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अंदरूनी कलह, खालिस्तानियों से हमदर्दी और अमेरिका से तनातनी... कहानी Trudeaus की, जिनका अंजाम एक जैसा रहा

शुरू से शुरुआत करें तो राजनीति जस्टिन ट्रूडो की नियति थी क्योंकि उनका जन्म पीएम हाउस में हुआ था. 1971 में जब दुनिया क्रिसमस का जश्न मना रही थी. प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो के घर 24 ससेक्स ड्राइव (कनाडा पीएम का आधिकारिक आवास) पर जस्टिन का जन्म हुआ. जस्टिन को गुड लुक्स, सुडौल शरीर और आकर्षक कद-काठी अपने पिता से ही विरासत में मिली है.

जस्टिन ट्रूडो और उनके पिता पियरे ट्रूडो जस्टिन ट्रूडो और उनके पिता पियरे ट्रूडो
Ritu Tomar
  • नई दिल्ली,
  • 08 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 8:26 AM IST

मैं दबाव नहीं लेता... मैंने दबाव लेना सीखा ही नहीं... 18 साल के जस्टिन ट्रूडो ने कॉलेज कैंपस में जब ये शब्द कहे थे तब वह आत्मविश्वास से सराबोर थे. कॉन्फिडेंट और प्रिविलेज ट्रूडो को उस समय जरा भी इल्म नहीं होगा कि भविष्य में उन्हें इस दबाव की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. आकर्षक और करिश्माई व्यक्तित्व के साथ-साथ सिक्स पैक एब्स और फेमिनिस्ट छवि वाले ट्रूडो 2015 में जिस लोकप्रियता के साथ प्रधानमंत्री बने थे, उन्होंने उतनी ही ज्यादा आलोचना के बीच पद भी छोड़ने का ऐलान किया.

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यह जानना हैरानी भरा है कि जस्टिन का राजनीतिक हश्र ठीक वैसा ही हुआ, जैसा उनके पिता पियरे ट्रूडो का था. ये संयोग ही है कि पिता और बेटे का राजनीतिक ग्राफ समानांतर तरीके से हिचकोले खाता रहा, जिन्हें दुनियाभर में प्रसिद्धी मिली लेकिन जमकर फजीहत भी हुई. 

शुरू से शुरुआत करें तो राजनीति जस्टिन ट्रूडो की नियति थी क्योंकि उनका जन्म पीएम हाउस में हुआ था. 1971 में जब दुनिया क्रिसमस का जश्न मना रही थी. प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो के घर 24 ससेक्स ड्राइव (कनाडा पीएम का आधिकारिक आवास) पर जस्टिन का जन्म हुआ. जस्टिन को गुड लुक्स, सुडौल शरीर और आकर्षक कद-काठी अपने पिता से ही विरासत में मिली है.

एक ऐसे मुल्क में जहां राजनीतिक वंशवाद बेमुश्किल ही देखने को मिलता है. जस्टिन ट्रूडो पहले ऐसे कनाडाई थे, जो अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए राजनीति में इस मुकाम पर पहुंचे. पिता और बेटे का जीवन तमाम तरह की समानताओं से पटा पड़ा है. समानता इतनी कि दोनों ने जिस तरह की प्रसिद्धि अपने राजनीतिक जीवन में देखी, उनका राजनीतिक ग्राफ भी उतनी ही तेजी से नीचे लुढ़का. 

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जस्टिन के पिता पियरे ट्रूडो का नाम कनाडा के कद्दावर प्रधानमंत्रियों में शुमार है. उनकी गिनती देश के बुद्धिजीवियों, भाषाओं को लेकर उनके प्यार और सिविल राइट्स पैरोकार के तौर पर होती है. वह जुनूनी थे और उनमें लीक से हटकर काम करने की ललक थी. लेकिन बोल्ड फैसले लेने की उनका अंदाज उन पर भारी भी पड़ा. वह 1965 में पहली बार सांसद चुने गए और फिर तीन साल के भीतर ही प्रधानमंत्री के पद तक पहुंच गए. 1968 से 1979 तक और फिर 1980 से 1984 तक 15 साल तक कनाडा की बागडोर उनके हाथों में थी. और जब सत्ता उनके पास नहीं थी तो वह संसद में विपक्ष के नेता के तौर पर बैठकर सरकार की बखिया उधेड़ते थे.

