
चार साल से भी कम समय में 5 आम चुनाव देख चुके इजराइल में वोटों की गिनती जारी है. अब तक 87.6 प्रतिशत मतपत्रों की गिनती हो चुकी है. इसके साथ ही पीएम मोदी के दोस्त और इजराइल के पूर्व प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के दोबारा सत्ता में लौटने की संभावना सबसे ज्यादा जताई जा रही है.
दरअसल, इजराइल की संसद में 120 सीटें हैं. नेतन्याहू की लिकुड पार्टी और उसके सहयोगियों के इनमें से 65 सीटें जीतने का अनुमान है. बता दें कि इसराइल की राजनीति पूरी तरह से गठबंधन पर आधारित है. यहां कोई भी एक पार्टी संसद में कभी बहुमत हासिल नहीं कर पाती है. इसलिए सरकार बनाने के लिए दूसरे दलों की मदद लेना ही पड़ता है.
नतीजे पूरे होने से पहले ही नेतन्याहू ने लिकुड पार्टी के चुनाव मुख्यालय में अपने समर्थकों को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि हम एक बहुत बड़ी जीत के कगार पर हैं. इजराइल में 2019 के बाद से ही राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है. यहां सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे नेतन्याहू को रिश्वेतखोरी और धोखाधड़ी के आरोप लगने के बाद अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. इस चुनाव में नेतन्याहू के मुख्य प्रतिद्वंद्वी यैर लैपिड थे. इन्होंने ही नेतन्याहू को सत्ता से हटाने के लिए पूरी बिसात बिछाई थी.
क्या कहते हैं चुनावी सर्वे?
वोटिंग से पहले कुछ ओपिनियन पोल भी किए गए थे, जिनके नतीजे बताते हैं कि नेतन्याहू और लैपिड के बीच में कड़ी टक्कर रहने वाली है, लेकिन लिकुड पार्टी दूसरे सहयोगी दलों के साथ बहुमत साबित करने में कामयाब हो सकती है. न्यूज आउटलेट Israel Hayom के फाइनल सर्वे के मुताबिक नेतन्याहू की पार्टी इस चुनाव में 30 सीटें जीत सकती है. लेकिन उनका दक्षिणपंथी और धार्मिक सहयोगियों का जो गुट है, उसके खाते भी अच्छी सीटें आती दिख रही हैं. सहयोगी दलों के साथ लिकुड पार्टी को 61 सीटें मिलती दिख रही हैं. ऐसे में कुल आंकड़ा बहुमत साबित करने के लिए काफी रह सकता है. वहीं यैर लैपिड की Yesh Atid party को इस सर्वे में 25 सीटें दी जा रही हैं. वहीं उनके नेतन्याहू विरोधी गुट को भी इसमें शामिल कर लिया जाए तो उनका आंकड़ा 59 पहुंच जाता है, यानी कि बहुमत दो सीटें कम.
इजरायल में कैसे होता है चुनाव?
120 सीटों वाले इजरायल चुनाव में जिस भी पार्टी के पक्ष में वोटर टर्नआउट ज्यादा रहता है, उसकी जीतने की उम्मीद ज्यादा बन जाती है. असल में इजरायल में जनता कभी भी किसी उम्मीदवार के लिए वोट नहीं करती है, उनकी तरफ से पार्टी को वोट दिया जाता है. अगर संसद में किसी को भी सीट चाहिए होती है तो नेशनल वोट का कम से कम 3.25% चाहिए ही होता है. यानी कि इजरायल में प्रोपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन वाली चुनावी व्यवस्था चलती है, जहां पर जिस पार्टी को जितना वोट मिलेगा, उसी के हिसाब से उसे सीटें भी मिलेंगी.
सरकार बनाने के करीब नेतन्याहू
वर्तमान में कहा जा रहा है कि नेतन्याहू और उनकी चार सहयोगी पार्टियां आराम से 3.25% वोट प्रतिशत हासिल कर लेंगी. इस स्थिति में नेतन्याहू सरकार बनाने के बेहद करीब रहेंगे. वहीं बात अगर लैपिड की करें तो उनके समर्थन करने वाले सभी 3.25% वोट वाली रेखा को पार कर पाएंगे, ऐसा मुश्किल लगता है, और अगर कोई भी दल ऐसा करने में फेल हो जाता है, उस स्थिति में नेतन्याहू की राह और ज्यादा आसान हो जाएगी.
इजरायल में बनी हुई थी अस्थिरता
इजरायल में लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई थी. इसकी शुरुआत साल 2018 में हो गई थी जब बहुमत से एक सीट कम होने की वजह से मध्यावधि चुनाव करवाया गया था. उस चुनाव में नेतन्याहू को तो बहुमत नहीं मिला, लेकिन वे दूसरे दूलों के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश करते रहे. जब वो गठबंधन नहीं बन पाया, तब नेतन्याहू ने बड़ा फैसला लेते हुए फिर चुनाव करवाने का ऐलान कर दिया. इजरायली सेना के पूर्व प्रमुख बेनी गैंट्स को सरकार बनाने का मौका दिया जा सकता था, लेकिन उसकी जगह फिर आम चुनाव का ऐलान कर दिया गया.
बार-बार होते रहे चुनाव
17 सितंबर 2019 को इजरायल में फिर चुनाव हुए, टक्कर बराबर की रही और हमेशा की तरह किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला. तीसरी बार चुनाव का ऐलान कर दिया गया. अब आखिरी बार 23 मार्च, 2021 को इजरायल में चुनाव हुए. मुकाबला बराबर का रहा, लेकिन अंत में सरकार बनाने में यैर लैपिड सफल हो गए. नेतन्याहू के खिलाफ वाले दलों का गुट साथ आ गया और सरकार बनाई गई. लेकिन गठबंधन पूरे एक साल भी नहीं चल सका और फिर देश को चुनाव में झोंक दिया गया.