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मिस्र का वो राष्ट्रपति जिसका इजरायल से शांति समझौता बन गया था 'डेथ वारंट'

मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात को एक जमाने में अरब वर्ल्ड का नायक समझा जाता था. इजरायल के साथ सादात का ऐतिहासिक शांति समझौता ही उनकी मौत का कारण बना. मिस्र के इस्लामिक जेहाद संगठन को सादात का इजरायल समझौता रास नहीं आया.  खुद राष्ट्रपति सादात और उनकी पत्नी जेना जानते थे कि इजरायल के साथ शांति समझौता एक खतरनाक कदम है.

मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति अनवर सादात (Photo: AP) मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति अनवर सादात (Photo: AP)
Ritu Tomar
  • नई दिल्ली,
  • 10 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 8:36 PM IST

आज से 43 साल पहले छह अक्टूबर 1981 को मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात (Anwar Sadat) की राजधानी काहिरा में हत्या कर दी गई. उन पर ताबड़तोड़ 34 गोलियां दागी गई थीं. किसी अरब देश के वह ऐसे पहले राष्ट्रपति थे, जो इजरायल के साथ शांति समझौता करवाने में सफल रहे थे. इस शांति पहल के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार तक से नवाजा गया. लेकिन यही उपलब्धि उनकी मौत का कारण बनी. इजरायल के साथ शांति समझौते को एक तरह से राष्ट्रपति सादात के डेथ वारंट के तौर पर देखा गया. उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने यह समझौता कर खुद ही अपने डेथ वारंट पर साइन कर दिए थे.

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सादात की हत्या की प्लानिंग छह अक्टूबर की परेड के ईद-गिर्द रची गई थी. दरअसल मिस्र में हर साल छह अक्टूबर को विजय दिवस का जश्न मनाया जाता है. इस दिन मिस्र दुनियाभर के सामने अपना शक्ति प्रदर्शन करता है. टैंक, तोप, मिसाइलें और कई तरह के हथियारों की परेड निकाली जाती है. हजारों लोग इस परेड को देखने इकट्ठा होते हैं. राष्ट्रपति सहित देश के तमाम मंत्री और उच्च अधिकारियों सहित विदेशी मेहमान इस परेड के साक्षी बनते हैं. लेकिन कड़ी सुरक्षा वाली इसी परेड को राष्ट्रपति सादात की हत्या का जरिया बनाया गया. 

छह अक्टूबर 1981 का 'वो' दिन

हर साल की तरह राष्ट्रपति सादात इस परेड के लिए तैयार हुए. उन्होंने इस खास दिन के लिए लंदन से एक कमीज मंगाई थी, जिसे उन्होंने इस खास मौके पर पहना. सुरक्षा कारणों से राष्ट्रपति कपड़ो के बीच बुलेटप्रूफ जैकेट पहनते थे. लेकिन उन्होंने यह सोचकर वह जैकेट नहीं पहनी कि वह पिछली बार की तरह कहीं मोटे दिखाई ना दे. उनकी पत्नी जेना उन्हें लगातार कहती रही कि वह जैकेट पहने ले लेकिन राष्ट्रपति सादात ने एक ना सुनी.

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सादात की हत्या के लिए छह अक्टूबर का दिन चुना गया क्योंकि इस दिन सैन्य परेड होने वाली थी. इस परेड में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया. इस दौरान मिस्र ने अपना शक्ति प्रदर्शन किया. सेना की टुकड़ियों जिन हथियारों के साथ परेड में हिस्सा ले रही थे, वे अनलोडेड थे. लेकिन हत्यारे एके-47 राइफल्स के साथ इस परेड में घुसपैठ की. जैसे ही परेड राष्ट्रपति सादात के सामने आई,हमलावरों ने सादत पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दी.

राष्ट्रपति सादात पर हमले की अगुवाई कर रहे थे मिस्र की सेना के लेफ्टिनेंट खालेद इस्लामबोली. खालेद का ट्रक जैसे ही उस मंच के पास पहुंचा, जहां राष्ट्रपति परेड की सलामी ले रहे थे. वह कूदकर सीधे मंच की तरह भाग. वह ग्रेनेड फेंकते हुए आगे बढ़ रहा था. जब तक राष्ट्रपति के अंगरक्षक कुछ समझते, बहुत देर हो चुकी थी. सादात पर ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार होने लगी. वह वहीं ढेर हो गए. 

आखिर क्यों मारे गए राष्ट्रपति सादात?

राष्ट्रपति सादात को एक जमाने में अरब वर्ल्ड का नायक समझा जाता था. इजरायल के साथ सादात का ऐतिहासिक शांति समझौता ही उनकी मौत का कारण बना. मिस्र के इस्लामिक जेहाद संगठन को सादात का इजरायल समझौता और अमेरिका से बढ़ती नजदीकी रास नहीं आई. 

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खुद राष्ट्रपति सादात और उनकी पत्नी जेना दोनों जानते थे कि इजरायल के साथ शांति समझौते का यह फैसला उनके लिए खतरनाक कदम है.

