
मध्य-पूर्व की सबसे अधिक आबादी वाला देश मिस्र वर्तमान में गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है. लोग खाने-पीने की चीजें आसानी से नहीं खरीद पा रहे और मूलभूत जरूरतों में भी कटौती करने को मजबूर हैं. नौकरीपेशा वर्ग का वेतन आधा हो गया है और लोग बैंकों में जमा अपने ही पैसे को नहीं निकाल पा रहे क्योंकि बैंकों ने निकासी को प्रतिबंधित कर दिया है. देश की मुद्रा पाउंड में भारी अवमूल्यन हुआ है जिससे महंगाई बेतहाशा बढ़ गई है.
काहिरा के शौबरा में रहने वाले 40 साल के एकाउंटेंट अहमद हसन ने एक वेबसाइट को बताया कि उनके तीन बच्चे हैं और महंगाई के बीच सबका पेट पालना मुश्किल हो रहा है. हसने कहते हैं, 'जब हम खरीदारी करने जाते हैं तो तीन किलोग्राम चावल खरीदने के बजाय, हम सिर्फ एक किलो या आधा किलो चावल ही खरीद पाते हैं. हम अपना खर्च कम करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन हम क्या-क्या खरीदना छोड़ें...हमारे बच्चों को कई चीजों की बहुत जरूरत होती है.'
मुद्रास्फीति 20% से अधिक
अक्टूबर 2022 के अंत से मिस्र की मुद्रा का लगभग एक तिहाई अवमूल्यन हुआ है और मुद्रास्फीति वर्तमान में 20% से अधिक है. कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि स्थिति इससे भी बदतर है. उनका कहना है कि मुद्रास्फीति फिलहाल 101 % तक हो सकती है.
कई विशेषज्ञ यह कह रहे हैं कि मिस्र मध्य-पूर्व के देश लेबनान की राह पर है. लेबनान साल 2019 से ही गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है जहां के लोग दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं.
लेबनान और मिस्र के बीच बड़ी समानताएं
लेबनान में स्थिति इतनी खराब हो गई है कि नागरिक अपने ही पैसे के लिए बैंक लूट रहे हैं. देश में पैसे न होने की वजह से बैंकों ने निकासी प्रतिबंधित कर दी है. हताश लोग अपनी बचत बैंक से निकालने के लिए वहां लूट मचा रहे हैं. देश के बिजली स्टेशनों में ईंधन नहीं है जिस कारण देश के शहर अंधेरे में डूबे हैं. देश का मध्यम वर्ग भारी कर्ज में डूबा है.
मिस्र में अभी हालत इतनी खराब नहीं है लेकिन मिस्र के बिगड़ते हालात को देखते हुए कई लोग सवाल करने लगे हैं कि क्या मिस्र जल्द ही लेबनान बनने वाला है?
कनाडा के साइमन फ्रेजर विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर रॉबर्ट स्प्रिंगबॉर्ग ने मध्य पूर्व के लोकतंत्र पर वाशिंगटन स्थित एक एनजीओ के लिए Project on Middle East Democracy (POMED) रिपोर्ट तैयार की है जिसमें वो लिखते हैं, 'लेबनान की पूरी तरह से विफल अर्थव्यवस्था और मिस्र की संघर्ष करती अर्थव्यवस्था के बीच बड़ी समानताएं हैं.'
उन्होंने लिखा कि लेबनान की आर्थिक साख जिस तरह दुनिया के सामने जमींदोज हुई, अगर मिस्र के साथ ऐसा होता है तो स्थिति बेहद खतरनाक हो जाएगी.
कैसे बने मिस्र में ऐसे हालात?
मिस्र के हालात के लिए देश की आंतरिक समस्याएं जिम्मेदार हैं- जिनमें राजनीतिक अशांति, भ्रष्टाचार और सरकारी कुप्रबंधन शामिल हैं. इसके साथ ही कोविड-19, रूस-यूक्रेन युद्ध और वैश्विक मंदी ने स्थिति को और बदतर बनाने में भूमिका निभाई है.
