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अफगानिस्तान के मजार ए शरीफ शहर में गुरुवार को बम ब्लास्ट हुआ था. इस हमले में तालिबानी गवर्नर दाऊद मुजमल समेत 3 लोगों की मौत हो गई. इस हमले के पीछे इस्लामिक स्टेट खुरासान (ISIS- khorasan) का हाथ बताया जा रहा है. तालिबान के कब्जे के बाद से खुरासान लगातार अफगानिस्तान में आतंकी हमलों को अंजाम दे रहा है. इतना ही नहीं खुरासान ने हाल ही में दावा किया है कि भारत में कोयम्बटूर और मंगलुरु में हुए विस्फोट में भी उसी का हाथ था. आईए जानते हैं कि IS खुरासान क्या है और इसकी तालिबान से क्या दुश्मनी है?
क्या है ISIS खुरासान?
ISIS खुरासान, ISIS का ही हिस्सा है, जिसे अफगानिस्तान-पाकिस्तान के आतंकवादी चलाते हैं. इसका मुख्यालय अफगानिस्तान के ही नांगरहार राज्य में है जो पाकिस्तान के बेहद नजदीक है. तालिबानी कमांडर मुल्ला उमर की मौत के बाद तालिबान के बहुत से खूंखार आतंकवादी ISIS खुरासान में शामिल हो गए. इस तरह ये तालिबान से ही निकला ग्रुप कहा जा सकता है.
क्या है ISIS खुरासान का मकसद?
ISIS खुरासान का मकसद खुरासान राज्य की स्थापना करना है. ISIS खुरासान की अमेरिका से दुश्मनी क्यों और कैसे शुरू हुई. ये समझने से पहले आपको फारसी शब्द खुरासान को समझना होगा, जिसका मतलब होता है, जहां से सूरज उगता है. तीसरी-चौथी सदी में अरब से निकले लोग आज के ईरान पहुंचे और जहां वो आबाद हुए उसका नाम खुरासान पड़ा. इसका दायरा बढ़ता गया और वो एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरा.
SIS खुरासान के नक्शे में भारत के भी राज्य
इसके बाद बगदादी की नजर खुरासान पर पड़ी और उसने आतंक का खुरासान नक्शा तैयार किया. इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान के नक्शे में भारत का गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और जम्मू कश्मीर भी आता है. वहीं इसमें आधा चीन, पाकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान भी आता है.
तालिबान से भी खूंखार आतंकी संगठन
पिछले साल ISIS-K ने सिखों के गुरुद्वारे पर हमले के अलावा काबुल में एक महिला अस्पताल को भी निशाना बनाया था. इस हमले में 24 महिलाओं और नवजात बच्चों की मौत हो गई थी. मरने वाली महिलाओं में ऐसी महिलाएं भी शामिल थीं जो कुछ ही देर में बच्चों को जन्म देने वाली थीं. इस घिनौनी हरकत को अंजाम देकर ISIS-K ने साबित कर दिया कि वो तालिबान से भी खूंखार आतंकी संगठन है.
ISIS-K को किसी राजनीतिक एजेंडा में यकीन नहीं
तालिबान और ISIS-K एक दूसरे के दुश्मन हैं. तालिबान का प्रभाव अफगानिस्तान में है. वहीं ISIS-K भी अफगानिस्तान से फैलकर बगदादी के खुरासान स्टेट के सपने को पूरा करना चाहता है. ISIS-K तालिबान की तरह किसी राजनीतिक एजेंडा में यकीन नहीं रखता. उसका मानना है कि तालिबान जो कर रहा है काफी नहीं है, इसलिए वो तालिबान से भी ज्यादा कट्टर और खूंखार है.
यही कारण है कि अफगानिस्तान में उसने अपने प्रभाव वाले इलाकों में बहुत ही कड़ाई से शरिया कानून लागू कर रखा है. जो भी शरिया कानून को मानने से इनकार करता है, या फिर उसकी नजर में उसका उल्लंघन करता है तो ISIS-K उसे बहुत ही क्रूर सजा देता है. यही बात ISIS-K को तालिबान से भी ज्यादा खतरनाक आतंकवादी संगठन बनाता है. उसका मकसद सारी दुनिया में इस्लाम का राज कायम करना है.
अमेरिका से भी पुरानी है दुश्मनी
अमेरिका से इसकी अदावत कई साल पहले शुरू हुई जब अमेरिका ने इसे तालिबान से बड़ा खतरा मानते हुए इस पर एयरस्ट्राइक शुरू की. इन हमलों की वजह से ISIS-K की ताकत काफी कमजोर हो गई थी. अमेरिकी हमलों की वजह से साल 2016 तक ISIS-K में 1500 से 2000 आतंकवादी ही बचे थे. तभी 13 अप्रैल 2017 को अमेरिका ने इस आतंकवादी संगठन को सबसे बड़ी चोट दी और उसके ठिकाने पर सबसे बड़ा गैर परमाणु बम गिरा दिया.
अमेरिका ने अफगानिस्तान के नांगरहार राज्य में मदर ऑफ ऑल बम को ISIS-K मुख्यालय के ठीक ऊपर गिराया जिसमें तीन दर्जन से ज्यादा आतंकवादी एक झटके में मारे गए थे. लेकिन इसके बावजूद ये धीरे-धीरे एक बड़े आतंकवादी संगठन में तब्दील हो गया साल 2020 में ISIS-K ने शिहाब अल-मुहाजिर को अपना नया लीडर घोषित कर अफगानिस्तान को दहला दिया.
अमेरिकी सैनिकों पर भी किया हमला
अमेरिका ने अफगानिस्तान से अगस्त 2021 में सेना को वापस बुलाने का फैसला किया था. इसके बाद तालिबान ने अगस्त 2021 में कब्जा कर लिया था. इसके बाद अमेरिका सेना और अफगानिस्तान में रह रहे अन्य देशों के लोग काबुल छोड़ रहे थे, तब राजधानी काबुल के हामिद करजई इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पास आत्मघाती हमला हुआ था. इस हमले में 13 अमेरिकी कमांडो समेत सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी. आतंकी संगठन ISIS के खुरासान ग्रुप ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी.
हाल ही में यूएन का दावा है कि ISIL-K के पास 1000-3000 लड़ाके हैं. इनमें से करीब 200 सेंट्रल एशिया में हैं. हालांकि, कुछ देशों का मानना है कि यह संख्या 6000 तक है. इतना ही नहीं ISIL-K वॉयस ऑफ खोरासन के द्वारा पश्तो, फारसी, ताजिक, उज़्बेक और रूसी भाषाओं में प्रोपेगेंडा करता है, ताकि स्थानीय युवाओं को इसमें भर्ती किया जा सके.