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श्रीलंका को कच्चातिवु द्वीप देकर भारत को क्या मिला? पूर्व डिप्लोमैट ने बताया

श्रीलंका में भारत के राजदूत रहे अशोक कांथा का कहना है कि कोई भी समझौता एकतरफा नहीं होता है. आपको सब कुछ नहीं मिलेगा. समझौते के तहत कुछ देना होता है और कुछ लेना होता है. इस संधि की मदद से श्रीलंका के साथ समुद्री सीमा विवाद के साथ-साथ अन्य विवादों को भी सुलझाया गया.

फाइल फोटो (पीटीआई) फाइल फोटो (पीटीआई)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 04 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 12:13 PM IST

तमिलनाडु के रामेश्वरम से 12 मील दूर स्थित कच्चातिवु द्वीप एक बार फिर चर्चा में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा है कि कांग्रेस ने जानबूझकर कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा है कि नेहरू चाहते थे कि जितनी जल्दी हो सके, इससे छुटकारा मिल जाए. 

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भारत के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री की ओर से कच्चातिवु द्वीप को लेकर दिए गए बयान पर श्रीलंका की सरकार ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. हालांकि, वहां की स्थानीय मीडिया ने प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर की आलोचना की है.

1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार में हुए एक समझौते के तहत कच्चातिवु श्रीलंका को दे दिया गया था. भारत और श्रीलंका के पूर्व डिप्लोमैट्स ने बताया है कि श्रीलंका को कच्चातिवु द्वीप देकर भारत को क्या मिला.

द्विपक्षीय संबंधों को ध्यान में रखते हुए हुआ था समझौताः पूर्व श्रीलंकाई डिप्लोमैट

अंग्रेजी अखबार 'इंडियन एक्सप्रेस' ने अपनी एक रिपोर्ट में श्रीलंका और भारत के पूर्व राजनयिकों के हवाले से लिखा है कि 1970 के दशक में इंदिरा सरकार द्वारा यह समझौता सद्भावना में किया गया था. जिसके तहत दोनों देश ने कुछ पाया और कुछ खोया. श्रीलंका के एक पूर्व डिप्लोमैट का कहना है कि दोनों देशों ने समझौते पर बातचीत करते हुए अपने-अपने रणनीतिक द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं को ध्यान में रखा था. 

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भारत में श्रीलंका के डिप्लोमैट रहे एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा कि यह समझौता उस समय की वास्तविकताओं के आधार पर हुआ एक लेन-देन था.  इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा तय करना था. दोनों देश विवादों को सुलझाते हुए आगे बढ़ना चाहते थे. यह समझौता अच्छी मंशा के साथ किया गया था.

कोई भी समझौता एकतरफा नहीं होताः पूर्व भारतीय राजदूत

श्रीलंका में भारत के राजदूत रहे अशोक कांथा का कहना है कि भारत वाड्ज बैंक (तट) और उसके समृद्ध संसाधनों तक पहुंच पाने में सक्षम था. 1974 के ऐतिहासिक जल सीमा समझौते के तहत भारत ने कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को दिया. इस संधि से श्रीलंका के साथ समुद्री सीमा के साथ-साथ अन्य विवादों को सुलझाने का मार्ग खुला. 1976 का समझौता भी इसी का हिस्सा है जिसके तहत वाड्ज बैंक और उसके समृद्ध संसाधनों पर भारत ने संप्रभुता हासिल की. 

उन्होंने आगे कहा, "इस तरह की वार्ताओं में शामिल कोई भी राजनयिक यह कह सकता है कि कोई भी समझौता एकतरफा नहीं होता है. आपको सब कुछ नहीं मिलेगा. समझौते के तहत कुछ मिलता है तो कुछ खोना भी पड़ता है. लेकिन श्रीलंका के साथ विवादित समुद्री सीमा मुद्दे के समाधान ने दोनों देशों के बीच रिश्तों को और मजबूती प्रदान की. मछली पकड़ने से लेकर हाइड्रोकार्बन संसाधनों और अन्य अधिकारों में स्पष्टता आई. इसलिए 1974 और 1976 में श्रीलंका के साथ हुए समझौते पर भारत सरकार की स्थिति शुरुआत से ही वही रही है. किसी भी सरकार ने उस समझौते पर सवाल उठाने या उस पर फिर से चर्चा करने की कोशिश नहीं की. जिससे हमें ही फायदा हुआ है."

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अशोक कांथा ने आगे कहा कि 1976 में हुए भारत-श्रीलंका समझौते ने वाड्ज बैंक को भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (exclusive economic zone) के रूप में मान्यता दी. जिससे वाड्ज बैंक के संपूर्ण क्षेत्र और उसके संसाधनों पर भारत को संप्रभु अधिकार मिल गया.

वाड्ज बैंक एक संसाधन-संपन्न पठार

तमिलनाडु के कन्याकुमारी के दक्षिण में स्थित वाड्ज बैंक एक संसाधन-संपन्न समुद्री पठार है. 1976 में हुए समझौते के तहत शुरुआत में श्रीलंकाई जहाजों और मछुआरों को वाड्ज बैंक में मछली पकड़ने की अनुमति नहीं थी. लेकिन गुडविल जेस्चर के तहत सरकार ने भारत द्वारा जारी लाइसेंस प्राप्त मछुआरों को भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना से तीन साल की अवधि के लिए क्षेत्र में मछली पकड़ने की अनुमति दी.

विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना के तीन साल बाद श्रीलंकाई जहाजों और मछुआरों ने वाड्ज बैंक में मछली पकड़ना बंद कर दिया. इस समझौते को आम तौर पर भारत के लिए अनुकूल माना जाता है. क्योंकि इससे भारत को जैव विविधता से समृद्ध एक महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र पर संप्रभु अधिकार मिल गया. वाड्ज बैंक को भारत के सबसे समृद्ध मत्स्य संसाधनों में से एक माना जाता है.

एक अन्य पूर्व भारतीय राजनयिक का कहना है कि 1976 में हस्ताक्षरित यह समझौता दोनों देशों द्वारा जमीनी वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए लिया गया एक संप्रभु निर्णय है. जहां तक मछुआरे पकड़े जाने और हिरासत में लिए जाने का मामला है, यह मामला कच्चातिवु द्वीप के पास उतना नहीं होता है, जितना कहीं और होता है. इसलिए दोनों मुद्दों को एक नजरिए से देखना सही नहीं है. 

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