आर्थिक कुप्रबंधन के कारण मिस्र की हालत बेहद खराब हो चुकी है. कोविड महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट की. पर्यटन से होने वाली आय मिस्र के राजस्व में बड़ी भूमिका अदा करता था लेकिन कोविड महामारी के दौरान देश में पर्यटक आने बंद हो गए थे. इसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध ने मिस्र में खाद्यान्नों की किल्लत पैदा कर दी. दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं आयातक मिस्र रूस और यूक्रेन से ही गेहूं खरीदता था लेकिन युद्ध छिड़ जाने के कारण गेहूं का आयात बंद हो गया. वैश्विक बाजार में गेहूं की बढ़ी कीमतों ने भी मिस्र की हालत खराब कर दी है.
सरकारी कुप्रबंधन
साल 2014 में सैन्य तख्तापलट के बाद राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी सत्ता में आए और उन्होंने सरकारी खर्च को काफी बढ़ा दिया. उनके नेतृत्व में मिस्र की सरकार ने 23 अरब डॉलर की लागत से दुनिया की सबसे लंबी, चालक रहित मोनोरेल की शुरुआत की, राष्ट्रीय मेगा-परियोजनाओं को बढ़ावा दिया गया. एक्सपर्ट्स का कहना है, "सीसी ने काहिरा के पास 50 अरब डॉलर की लागत से एक नई प्रशासनिक राजधानी बनाई. इससे देश में कृत्रिम रूप से विकास तो हुआ लेकिन लोग गरीब होते चले गए. सीसी ने सेना को मजबूत बनाने के लिए अपार धन खर्च किया.
सरकार की इस तरह की नीतियों से देश और सैन्य-स्वामित्व वाले उद्योगों को अर्थव्यवस्था पर हावी होने का मौका मिला. इससे मिस्र का निजी क्षेत्र निराशा में डूब गया, विदेशी निवेश कम हो गया. विदेशी निवेशकों ने जब देखा कि मिस्र देश चलाने के लिए विदेशी कर्जें पर निर्भर हो गया है तो उन्होंने देश में निवेश रोक दिया."
मिस्र पर फिलहाल 155 अरब डॉलर से अधिक का कर्ज है. इसकी राष्ट्रीय आय का लगभग एक-तिहाई हिस्सा विदेशी कर्ज की किश्त को चुकाने में चला जाता है.
विश्व बैंक के मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र के एक पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री रबाह अरेजकी ने पिछले हफ्ते लिखा था कि इन सभी कारणों ने मिस्र की आर्थिक हालत पतली कर दी है.
बेरूत में कार्नेगी मिडिल ईस्ट सेंटर के सीनियर फेलो यजीद सईघ ने कहा, 'मिस्र पर महामारी और यूक्रेन युद्ध का इतना बड़ा प्रभाव होने का कारण सीसी की खराब निवेश रणनीति है. नौ सालों से मिस्र में यही चल रहा है, बड़ी परियोजनाओं पर भारी खर्च किया जा रहा है जिनमें से कुछ पूरी तरह से अनावश्यक हैं. इससे मिस्र की अर्थव्यवस्था को कोई लाभ नहीं हुआ बल्कि इससे उसकी वित्तीय स्थिति बेहद कमजोर हुई है.'
सईघ ने कहा कि मिस्र की इस हालत के लिए जर्मनी और अमेरिका सहित कई देशों की सरकारें भी आंशिक रूप से दोषी हैं. वो कहते हैं, 'इन देशों ने ही मिस्र के कर्ज को बेतहाशा बढ़ा दिया. इन देशों की भागीदारी के बिना सीसी मिस्र के कर्ज को 400 % तक नहीं बढ़ा सकते थे.'
क्या लेबनान बन जाएगा मिस्र?
मिस्र और लेबनान के बीच कुछ समानताएं हैं, जैसे- लेबनान की तरह ही मिस्र की 60% जनता गरीबी रेखा से नीचे जाने वाली है.
