
भारत और अमेरिका ने एक ऐसे महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किया, जो दोनों देशों को रक्षा क्षेत्र में साजो-सामान के लिए करीबी साझेदार बनाएगा. इससे दोनों देशों की सेना मरम्मत और सप्लाई को लेकर एक दूसरे के सैनिक ठिकानों और जमीन का इस्तेमाल कर सकेंगी. जाहिर है कि दोनों देशों ने इस समझौते को करते हुए चीन की बढ़ती समुद्री ताकत को ध्यान में रखा है.
सोमवार को साजो-सामान संबंधी आदान-प्रदान समझौते (लेमोआ) पर हस्ताक्षर किए जाने का स्वागत करते हुए रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने कहा कि यह समझौता व्यवहारिक संपर्क और आदान-प्रदान के लिए अवसर प्रदान करेगा. यह समझौता दोनों देशों की सेना के बीच साजो-सामान संबंधी सहयोग, आपूर्ति एवं सेवा की व्यवस्था प्रदान करेगा.
दोनों देशों में मजबूत होंगे रक्षा संबंध
समझौते पर हस्ताक्षर के बाद जारी साझा बयान में कहा गया, उन्होंने इस महत्व पर जोर दिया कि यह व्यवस्था रक्षा प्रौद्योगिकी एवं व्यापार सहयोग में नए और अत्याधुनिक अवसर प्रदान करेगा. अमेरिका ने भारत के
साथ रक्षा व्यापार और प्रौद्योगिकी को साझा करने को निकटम साझेदारों के स्तर तक विस्तार देने पर सहमति जताई है. बयान में कहा गया है कि दोनों देशों के बीच रक्षा संबंध उनके साझा मूल्यों एवं हितों पर
आधारित है.
दोनों देशों की नौसनाएं आसानी से साझा अभ्यास कर पाएंगी
पर्रिकर ने एक सवाल के जवाब में इसका (एलईएमओए का) कोई सैन्य अड्डा बनाने से कोई लेना-देना नहीं है. मूल रूप से यह एक-दूसरे के बेड़ों को साजो-सामान संबंधी सहयोग उपलब्ध कराने, जैसे ईंधन की आपूर्ति
करने से या साझा अभियानों, मानवीय मदद एवं अन्य राहत अभियानों के लिए जरूरी चीजें उपलब्ध कराने से जुड़ा है. उन्होंने कहा, मूल रूप से यह इस बात को सुनिश्चित करेगा कि दोनों नौसेनाएं हमारे संयुक्त
अभियानों एवं अभ्यासों में एक दूसरे के लिए मददगार साबित हो सकें.
समझौते के तहत सैन्य अड्डे नहीं बनाए जाएंगे
अमेरिकी रक्षा मंत्री ने कहा कि एलईएमओए दोनों देशों को एक साथ काम करने में सक्षम बनाने में बेहद महत्वपूर्ण है. कार्टर ने कहा कि यह हमारे एक साथ काम करने को संभव एवं आसान बनाता है. उन्होंने कहा, यह
पूरी तरह आपसी सहमति पर आधारित है. दूसरे शब्दों में कहें तो, इस समझौते के तहत हम एक-दूसरे को पूरी तरह से साजो-समान संबंधी पहुंच एवं सुगमता मुहैया कराते हैं. यह किसी भी तरह से सैन्य अड्डे स्थापित
करने वाला समझौता नहीं है. लेकिन यह संयुक्त अभियानों से जुड़े साजो-सामान की आपूर्ति बेहद आसान बनाता है. यह समझौता न सिर्फ जरूरी सहयोग को वित्तीय मदद देने के लिए अतिरिक्त माध्यम उपलब्ध कराता है,
बल्कि इसके तहत अलग-अलग मामलों के लिए दोनों देशों की सहमति भी जरूरी है.