पियरे ट्रूडो की लोकप्रियता इस कदर थी कि उनके लिए Trudeaumania टर्म का इस्तेमाल होता था यानी देशभर में उनकी पॉपुलैरिटी छप्पड़फाड़ थी. रॉबर्ट राइट अपनी किताब Trudeaumania: The rise to power of Pierre Elliott Trudeau में लिखते हैं कि पियरे का अंदाज उन्हें बाकियों से अलग बनाता था. वह कनाडा के लोगों से डंके की चोट पर कहते थे कि अगर आप मुझसे सहमत नहीं है तो आप किसी और को वोट दे सकते हैं. वह बेबाक थे. यही वजह थी कि उन्हें कनाडा का JFK (जॉन. एफ कैनेडी) भी कहा जाता था.

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क्या सच में खालिस्तानियों का हमदर्द है ट्रूडो परिवार?

जस्टिन ट्रूडो ने पिछले साल कनाडा की संसद में खड़े होकर खालिस्तानी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप भारत के एक एजेंट पर लगाया था. उनके इस आरोप पर दुनियाभर में हंगामा मचा. सवाल खड़े किए गए कि खालिस्तानियों से ट्रूडो की हमदर्दी की आखिर वजह क्या है? आरोप भी लगे कि खालिस्तानियों से हमदर्दी की इन जड़ों को उनके पिता पियरे सींच चुके थे.

1980 के शुरुआती दशक में पियरे ट्रूडो को भी कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों के प्रति नरम रुख रखने के लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. 1982 में पियरे ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी तलविंदर सिंह परमार के भारत प्रत्यर्पण करने के इंदिरा गांधी के अनुरोध को ठुकरा दिया था. तलविंदर भारत में वॉन्टेड आतंकी था. 

कनाडा के वरिष्ठ पत्रकार और खालिस्तानी आंदोलन पर लंबे समय तक रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार टेरी मिलवेस्की ने अपनी किताब में लिखा है कि पिछले चालीस साल में कनाडा ने खालिस्तानियों को कानूनी और राजनीतिक रूप से माकूल मौहाल दिया है.

खालिस्तानियों को लेकर कनाडा का नरम रुख हमेशा से भारत के नेताओं के निशाने पर रहा है. 1982 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कनाडा की सरकार से तलविंदर सिंह परमार के भारत प्रत्यर्पण करने का अनुरोध किया था, लेकिन कनाडा के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. इसका नतीजा ये हुआ कि उसी तलविंदर सिंह ने 1985 में एअर इंडिया के कनिष्क विमान को बम से उड़ा दिया, जिसमें 329 लोगों की मौत हुई थी और मरने वालों में एक बड़ी संख्या कनाडा के नागरिकों की थी. इस मामले में पियरे की जमकर फजीहत भी हुई थी.

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खालिस्तानियों के लिए सॉफ्ट तो क्यूबेक के लिए हार्ड क्यों थे पियरे?

मौजूदा समय में जिस तरह खालिस्तानी भारत से अलग होकर नया राष्ट्र बनाने की मांग कर रहे हैं. ठीक इसी तरह 1970 के दशक में क्यूबेक में एक मजबूत राष्ट्रवादी आंदोलन का विस्तार हो रहा था, जो क्यूबेक की आजादी की मांग कर रहा था लेकिन पियरे इसके सख्त खिलाफ थे. इसे लेकर 1980 में पहली बार जनमत संग्रह हुआ. पियरे ट्रूडो ने क्यूबेक जनमत संग्रह को चारों खाने चित्त करने में अहम भूमिका निभाई, जिस कारण  59 फीसदी लोगों ने कनाडा का हिस्सा बने रहने के पक्ष में वोट किया. 

लेकिन क्यूबेक की अलग राष्ट्र की मांग से पियरे को दिक्कत क्या थी? इसकी असल वजह थी कि पियरे का जन्म और उनकी परवरिश क्यूबेक में ही हुई थी, जिस वजह से वह हर्गिज नहीं चाहते थे कि यह कनाडा से अलग होकर अलग राष्ट्र बने. ट्रूडो का मानना था कि विभाजित कनाडा देश के लिए मुसीबतें लेकर आएगा.

