
मुद्रा वैल्यू में भारी गिरावट और उच्च महंगाई दर से कराह रहे इस्लामिक देश ईरान को एक और झटका लगा है. भारत के चावल निर्यातक कंपनियों ने फैसला किया है कि बिना साख पत्र (लेटर ऑफ क्रेडिट) या नकद के बिना ईरान को चावल नहीं भेजा जाएगा.
ईरान विदेशी मुद्रा संकट और उच्च महंगाई दर से जूझ रहा है. महंगाई की वजह से रमजान में भी ईरानी नागरिक जरूरी समान को पर्याप्त मात्रा में नहीं खरीद पा रहे हैं. महंगाई का आलम यह है कि लोग समान खरीदने से पहले दुकानों के बीच कीमतों की तुलना कर रहे हैं. इसके बाद भी कई बार उन्हें यह फैसला लेना पड़ रहा है कि किस समान के बिना इस सप्ताह गुजारा चलाया जा सकता है.
ईरान पर 700 करोड़ की उधारी
ईटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय चावल निर्यातकों के लगभग 700 करोड़ रुपये ईरान पर बकाया है. मुद्रा संकट के कारण ईरान इस बकाया राशि का भुगतान नहीं कर पा रहा है. इसी वजह से भारतीय चावल निर्यातकों ने केवल साख पत्र या नकद पर ही ईरान को बासमती चावल भेजने का फैसला किया है.
ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (AIREA) ने ईरान के गवर्नमेंट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन (GTC) को अपने इस फैसले से अवगत करा दिया है. AIREA ने ईरानी गवर्नमेंट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन से कहा है कि ईरान लेटेस्ट निर्यात का भी भुगतान करने में विफल रहा है. इस खेप को जनवरी-मार्च के दौरान ईरान भेजा गया था.
हालांकि, भारतीय चावल निर्यातकों के इस फैसले पर ईरान सरकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
ईरानी मुद्रा में भारी गिरावट
दरअसल, पिछले कई महीनों से ईरान की मुद्रा रियाल में भारी गिरावट जारी है, जिससे आयात काफी महंगा हो गया है. इस वजह से बुनियादी जरूरतों की कीमतें आसमान छू रही हैं.
पिछले कुछ महीनों में रियाल अमेरिकी डॉलर की तुलना में काफी नीचे गिर गया है, सितंबर 2022 में जो रियाल अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगभग 3,00,000 था. फरवरी के अंत में वही ईरानी मुद्रा डॉलर के मुकाबले लगभग 6,00,000 रियाल है.
ईरान में अमेरिकी डॉलर की भारी कमी का एक अहम कारण अमेरिकी प्रतिबंधों के बने रहने की संभावना है. दरअसल, 2015 परमाणु समझौते को फिर से लागू करने के लिए अमेरिका और ईरान के बीच बातचीत रुकी हुई है. ईरान चाहता है कि वह अपना परमाणु कार्यक्रम फिर से शुरू करे. ऐसे में संभावना है कि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध लागू रह सकता है. इसलिए ईरान अपनी बचत बरकरार रखने के लिए ग्रीनबैक और गोल्ड की ओर रुख कर रहा है.
बासमती चावल की कीमत में वृद्धि
कोहिनूर फूड्स के संयुक्त प्रबंध निदेशक गुरनाम अरोड़ा का कहना है कि इस साल भारत में बासमती चावल की पैदावर कम हुई है. इस वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बासमती चावल की कीमत बढ़कर 300 डॉलर प्रति टन हो गई है. यहां तक कि घरेलू बाजार में भी बासमती चावल की कीमतों में वृद्धि देखने को मिली है. बाजार में बासमती चावल 95-100 प्रति किलो हो गया है.
भारत प्रत्येक साल लगभग 80 से 90 लाख टन के बीच बासमती चावल का उत्पादन करता है. कुल उत्पादित चावल का लगभग आधा यानी 45 लाख टन चावल को भारत वैश्विक बाजार में निर्यात कर देता है. भारत सबसे ज्यादा चावल का निर्यात मिडिल ईस्ट कंट्री को करता है.
ईरान बासमती चावल का बड़ा बाजार
विदेशी व्यापार के लिहाज से ईरान भारत के लिए महत्वपूर्ण देश माना जाता है. बासमती चावल के लिए भी ईरान भारत के लिए बड़ा बाजार है. पिछले वित्तीय वर्ष में भारत से निर्यात कुल बासमती चावल का एक चौथाई हिस्सा ईरान को बेचा गया था.
अमेरिकी प्रतिबंध से पहले लगभग 13 लाख टन आयात के साथ ईरान भारत से बासमती चावल खरीदने में पहले स्थान पर था. हालांकि, अभी भी ईरान भारत से लगभग 9 लाख टन बासमती चावल खरीदता है. वर्तमान में भारत से बासमती चावल खरीदने में ईरान दूसरे स्थान पर है.
ईरान को बेचे जा रहे समान में चावल के अलावा चाय, चीनी, ताजे फल, फार्मास्यूटिकल्स, सॉफ्ट ड्रिंक, औद्योगिक मशीनरी और हड्डी रहित मांस है.
पिछले कुछ महीनों की बात करें तो भारत और ईरान के बीच व्यपारिक रिश्ते ठीक नहीं रहे हैं. दिसंबर 2022 में ईरान ने अचानक से भारतीय चाय और चावल का आयात बंद कर दिया था. बाजार से जुड़े अधिकारियों ने उस वक्त कहा था कि भारत ने ईरान से आयात होने वाली कुछ फलों पर रोक लगा दी है. संभवतः इसी वजह से ईरान ने भी बदले की भावना से अचानक भारतीय चाय और चावल का आयात बंद कर दिया है.