
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को एक साल पूरा हो गया है. ये संकट फिलहाल टलते नहीं दिख रहा है. शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में दोनों देशों के बीच शांति स्थापित किए जाने और युद्ध समाप्ति को लेकर एक प्रस्ताव पर वोटिंग हुई. हालांकि, भारत ने इस वोटिंग से किनारा कर लिया. भारत और चीन उन 32 देशों में शामिल थे, जो वोटिंग से दूर रहे. वर्ल्ड बॉडी के भारतीय दूत का कहना था कि यह कदम स्थायी शांति के लक्ष्य को हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं था.
संघर्ष के दूसरे वर्ष में प्रवेश करने से पहले कुल 141 सदस्य देशों ने एक आपातकालीन विशेष सत्र में प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि रूस, बेलारूस और उत्तर कोरिया समेत सात देशों ने इसके खिलाफ मतदान किया. भारत और चीन के अलावा, जिन देशों ने भाग नहीं लिया, उनमें बांग्लादेश, क्यूबा, ईरान, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका शामिल थे.
शांति प्रस्ताव में रखी गईं ये मांगें
गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव में इस मांग को दोहराया गया कि रूस, यूक्रेन के क्षेत्र से अपने सभी सैन्य बलों को तुरंत, पूरी तरह से और बिना शर्त वापस ले. इसके साथ दुश्मनी को समाप्त करने की अपील की गई. सदस्य देशों से खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा, वित्त, पर्यावरण और परमाणु सुरक्षा पर युद्ध के वैश्विक प्रभावों को दूर करने के लिए सहयोग करने का आग्रह किया.
'हम हमेशा बातचीत और कूटनीति को एकमात्र उपाय मानते हैं'
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कम्बोज ने भारत के वोटिंग में हिस्सा नहीं लेने पर कारण समझाया और इस प्रस्ताव पर सवाल भी उठाए. उन्होंने कहा- समकालीन चुनौतियों से निपटने में संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद की प्रभावशीलता पर सवाल खड़ा होता है. भारत दृढ़ता से बहुपक्षवाद के लिए प्रतिबद्ध है और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों को बरकरार रखता है. हम हमेशा बातचीत और कूटनीति को एकमात्र उपाय मानते हैं. हमने जब आज के प्रस्ताव में दिए गए उद्देश्य पर ध्यान दिया, तब स्थायी शांति हासिल करने के अपने लक्ष्य तक पहुंचने में इसकी लिमिट्स को देखते हुए हम इस मतदान से खुद को दूर रखने के लिए मजबूर हो गए.
कंबोज ने सवाल उठाया और कहा- क्या हम दोनों पक्षों के स्वीकार करने योग्य किसी सोलुशन पर हैं? क्या कोई भी प्रक्रिया जिसमें दोनों पक्षों में से कोई भी शामिल नहीं है, कभी भी एक विश्वसनीय और सार्थक समाधान की ओर ले जा सकती है? उन्होंने कहा- क्या संयुक्त राष्ट्र प्रणाली, और विशेष रूप से इसका प्रमुख अंग, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, 1945-विश्व निर्माण के आधार पर, वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए समकालीन चुनौतियों का समाधान करने के लिए अप्रभावी नहीं हो गया है?.
यूक्रेन संघर्ष पर वोटिंग से दूरी बनाते आया है भारत
बताते चलें कि रूस द्वारा यूक्रेन पर 24 फरवरी, 2022 को हमला किया गया था, उसके बाद से भारत, सुरक्षा परिषद, महासभा और मानवाधिकार परिषद समेत संयुक्त राष्ट्र में रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़े प्रस्तावों से दूरी बनाता रहा है. इतना ही नहीं, भारत ने रूस के कार्यों की सार्वजनिक तौर पर आलोचना भी नहीं की है. हालांकि, सभी राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने का आह्वान जरूर किया था.
पिछले सितंबर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ एक बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आज का युग युद्ध का नहीं है. उन्होंने संघर्ष को समाप्त करने और विकासशील देशों के सामने खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा के संकट की तरफ इशारा किया था. इतना ही नहीं, पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखा है.
कंबोज ने कहा कि भारत यूक्रेन की स्थिति को लेकर चिंतित है, जहां संघर्ष के कारण अनगिनत लोगों की जान चली गई और दुख हुआ. खासकर महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के लिए. लाखों लोग बेघर हो गए और पड़ोसी देशों में शरण लेने के लिए मजबूर हो गए. उन्होंने नागरिकों और बुनियादी ढांचे पर हमलों की खबरों को बेहद चिंताजनक बताया.
'यह युग युद्ध का नहीं है'
उन्होंने कहा कि हमने लगातार इस बात की वकालत की है कि मानव जीवन की कीमत पर कभी भी कोई समाधान नहीं निकाला जा सकता है. हमारे प्रधानमंत्री का यह कथन कि यह युद्ध का युग नहीं हो सकता है, दोहराए जाने योग्य है. शत्रुता और हिंसा का बढ़ना किसी के हित में नहीं है, इसके बजाय बातचीत और कूटनीति के रास्ते पर तत्काल वापसी ही आगे का रास्ता है.
कंबोज ने ग्लोबल साउथ पर युद्ध के अनपेक्षित परिणामों पर भी प्रकाश डाला और कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि विकासशील देशों की आवाज सुनी जाए और उनकी जरूरी चिंताओं को दूर किया जाए. उन्होंने कहा कि यूक्रेन संघर्ष के प्रति भारत का दृष्टिकोण जन-केंद्रित बना रहेगा. हम यूक्रेन को मानवीय सहायता और वैश्विक दक्षिण में आर्थिक संकट के तहत अपने कुछ पड़ोसियों को आर्थिक सहायता प्रदान कर रहे हैं.
पूर्व राजदूत जिकरुर रहमान ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की वोटिंग में भारत का हिस्सा ना लेना देश की तटस्थता को दोहराता है. उन्होंने कहा- शुरुआत से ही भारत ने यह स्टैंड लिया है कि वह तटस्थ है और यूक्रेन विवाद को बातचीत के माध्यम से हल किया जाना चाहिए. भारत प्रतिबंधों के पक्ष में नहीं है और यह किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकेगा. पश्चिम भी भारत के रुख से अवगत है. देश को स्थिर और नियमित ऊर्जा आपूर्ति की बहुत आवश्यकता है और वह अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करेगा.