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जब मालदीव को संकट से उबारने के लिए भारतीय जवानों ने चलाया था ऑपरेशन कैक्टस

आपको बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं है जब मालदीव इस प्रकार के संकेट से जूझ रहा है. इससे पहले भी 1988 में मालदीव को विद्रोह का सामना करना पड़ा था, जब भारत ने अपनी सेना भेज मालदीव की मदद की थी.

मालदीव में जारी है प्रदर्शन मालदीव में जारी है प्रदर्शन
मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 06 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 11:33 AM IST

भारत का पड़ोसी देश मालदीव इन दिनों राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन ने सोमवार को देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी है. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस अब्दुल्ला सईद, जज अली हमीद और देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल गयूम को गिरफ्तार कर लिया गया है.

आपको बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं है जब मालदीव इस प्रकार के संकेट से जूझ रहा है. इससे पहले भी 1988 में मालदीव को विद्रोह का सामना करना पड़ा था, जब भारत ने अपनी सेना भेज मालदीव की मदद की थी.

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क्या था ऑपरेशन कैक्टस?

साल 1988 में इस ऑपरेशन को ऑपरेशन कैक्टस का नाम दिया गया था. उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति मौमूल अब्दुल गयूम के खिलाफ श्रीलंकाई विद्रोहियों की मदद से विद्रोह की कोशिश गई थी. तब गयूम ने पाकिस्तान, श्रीलंका, अमेरिका जैसे देशों से मदद की गुहार लगाई थी.

इन सभी देशों से पहले ही भारत ने मालदीव की मदद की थी. तत्कालीन राष्ट्रपति राजीव गांधी के आदेश पर ऑपरेशन कैक्टस शुरू किया गया था. इस ऑपरेशन में भारतीय सेना के कई जवानों ने मालदीव की धरती पर पहुंच कर विद्रोहियों को ढेर किया था.

गयूम के खिलाफ इस विद्रोह की अगुवाई नाराज़ अप्रवासी अब्दुल्ला लुतूफी ने की थी. तब PLOTE के 80 लड़ाकों ने हिंद महासागर के जरिए मालदीव में घुसकर बमबारी की थी.

15 दिन तक रहेगा आपातकाल

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मौजूदा हालातों की जानकारी देते हुए मालदीव के आंतरिक मामलों के मंत्री ने कहा है कि यह आपातकाल 15 दिनों के लिए होगा. इस बीच भारत सरकार ने अपने नागरिकों को सलाह दी है कि फिलहाल मालदीव यात्रा से बचें.

घर से ही गिरफ्तार हुए गयूम

मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम को उनके अलग हो चुके सौतेले भाई और राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन द्वारा देश में आपातकाल लगाए जाने के थोड़ी देर बाद ही गिरफ्तार कर लिया गया.  गयूम की पुत्री युम्ना मौमून ने ट्विटर पर बताया कि 80 वर्षीय पूर्व राष्ट्रपति को राजधानी माले स्थित उनके घर से ले जाया गया. गयूम 2008 में देश का पहला लोकतांत्रिक चुनाव होने से पहले 30 साल तक देश के राष्ट्रपति रहे. गयूम विपक्ष के साथ थे और अपने सौतेले भाई को अपदस्थ करने के लिये अभियान चला रहे थे.

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