
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री अली अमीन गंडापुर ने पाकिस्तान सेना और सरकार की नीतियों का खुलकर विरोध किया है. सीएम गंडापुर ने कहा है कि वे अब पाकिस्तान आर्मी को खैबर पख्तूनख्वा में किसी भी तरह के मिलिट्री ऑपरेशन की इजाजत नहीं देंगे.
इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ (PTI) के नेता मुख्यमंत्री अली अमीन गंडापुर ने अपने फैसले की वजह भी बताई है. मुख्यमंत्री अली अमीन गंडापुर ने कहा है कि पाकिस्तानी सेना जितने आतंकी मारती है उससे ज्यादा आतंकी अफगानिस्तान से पाकिस्तान घुस आते हैं.
एक निजी टीवी चैनल के साथ इंटरव्यू में गंडापुर ने कहा कि उनकी सरकार खैबर पख्तूनख्वा में आर्मी को किसी भी तरह की मिलिट्री ऑपरेशन चलाने की अनुमति नहीं देगी. क्योंकि जितने आतंकवादी मारे जाते हैं उतने ही अफगानिस्तान से बॉर्डर पारकर खैबर पख्तूनख्वा में घुस जाते हैं.
जितने दहशतगर्द मरते हैं, उससे ज्यादा अफगान से आ जाते हैं
गंडापुर ने कहा कि अनुमान है कि 9,500 से 11,500 आतंकवादी पहले ही उनके इलाकों में घुस चुके हैं, जबकि सीमा पार इससे दोगुने आतंकवादी मौजूद हो सकते हैं. उन्होंने पाकिस्तान सरकार और पाक आर्मी की नीतियों पर सीधा-सीधा सवाल उठाते हुए कहा, "आज पाकिस्तान जिस सुरक्षा समस्या का सामना कर रहा है, उसका समाधान ऑपरेशन नहीं है."
उन्होंने कहा कि अगर जनता उनके साथ खड़ी रहे और उनकी नीयत साफ रहे तो वे स्थिति से निपटने में सक्षम होंगे.
मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि दो दिन पहले हुई राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक चर्चा से ज्यादा तथ्यों का प्रेजेंटेशन था.
सेना और सरकार से इमरान की पार्टी की तल्खी
मुख्यमंत्री गंडापुर का यह बयान पाकिस्तान की संघीय (केंद्र) सरकार और सैन्य नेतृत्व के साथ चल रहे तनाव का भी हिस्सा है. PTI और सेना के बीच संबंध 2022 में इमरान खान की सरकार गिरने के बाद से ही तल्ख हैं.
गंडापुर इस मौके का इस्तेमाल केंद्र की नीतियों और सेना की भूमिका पर सवाल उठाने के लिए कर रहे हैं.
सीएम गंडापुर ने पाकिस्तान सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर आतंकवाद को केवल प्रेजेंटेशन और बयानों के ज़रिए खत्म किया जा सकता तो अब तक ऐसा हो चुका होता. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस मुद्दे को हल करने के लिए बल प्रयोग नहीं, बल्कि बातचीत ही अहम है. सीएम गंडापुर ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के संस्थापक और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई.
गंडापुर ने बताया कि सुरक्षा मुद्दों पर प्रगति के लिए इमरान ख़ान को जेल से रिहा किया जाना चाहिए. खान अगस्त 2023 से कई मामलों में जेल में हैं.
पाकिस्तान के अधिकारियों ने बार बार दावा किया है कि मुल्क में हो रहे हमलों की साजिश अफगानिस्तान की जमीन पर रची जाती है.
हालांकि, तालिबान के नेतृत्व वाली अफगानिस्तान सरकार ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा है कि वह पाकिस्तान की “सुरक्षा विफलता” के लिए ज़िम्मेदार नहीं है.
बता दें कि पाकिस्तान के हिंसा प्रभावित खैबर पख्तूनख्वा के लोग पिछले दो दशकों से आतंकवाद, विद्रोह और सैन्य अभियानों के प्रभाव से जूझ रहे हैं. यहां की जनता के लिए धमाके, फायरिंग, सेना की बर्बरता और विस्थापन आम हो चुका है. PTI और गंडापुर इस मुद्दे को राजनीतिक रूप से भुनाना चाहते हैं, खासकर शहबाज शरीफ सरकार और सेना के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए.
जुलाई 2024 में बन्नू के अमन जिरगा में भी उन्होंने कहा था, "हम अपने देश के लिए खून बहाने से नहीं हटेंगे, लेकिन फैसले अपने करेंगे."
गुड तालिबान-बैड तालिबान का चक्कर
मुख्यमंत्री गंडापुर ने एक अन्य सवाल का जवाब देते हुए कहा कि उनके राज्य में अभी भी “अच्छे तालिबान” मौजूद हैं, जबकि इस महीने की शुरुआत में बन्नू कैंटोनमेंट पर हमला “बुरे तालिबान” द्वारा किया गया था, जिन्हें कभी “अच्छे तालिबान” माना जाता था.
उन्होंने आगे बताया कि हाफिज गुल बहादर और नूर वली महसूद पहले “अच्छे तालिबान” थे, लेकिन अब वे “बुरे तालिबान” बन गए हैं. उन्होंने कहा, “हमें तालिबान के बारे में अपनी नीति की समीक्षा करनी होगी.”
उन्होंने आगे कहा कि “अच्छे तालिबान वे हैं जो सरकार के सामने आत्मसमर्पण करते हैं, इसलिए उन्हें दंडित नहीं किया जाना चाहिए. बल्कि हमें उम्मीद करनी चाहिए कि वे हमारे लिए आतंक के खिलाफ इस युद्ध को जीतेंगे.”
गौरतलब है कि अच्छे और बुरे तालिबान की अवधारणा 2008 में खैबर पख्तूनख्वा में अवामी नेशनल पार्टी (एएनपी) सरकार के कार्यकाल के दौरान विकसित हुई थी.
सूबों के अधिकारों में दखल करती है सेना
गंडापुर और उनकी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ सूबों की स्वायत्तता पर जोर देते हैं. उनका तर्क है कि खैबर पख्तूनख्वा की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी प्रांतीय सरकार और पुलिस की होनी चाहिए, न कि सेना की. वे सेना के हस्तक्षेप को प्रांत के अधिकारों में दखल मानते हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि जब वे मुख्यमंत्री बने, तो पुलिस ने शिकायत की थी कि सेना की मौजूदगी उनकी कार्रवाई में बाधा डालती है.
गंडापुर का मानना है कि बड़े पैमाने के सैन्य ऑपरेशन आतंकवाद का स्थायी समाधान नहीं हैं. वे इसके बजाय इंटेलिजेंस-बेस्ड ऑपरेशनों और स्थानीय पुलिस को मजबूत करने की वकालत करते हैं. उनका कहना है कि टारगेटेड ऑपरेशन पहले से चल रहे हैं और इन्हें जारी रखा जाएगा, लेकिन पूर्ण सैन्य अभियान की जरूरत नहीं है.