मिस्र की राजनीतिक अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ और तहरीर इंस्टीट्यूट फॉर मिडिल ईस्ट पॉलिसी में पॉलिसी फेलो टिमोथी कलदास ने कहा, 'जिस तरह लेबनान का अभिजात्य वर्ग देश और जनता की कीमत पर खुद को और अमीर बना रहा है उसी तरह मिस्र का अभिजात्य वर्ग भी गरीबों का खून चुसकर अमीर हो रहा है. दोनों देशों के बीच एक समानता यह भी है.'
लेकिन कार्नेगी इंस्टीट्यूट के यजीद सईघ कहते हैं कि दोनों देशों के बीच इस तरह की स्पष्ट तुलना सही नहीं है. वो कहते हैं, 'कुछ समानताओं के बावजूद गरीबी और भ्रष्टाचार जैसी चीजें कई अरब देशों के लिए आम हैं. इसलिए आप इतनी सरलता से तुलना नहीं कर सकते. साथ ही मिस्र की सरकार लेबनान की सरकार की तरह भ्रष्ट नहीं है.'
टिमोथी कलदास भी यह स्वीकारते हैं कि मिस्र लेबनान की तुलना में अधिक स्थिर स्थिति में है और यह लेबनान की तरह पूरी तरह के पतन के कगार पर नहीं है.
कलदास कहते हैं, 'मिस्र की अर्थव्यवस्था में लेबनान की तुलना में आय के अधिक संभावित स्रोत हैं, जैसे स्वेज नहर, पर्यटन उद्योग और विभिन्न निर्यात उद्योग. इसके अतिरिक्त मिस्र में एक स्थिर नेतृत्व है जबकि लेबनान में लोग फिलहाल अपना नया राष्ट्रपति भी चुन नहीं पा रहे हैं.'
मिस्र इतना बड़ा कि नहीं हो सकता इसका पतन
मध्य-पूर्व की सबसे अधिक आबादी वाले देश के बारे में कई विश्लेषक कहते हैं कि यह इतना बड़ा है कि कभी पूरी तरह पतन की कगार पर पहुंच ही नहीं सकता. 10.7 करोड़ की आबादी वाले इस देश के पास मध्य-पूर्व की सबसे शक्तिशाली सेना है.
कलदास कहते हैं, 'जो बात मिस्र को भाग्यशाली बनाती है, वह यह है कि इसको कई देशों से मदद मिलती आ रही है. मिस्र को मदद करने वाले देश बिना यह देखे उसकी मदद कर रहे हैं कि यहां की सरकार किस हद तक आर्थिक कुप्रबंधन कर रही है.'
दिसंबर के मध्य में, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, IMF ने मिस्र को 3 अरब डॉलर के सहायता पैकेज को मंजूरी दी थी. 2016 के बाद से आईएमएफ तीन बार मिस्र को मदद कर चुका है. माना जा रहा है कि IMF की हालिया मदद से मिस्र में निवेश को बढ़ाने में मदद मिलेगी. उसे विदेशों से और अधिक वित्तीय सहायता भी मिलने में आसानी होगी.
IMF की डील के लिए मिस्र की सरकार ने पूरी की हैं कई शर्तें
IMF ने मिस्र को कई शर्तों के साथ कर्ज दिया है जिसमें मिस्र की विदेशी विनिमय दर को और अधिक लचीला बनाना शामिल है. इस शर्त को मानने के कारण ही मिस्र की मुद्रा में डॉलर के मुकाबले भारी गिरावट आई है. IMF की एक और शर्त यह थी कि इस महीने के अंत तक मिस्र के 50 लाख गरीब परिवारों को सीधे कैश ट्रांसफर किया जाए.
IMF ने अपने शर्तों में एक शर्त यह भी रखी थी कि मिस्र अपनी विशाल सेना पर होने वाले भारी खर्च पर लगाम लगाए. मिस्र की सैन्य सरकार ऐसा करने के लिए राजी भी हो गई है.
कलदास कहते हैं कि भले ही मिस्र को IMF से मदद मिल रही है लेकिन देश की रिकवरी जल्दी नहीं होगी. उन्होंने कहा, "मिस्र के लोग जो पहले से ही दिक्कतों का सामना कर रहे हैं, आने वाले सालों में और भी गरीब होने जा रहे हैं.'