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कभी अमेरिका में बर्गर बेचते थे, आज मार्क जकरबर्ग और सुंदर पिचाई से भी ज्यादा सैलरी लेते हैं... जानें- इस भारतवंशी की पूरी कहानी

अमेरिकी कंपनी पॉलो ऑल्टो नेटवर्क के सीईओ और चेयरमैन निकेश अरोड़ा अमेरिका में सबसे ज्यादा सैलरी पाने वाले दूसरे शख्स बन गए हैं. वॉल स्ट्रीट जर्नल ने सबसे ज्यादा सैलरी पाने वाले सीईओ की लिस्ट जारी की है. इसके मुताबिक, अरोड़ा को मार्क जकरबर्ग और सुंदर पिचाई से भी ज्यादा सैलरी मिलती है.

निकेश अरोड़ा. निकेश अरोड़ा.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 मई 2024,
  • अपडेटेड 11:37 PM IST

अमेरिका की सिलिकॉन वैली यानी वो जगह जहां दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों के हेडक्वार्टर हैं. और इसी सिलिकॉन वैली में भारतवंशियों का अच्छा-खासा दबदबा रहा है. खास बात ये है कि कुछ बड़ी कंपनियों के बॉस भी भारतवंशी ही हैं. 

ऐसी ही एक कंपनी है पॉलो ऑल्टो नेटवर्क, जिसके सीईओ और चेयरमैन हैं निकेश अरोड़ा. निकेश अरोड़ा अमेरिका में सबसे ज्यादा सैलरी पाने वाले दूसरे शख्स हैं. उन्होंने सैलरी के मामले में मार्क जकरबर्ग को भी पछाड़ दिया है. मार्क जकरबर्ग और निकेश अरोड़ा की सैलरी में लगभग 18 गुना का अंतर है.

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वॉल स्ट्रीट जर्नल ने 2023 में सबसे ज्यादा सैलरी लेने वालों की एक लिस्ट जारी की है. इस लिस्ट में पहले नंबर पर ब्रॉडकॉम के सीईओ हॉक टैन हैं. मलेशियाई मूल के हॉक टैन की सैलरी 16.2 करोड़ डॉलर (लगभग 1,348 करोड़ रुपये) है. ये उनकी सालभर की सैलरी है. इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर भारतीय मूल के निकेश अरोड़ा हैं. 2023 में उन्होंने 15.14 करोड़ डॉलर (लगभग 1,260 करोड़ रुपये) की सैलरी ली थी.

अरोड़ा की कमाई गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई और मेटा के सीईओ मार्क जकरबर्ग से कहीं ज्यादा है. वॉल स्ट्रीट जर्नल की लिस्ट के मुताबिक, सुंदर पिचाई ने पिछले साल 2.44 करोड़ डॉलर (करीब 200 करोड़ रुपये) और मार्क जकरबर्ग ने 88 लाख डॉलर (करीब 73 करोड़ रुपये) कमाए थे.

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने बताया है कि 2023 में सबसे ज्यादा सैलरी पाने वाले टॉप 500 सीईओ की इस लिस्ट में 17 भारतवंशी हैं.

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अरबतियों की लिस्ट में शुमार हैं अरोड़ा

इसी साल जनवरी में ब्लूमबर्ग बिलियनेयर इंडेक्स में निकेश अरोड़ा को शामिल किया था. तब ब्लूमबर्ग ने उनकी नेटवर्थ 1.5 अरब डॉलर (12,485 करोड़ रुपये) होने का अनुमान लगाया था. खास बात ये है कि निकेश अरोड़ा उन चुनिंदा अरबपतियों में से है, जो नॉन-फाउंडर हैं. यानी, अरोड़ा ने खुद कोई कंपनी शुरू नहीं की, बावजूद उसके वो अरबपति बन गए हैं. निकेश अरोड़ा इस समय टेक कंपनी पॉलो ऑल्टो नेटवर्क के सीईओ और चेयरमैन है. इस कंपनी की मार्केट कैप 91 अरब डॉलर से ज्यादा है. 

निकेश अरोड़ा लंबे समय से अमेरिकी कंपनियों से जुड़े हुए हैं. उन्होंने गूगल में भी काम किया है. उनकी पहचान एक कारोबारी, इन्वेस्टर और एंटरप्रेन्योर के तौर पर है. 

उनका जन्म 9 फरवरी 1968 को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में हुआ था. उन्होंने एयरफोर्स स्कूल से अपनी पढ़ाई की. इसके बाद आईआईटी बीएचयू से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की. आगे की पढ़ाई के लिए वो अमेरिका चले गए. वहां उन्होंने नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी से एमबीए और बोस्टन कॉलेज से फाइनेंस में एमएस की डिग्री हासिल की.

ऐसे शुरू किया था अपना करियर

अरोड़ा ने 1992 में फिडेलिटी इन्वेस्टमेंट से अपना करियर शुरू किया था. यहां वो टेक्ननोलॉजी मैनेजमेंट और फाइनेंस से जुड़े पद पर रहे हैं. साल 2000 में उन्हें फिडेलिटी इन्वेस्टमेंट में वाइस प्रेसिडेंट नियुक्त किया गया. 

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उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि जब वो अमेरिका आए थे, तो उनके पिता ने उन्हें 75 हजार रुपये दिए थे. उन्होंने बताया था कि अपना खर्चा निकालने के लिए उन्होंने कई जगह काम किए. उन्होंने कभी बर्गर शॉप में सेल्समैन तो कभी सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी भी की थी.

गूगल में भी मिलती थी सबसे ज्यादा सैलरी

लेकिन ये अरोड़ा की मेहनत ही थी जो उन्हें इस मुकाम तक ले आई. अरोड़ा जब गूगल में थे तो वो वहां सबसे ज्यादा सैलरी पाने वाले इकलौते कर्मचारी थे. अरोड़ा साल 2004 में गूगल से जुड़े थे. और 2012 में उन्हें गूगल से सालाना 5.1 अरब डॉलर सैलरी मिलती थी. बताया जाता है कि जब अरोड़ा गूगल में थे, तो उन्होंने 2009 में नेटफ्लिक्स को खरीदने का सुझाव दिया था. उस समय नेटफ्लिक्स की मार्केट कैप 3 अरब डॉलर थी, जो आज 27 अरब डॉलर से ज्यादा हो गई है. हालांकि, गूगल ने अरोड़ा का सुझाव नहीं माना था.

गूगल को अलविदा कहने के बाद वो सॉफ्ट बैंक के प्रेसिडेंट बने. उनके प्रेसिडेंट रहते ही सॉफ्ट बैंक ने 25 करोड़ डॉलर की डील की थी. इतना ही नहीं स्नैपडील, ओला, ग्रोफर्स और हाउसिंग डॉट कॉम जैसे भारतीय स्टार्टअप में भी सॉफ्ट बैंक ने इन्वेस्ट किया था.

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जून 2018 में अरोड़ा पॉलो ऑल्टो नेटवर्क से जुड़े थे. वो तब से ही इसके सीईओ और चेयरमैन हैं. कंपनी से जुड़ने के बाद उन्हें 12.5 करोड़ डॉलर के शेयर दिए गए थे. पांच साल में कंपनी के शेयर कई गुना बढ़ गए, जिस कारण उनकी नेटवर्थ भी 1.5 अरब डॉलर को पार कर गई.

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