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रूस में बेकार पड़ा भारत का अरबों रुपया, तेल कंपनियां हुईं परेशान

भारत की सरकारी तेल कंपनियों की हिस्सेदारी रूस के कई तेल प्रोजेक्ट्स में है. ये कंपनियां लाभ का हिस्सा पहले निकाल लेती थीं लेकिन यूक्रेन पर आक्रमण के कारण रूस पर प्रतिबंध लग गए हैं और भारतीय कंपनियों के पैसे रूस में ही फंस गए हैं. अब कंपनियां उस पैसे के इस्तेमाल के तरीके खोज रही हैं.

रूस भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है (Photo- AFP) रूस भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है (Photo- AFP)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 15 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 1:02 PM IST

भारत की सरकारी क्षेत्र की तेल कंपनियों का लाभांश (डिविडेंड इनकम) रूस पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण उसके बैंकों में ही फंस गया है और अब वो चाहती हैं कि उस पैसे का इस्तेमाल रूस से तेल खरीद में हो. मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने बताया कि भारतीय कंपनियां अपने फंसे पैसे को किसी तरह इस्तेमाल करने के लिए सभी कानूनी विकल्प तलाश रही हैं.

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ONGC विदेश (OVL), ऑयल इंडिया (OIL), इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (OIC) और भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (BPCL) की शाखा भारत पेट्रोरिसोर्सेज को रूस ने डिविडेंड इनकम भुगतान में कुल 60 करोड़ डॉलर (49,83,61,20,000 रुपये) दिए थे जो रूस के बैंक खातों में ही फंसकर रह गए हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस के भुगतान चैनलों पर प्रतिबंध लग गया है. 

डिविडेंड इनकम वह पैसा होता है किसी कंपनी का शेयर खरीदने पर मिलता है. अगर कंपनी लाभ में है तो उस लाभ का कुछ हिस्सा अपने शेयरधारक को देती है.

अब भारत की कंपनियों ने अपने रूसी साझेदारों के साथ डिविडेंड इनकम का मुद्दा उठाया है. भारत और रूस की सरकारें भी इस मुद्दे पर चर्चा कर रही हैं. रूस वर्तमान में भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है. वाणिज्यिक खुफिया और सांख्यिकी महानिदेशालय के आंकड़ों के अनुसार, जुलाई के महीने में भारत ने रूस से 3.37 अरब डॉलर का तेल खरीदा था.

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रूस में फंसे पैसे के इस्तेमाल में कई दिक्कतें

भारत की सरकारी तेल कंपनियों में से एक के वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर इंडियन एक्सप्रेस को बताया, 'सबसे व्यावहारिक विकल्प यह होगा कि उस पैसे का उपयोग रूस से खरीदे जाने वाले तेल के कुछ हिस्से के भुगतान के लिए किया जाए. लेकिन इसमें कई वित्तीय और कानूनी दिक्कतें हैं. हम इसका समाधान खोजने की दिशा में काम कर रहे हैं.'

डिविडेंड इनकम के पैसे का इस्तेमाल सीधे तौर पर तेल के भुगतान के लिए कर पाना संभव नहीं है क्योंकि इसके रास्ते में टैक्स, अकाउंटिंग की दिक्कतें और अंतरराष्ट्रीय टैक्स क्षेत्राधिकार से संबंधित चुनौतियां आएंगी. और भारत की तेल कंपनियां रूस के खिलाफ लगे पश्चिमी प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं करना चाहती हैं.

भारतीय रिफाइनरों को उधार दिया जा सकता है रूस में फंसा पैसा

अधिकारी ने कहा कि फंसे हुए पैसे का उपयोग करने का एक तरीका यह हो सकता है कि इसे रूसी तेल खरीदने वाले भारतीय रिफाइनरों को उधार दिया जाए. रिफाइनर रूस में पड़े पैसे का उपयोग तेल खरीद के कुछ हिस्से के भुगतान के लिए कर सकते हैं और फिर भारत में वो कर्ज चुका सकते हैं. सरकारी तेल रिफाइनर आईओसी और बीपीसीएल पहले से ही रूस में निवेश वाली भारतीय तेल कंपनियों में शामिल हैं.

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ONGC की विदेशी निवेश शाखा OVL के पास रूस के सखालिन-1 प्रोजेक्ट में 20 प्रतिशत और वेंकोर प्रोजेक्ट में 26 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. IOC, OIL और भारत पेट्रोरिसोर्सेज (BPRL) ने मिलकर वेंकोर प्रोजेक्ट में 23.9 प्रतिशत और तास-यूर्याख प्रोजेक्ट में 29.9 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद रखी है. फंसे हुए डिविडेंड का लगभग 45 करोड़ डॉलर IOC, OIL और भारत पेट्रोरिसोर्सेज (BPRL) का है. OVL का करीब 15 करोड़ डॉलर का डिविडेंड इनकम भी फंसा हुआ है.

भारत की तेल कंपनियां फिलहाल रूस के किसी प्रोजेक्ट में निवेश करने का नहीं सोच रही हैं जिससे फंसे हुए पैसे का इस्तेमाल कर लेना ही एकमात्र व्यवहार्य विकल्प दिख रहा है.

यूक्रेन युद्ध से पहले जहां भारत रूस से बेहद कम मात्रा में तेल खरीदता था, अब सबसे अधिक तेल रूस से ही खरीद रहा है. रूस पिछले साल इराक, सऊदी अरब जैसे भारत के शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ताओं को पीछे छोड़कर भारत का शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है.

रूस ने भारत को रियायती दरों पर तेल बेचना शुरू किया था क्योंकि पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण वो यूरोपीय देशों को अपना तेल नहीं बेच पा रहा था. रूसी तेल पर छूट अब भी जारी है. हालांकि, यह छूट अब बेहद कम हो गई है.

रूस के किस बैंक में फंसा भारतीय कंपनियों का पैसा?

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रूस में जिस बैंक में भारत की सरकारी तेल कंपनियों का पैसा जमा है, उसे कमर्शियल इंडो बैंक (CIBL) माना जाता है. यह पहले CIBL, SBI और केनरा बैंक का संयुक्त उद्यम हुआ करता था, लेकिन केनरा बैंक ने कुछ महीने पहले इस उद्यम में अपनी हिस्सेदारी SBI को बेच दी. 

यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के तुरंत बाद रूस के कई प्रमुख बैंकों को सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (SWIFT) वित्तीय प्रणाली से हटा दिया गया जिससे रूस के वैश्विक भुगतान प्रणाली को गंभीर नुकसान हुआ है. इसके बाद रूस ने अमेरिकी डॉलर में व्यापार के लेन-देन पर भी रोक लगा दिया.

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