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एसिड भरे कंडोम और चश्मे के डिब्बे से बम धमाके... जब मिस्र में फेल हुए इजरायली जासूस

इजरायल की खुफिया एजेंसियां अपने बेहतरीन काम और गुप्त अभियानों के लिए मशहूर हैं, लेकिन 1954 में मिस्र में "लैवोन अफेयर" विफलता उनके लिए एक काला अध्याय बन गया है. घटना उनकी रणनीतिक गलतियों को उजागर करती है और बताती है कि कोई महान एजेंसी भी कभी-कभी गलतियां कर सकती हैं.

जब मिस्र में फेल हुए इजरायली जासूस जब मिस्र में फेल हुए इजरायली जासूस
अनन्या भट्टाचार्य
  • नई दिल्ली,
  • 18 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 9:05 PM IST

लेबनान में पेजर विस्फोट की घटना के बाद इजरायली खुफिया एजेंसियां एक बार फिर चर्चा में है. दावे किए जा रहे हैं कि इस तरह के ऑपरेशंस को इजरायली एजेंसियों ने ही अंजाम दिया होगा. इस लेख में हम इजराइल की खुफिया एजेंसियों, खासतौर से मोसाद, अमान और शिन बेट के बेहतरीन रिकॉर्ड और बड़े ब्लंडर की चर्चा करेंगे.

इजरायली खुफियां एजेंसियों अपने ऑपरेशंस में सफलता भी पाई है तो कई बड़े ब्लंडर भी किए हैं. 1954 का मिस्र संकट, जिसे "लैवोन अफेयर" के नाम से जाना जाता है, इजरायल की सबसे बड़ी खुफिया असफलता थी, जो इन एजेंसियों के लिए एक काला अध्याय बन गई.

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लैवोन अफेयर

इजरायल की खुफिया एजेंसियां दुनिया भर में अपने बेहतरीन ऑपरेशंस के लिए मशहूर हैं. चाहे वह दुश्मनों के खिलाफ खुफिया मिशन हों या अंतर्राष्ट्रीय जासूसी नेटवर्क का समर्थन और इस्तेमाल, ये एजेंसियां हमेशा हीरो के रूप में उभरी हैं, लेकिन हर महाशक्ति का एक कमजोर पक्ष भी होता है, और इजरायल भी इससे अछूता नहीं है.

साल 1954 में डेविड बेन-गुरियन ने अपना पीएम पद छोड़ दिया था और उनके बाद मोशे शारेत ने सरकार की कमान संभाली. शारेत के लिए यह समय काफी मुश्किलों भरा रहा था. वह रक्षा मंत्री पिन्हास लैवोन पर अपना अधिकार जमा नहीं पा रहे थे, जो कि अपने अभियानों में माहिर थे, लेकिन सैन्य पेचीदगियों में उनसे चूक हो गई.

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इस दौरान, रक्षा मंत्रालय में चीफ ऑफ स्टाफ मोशे दयान और निदेशक शिमोन पेरेस दो महत्वाकांक्षी युवक थे जिन्होंने बेन-गुरियन की सलाह पर ज्यादा ध्यान दिया. यह वो दौर था जब खुफिया एजेंसी अमान का सरकार में अपना दबदबा था, और लेवौन के सत्ता में आने के बाद मोसाद को साइडलाइन कर दिया गया था.

हालांकि, मोसाद अब भी एक ऐसा पावरफुल संगठन था, जिसकी सभी अहम अभियानों में मौजूदगी जरूरी थी, लेकिन लेवौन ने इससे किनारे करना पसंद किया. 

मिस्र में मची थी उथल-पुथल

पड़ोसी मिस्र अपनी उथल-पुथल से गुजर रहा था. किंग फारूक को गद्दी से उतार दिया गया और काहिरा में नया नेता गमाल अब्देल नासिर ने सत्ता संभाली. नासिर की प्राथमिकता स्वेज नहर पर नियंत्रण और ब्रिटिश सैन्य मौजूदगी को खत्म करना था. 

इस गतिविधि से इजरायल चिंतित हो गया, क्योंकि ब्रिटेन को यहां से हटाने का सीधा मतलब ये था कि सिनाई पर मिस्र का आक्रमण करना आसान हो सकता था. अमान को ब्रिटिश द्वारा स्वेज बेस को खाली करने की योजना का पता चला गया. रक्षा गलियारों में लगातार आवाजें गूंज रही थीं, "कुछ किया जाना चाहिए."

बाद में एक खुफिया ऑपरेशन प्लान किया गया, जिसे 'ऑपरेशन सुजाना' नाम दिया गया. इजरायल ने मिस्र में एक आतंकवादी नेटवर्क स्थापित करने की योजना बनाई, जो अरब होने का दावा करता था. इसका मकसद अमेरिका और ब्रिटिश संस्थानों पर हमला करना मकसद था, जिसका आरोप मिस्र पर मढ़ा जाता था. प्लान ये था कि इस तरह ब्रिटिश और अमेरिकी नासिर की सरकार पर शक करेंगे और कार्रवाई करेंगे. 

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एसिड कंडोम और चश्मे के डिब्बे के बम

ऑपरेशन सुजाना के एजेंट्स ने अपने भारी-भरकम बमों की जगह एसिड से भरे कंडोम और विस्फोटक से भरे चश्मे के डिब्बे का इस्तेमाल किया. जुलाई 1954 में, अलेक्जेंड्रिया के एक पोस्ट ऑफिस में छोटे विस्फोट किए गए. इनके अलावा कुछ अन्य स्थानों पर भी छोटे अटैक किए गए.

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ऑपरेशन के ही संबंध में अलेक्जेंड्रिया में 19 वर्षीय फिलिप नाथनसन सिनेमा की कतार में खड़ा था, जब उसके पॉकेट में रखा बम फट गया. कुछ ही घंटों में मिस्र की पुलिस ने इजरायली नेटवर्क को धर दबोचा. मिस्र प्रशासन ने मोसाद के एक सीनियर एजेंट मैक्स बेनेट को भी पकड़ लिया था, जो कि पड़ोस के देश में एक बिजनेसमैन था.

मिस्र को शक होने के बाद अधिकारियों ने एजेंट की तलाश शुरू की थी. एक दिन जब उसके रेडियो में खराबी आई तो मिस्र ने उसे धर दबोचा. यह वो दौर था जब इजरायल को मिस्र में अपने खुफिया एजेंट की सख्त जरूरत थी. बाद में इजरायली एजेंट्स को काहिरा में फांसी पर लटका दिया गया और ऑपरेशन की अगुवाई कर रहे मैक्स बेनेट ने जेल में आत्महत्या कर ली थी.

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