राष्ट्रपति सादात एक करिश्माई नेता थे, हमेशा जुनून से लबरेज. उन्होंने लगभग 25 सालों से इजरायल के साथ जारी जंग को खत्म करने के लिए शांति का रास्ता अख्तियार किया. वह इजरायल के साथ शांति की मेज पर क्या बैठे, अरब की दुनिया में खलबली मच गई. उन्हें खुद अपने देश के भीतर इसकी आलोचना सहनी पड़ी. 

मिस्र में सादात के क्रांतिकारी बदलाव हमेशा विवादों में रहते थे. अब्दुल अल जमोर जैसे मिस्र के इस्लामिक कट्टरपंथियों के लगता था कि इजरायल के साथ मिस्र का शांति समझौता प्रमाण है कि अब साादत को किसी भी कीमत पर पद पर रहने का अधिकार नहीं है. 

जब यरुशलम पहुंचे थे राष्ट्रपति सादात?

राष्ट्रपति सादात को एक उदारवादी नेता माना जाता था. उन्होंने उस समय पूरी दुनिया को चौंका दिया था, जब वह एकाएक यरुशलम पहुंचे थे. इतना ही नहीं वह इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री के साथ इजरायली संसद पहुंचे और वहां से दुनिया को संबोधित किया. उस समय में ऐसा करने की कुव्वत सादात में ही थी. 

इजरायल-मिस्र जंग

आज से ठीक 50 साल पहले 1973 में इजरायल, मिस्र और सीरिया के बीच एक जंग का आगाज हुआ था. इजरायल में इस जंग को 'योम किप्पुर वॉर' और अरब देशों में 'अक्टूबर वॉर' के नाम से जाना जाता है. लेकिन इस युद्ध ने अरब जगत का चेहरा बदल दिया. यह युद्ध शुरू तो 1973 में हुआ था लेकिन इसकी नींव छह साल पहले 1967 में ही पड़ गई थी.

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1967 में इजरायल ने मिस्र, जॉर्डन और सीरिया पर ताबड़तोड़ हमले करने शुरू कर दिए थे. छह दिनों के भीतर इजरायल की सेना ने तीनों अरब देशों को जबरदस्त झटका दिया और मिस्र के सिनाई डेजर्ट और सीरिया के गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया. इस झटके से बौखलाए मिस्र और सीरिया ने अपने क्षेत्रों पर वापस कब्जा करने के उद्देश्य से हमले लिए लेकिन उनकी मुंह की खानी पड़ी. 

उस समय मिस्र और सीरिया के राष्ट्रपतियों अनवार सादात और हाफेज अल असद के बीच एक सीक्रेट एग्रीमेंट हुआ था, जिसका उद्देश्य एक कमांड के भीतर दोनों देशों की सेनाओं को एकजुट करना था. लेकिन मिस्र को जब यह अहसास हुआ कि वह इजरायल से नहीं जीत पाएगा तो उन्होंने शांति का रास्ता चुना.

क्या है इजरायल-मिस्र समझौता?

अमेरिकी राष्ट्रपति भवन में मिस्र के राष्ट्रपति अनवर अल सादात और इजरायल के प्रधानमंत्री मेनाचिम बेगिन के बीच ऐतिहासिक शांति समझौता हुआ था. इस समझौते के साथ ही दोनों देशों के बीच तीन दशक से चला आ रहा संघर्ष खत्म हो गया. साथ ही दोनों देशों के बीच राजनयिक और व्यावसायिक संबंधों की स्थापना हुई.

इस शांति समझौते के लगभग दो साल के भीतर ही सादात इजरायल के दौरे पर गए और उन्होंने इजरायली संसंद को संबोधित भी किया. लेकिन इससे अरब जगत में खलबली मच गई. देश के भीतर ही सहयोगी दलों से आलोचना झेलने के बावजूद सादात इजरायल के साथ हुए शांति समझौते पर टिके रहे. इसके बाद सितंबर 1978 में दोनों नेताओं की एक बार फिर अमेरिका में मुलाकात हुई. सादात और बेगिन के शांति समझौते को लेकर दोनों को 1978 में संयुक्त रूप से शांति का नोबेल पुरस्कार मिला. 

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सादात ने अमेरिका के साथ आर्थिक और राजनीतिक संबंधों को मजबूत किया. उन्हें इजरायल के प्रधानमंत्री मेनाचिम बेगिन के साथ शांति समझौते के लिए 1978 का नोबेल पुरस्कार मिला. 

इजरायल फिर विवादों में?

जिस इजरायल के साथ राष्ट्रपति सादात शांति समझौता कर अरब मुल्कों के आंखों की किरकिरी बन गए थे. वह इजरायल एक बार फिर विवादों में है. इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष ने एक बार फिर पुराने विवाद को जीवंत कर दिया है और हर बार की तरह यरुशलम की अल-अक्सा मस्जिद विवाद की धुरी बनी हुई है. 

बीते हफ्ते अल-अक्सा मस्जिद में इजरायली सेना की कार्रवाई से अरब देश भड़के हुए हैं. अल-अक्सा मस्जिद का मुस्लिम, ईसाई और यहूदियों तीनों के लिए महत्व है और यही इस विवाद की मूल वजह है.

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