीत करने से ही इनकार कर दिया. लिहाजा इमरान-बाइडेन के बीच सामान्य संबंध विकसित नहीं हो सके. हालात ये है कि अमेरिका ने अबतक पाकिस्तान में अपना स्थायी राजदूत नहीं नियुक्त किया है.
इमरान ने पाकिस्तान में नहीं बनाने दिया सैन्य बेस
इधर इमरान खान भी पाकिस्तान की स्वतंत्र विदेश नीति विकसित करने में लगे रहे. इमरान ने बात-बात पर अमेरिका से निर्देश लेने से साफ इनकार कर दिया. जून 2021 में अमेरिका चाहता था कि पाकिस्तान अफगानिस्तान में नजर रखने के लिए अपने सैन्य बेस का इस्तेमाल करने की इजाजत दे लेकिन इमरान ने इसका जवाब देते हुए साफ कहा कि कतई नहीं. इमरान का ये कट टू कट जवाब अमेरिका को नाराज करने के लिए काफी था. यहां गौरतलब है कि आतंकवाद में सहयोग के नाम पर पाकिस्तान लाखों-करोड़ों डॉलर अमेरिका से ले चुका है. लेकिन पाकिस्तान की बदली जुबान अब अमेरिका को खटकने लगी थी.
बाइडेन के डेमोक्रेसी समिट का इमरान का किनारा
इमरान-बाइडेन संबंधों में कड़वाहट की एक और वजह रही इसी साल जनवरी में हुई डेमोक्रेसी समिट. कूटनीतिक हलकों में माना जाता है कि जो बाइडेन ने चीन के खिलाफ इस समिट का आयोजन किया था. इस समिट में पाकिस्तान को भी न्यौता दिया गया था. लेकिन पाकिस्तान ने अमेरिका की बजाय चीन को तवज्जो देते हुए इस समिट में आने से इनकार कर दिया. इससे भी दोनों देश के रिश्ते खराब हुए. पाकिस्तान ने कहा कि वो मौका आने पर अमेरिका से लोकतंत्र पर बात कर लेगा.
बीजिंग विंटर ओलंपिक में इमरान की मौजूदगी
अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों ने इसी साल फरवरी में हुए विंटर ओलंपिक खेलों का बहिष्कार किया था. भारत भी इन खेलों के उद्घाटन समारोह में नहीं गया था. लेकिन पाकिस्तान अपने ऑल टाइम वेदर फ्रेंड चीन को खुश करने के लिए न सिर्फ इस आयोजन में बढ़-चढ़कर पहुंचा बल्कि खुद पीएम इमरान चीन जाकर इसमें शरीक हुए. इस घटनाक्रम ने भी दोनों देशों में कड़वाहट पैदा की.
रूस का यूक्रेन पर हमला और इमरान पुतिन के मेहमान
इमरान अमेरिका का डॉलर तो चाहते थे लेकिन वे अपने देश की अहमियत का एहसास भी अमेरिका को कराना चाहते थे. वे अमेरिका के खिलाफ अड़े रहे. इधर मुल्क का खजाना खाली हो रहा था. देश की माली हालत सुधारने के लिए उन्हें फौरन डॉलर्स की जरूरत थी. इमरान तो चीन की गोद में थे ही, लेकिन वहां से उनकी जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही थीं. इस वक्त CPEC पर काम बहुत धीमा हो गया है. इमरान ने रूस से भी नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दीं. पुतिन का विश्वास जीतने के लिए तो इमरान खान ने हद ही कर दी. 24 फरवरी 2022 को पुतिन ने दुनिया को बताया कि वे यूक्रेन पर अपना सैन्य ऑपरेशन शुरू करने जा रहे हैं.
दुनिया पुतिन के इस फैसले से हैरान ही थी, लोग पूरी बात समझ ही रहे थे. तब तक लोगों ने अपने टीवी स्क्रीन पर देखा था कि इमरान खान मास्को के एक लग्जरी होटल में ब्रेकफास्ट एन्जॉय कर रहे हैं. इमरान खान 20 साल बाद रूस की यात्रा पर थे. वो भी तब जब रूस ने अमेरिका के सहयोगी रहे एक देश पर हमला करने का ऐलान किया था. पाकिस्तान ने इस दौरे पर बयान जारी करते हुए कहा कि पाक पीएम का ये दौरा पाकिस्तान-रूस द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए और विविध क्षेत्रों में पारस्परिक सहयोग बढ़ाने के लिए है. ये तस्वीरें और ये बयान बाइडेन और अमेरिका को चिढ़ाने के लिए काफी थीं.
यूएन में यूक्रेन वार पर अमेरिका से अलग रुख
पाकिस्तान यहीं नहीं रुका. मानो इमरान खान अमेरिका से दो-दो हाथ करने की तैयारी कर चुके थे. पाकिस्तान ने यूक्रेन मसले पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में आए प्रस्ताव में रूस की आलोचना करने से इनकार कर दिया. अमेरिका समेत 22 यूरोपीय देशों ने पाकिस्तान से पत्र लिखकर अपील की कि वो इस मसले पर रूस की निंदा करे उसके खिलाफ वोट डाले लेकिन इमरान सरकार ने इस पत्र को लीक कर दिया. उसने UNGA में रूस की निंदा करने से इनकार कर दिया. UNGA में इस मसले पर हुई वोटिंग में पाकिस्तान ने हिस्सा ही नहीं लिया.
यही वो मौका था जब इमरान खान ने भारत की विदेश नीति की तारीफ की थी और कहा था कि ऐसा करने के लिए भारत पर कोई दबाव नहीं डालता है लेकिन इसके लिए पाकिस्तान को चिट्ठी क्यों लिखी जाती है. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत ने अपनी विदेश नीति स्वतंत्र रखी है. इस बीच अब जब इमरान खान की सत्ता जाने को है तो उन्होंने ये कहकर कि कुछ विदेशी ताकतें उन्हें पीएम पद से हटाने के लिए साजिश रच रही हैं, बता दिया है कि उन्हें कौन सी ताकतें पसंद नहीं कर रही हैं.