क्यूबेक दरअसल कनाडा का एक प्रांत है, जहां के लोग लंबे समय से कनाडा से अलग एक राष्ट्र बनाने की मांग कर रहे हैं. कनाडा से आजादी की मांग को लेकर क्यूबेक के लोग अब तक दो बार जनमत संग्रह कर चुके हैं. लेकिन इसका कोई हल नहीं निकला. यहां पहली बार 1980 में जबकि दूसरी बार 1995 में जनमत संग्रह हो चुका है.

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पियरे के समय में कैसे थे अमेरिका के साथ उनके रिश्ते?

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद से ही डोनाल्ड ट्रंप  कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो के लिए सिरदर्द बन गए हैं. कनाडा पर 25 फीसदी टैरिफ टैक्स लगाने की धमकी देने से लेकर कनाडा को अमेरिका का 51वां स्टेट बनाए जाने के ऑफर देने तक वह ट्रूडो के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं. वह लगातार प्रेशर पॉलिटिक्स के जरिए ट्रूडो को घेरे हुए हैं. लेकिन कनाडा और अमेरिकी राष्ट्रप्रमुखों के बीच यह इस तरह की नोकझोक का पहला मामला नहीं है.

इससे पहले जस्टिन के पिता प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो और उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के बीच के रिश्ते भी कुछ इसी तरह के थे. निक्सन ने कई मौकों पर पियरे ट्रूडो को बेवकूफ कहा था और उनके लिए कई बार अपशब्दों का इस्तेमाल करते थे. लेकिन पियरे भी सार्वजनिक तौर पर ये कह चुके थे कि अमेरिका के पड़ोस में रहना कुछ मायनों में हाथी के साथ सोने जैसा है, जो भले ही दोस्ताना हो लेकिन वह कब सिरफिरा हो जाएगा, भरोसा नहीं. 

पियरे ट्रूडो ने भले ही अपने राजनीतिक करिअर में अपार लोकप्रियता हासिल की हो लेकिन समय के साथ-साथ उनकी खुद की पार्टी में उनका विरोध शुरू हो गया. पहले ये विरोध दबी जुबान में शुरू हुआ लेकिन बाद में इतना बढ़ गया कि उन्हें प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने का ऐलान करना पड़ा. दुनिया फतह करने की सोच रखने वाले पियरे का पॉलिटिकल करिअर घरेलू लड़ाई में ही तबाह हो गया. पियरे ट्रूडो की राजनीतिक पारी को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि जस्टिन ट्रूडो का राजनीतिक हश्र भी पिता जैसा ही रहा है. 

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जस्टिन 2013 में जब लिबरल पार्टी के नेता चुने गए थे तो उन्होंने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि मैं राजनीति में इसलिए नहीं आया क्योंकि मेरे पिता एक कद्दावर नेता थे और मेरे लिए उनके नक्शेकदम पर चलना जरूरी था. मैंने यह रास्ता इसलिए चुना क्योंकि मुझे लगा कि मैं पॉलिटिक्स में कुछ बेहतर कर सकता हूं. मुझे यकीन है कि मैं कुछ तो बेहतर जरूर करूंगा. 

जस्टिन इससे पूरी तरह से वाकिफ हैं कि उन्होंने अपने पिता पियरे ट्रूडो की तरह कुछ ऐसे फैसले लिए हैं, जो कई देशों के गले की फांस बने हुए हैं और उनका हर्जाना उन्हें उसी तरह भरना पड़ रहा है, जैसा उनके पिता भर चुके हैं. एक मौके पर उन्होंने कहा था कि कुछ लोग मेरे पिता की वजह से मुझसे प्यार करते हैं, कुछ उनकी वजह से मुझसे नफरत करते हैं. लेकिन मुझे जिंदगी में ये सीखना पड़ा है कि मैं इस वास्तविकता को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं कर पाऊं कि इनमें से कोई भी पक्ष ऐसा नहीं है जो ये तय कर सके कि मैं कौन हूं और क्या हूं...

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