
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू पांच दिवसीय यात्रा के सिलसिले में चीन में हैं जहां गुरुवार को उनकी मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई. चीन समर्थक माने जाने वाले मुइज्जू 'इंडिया आउट' की नीति लेकर सत्ता में आए और परंपरा से उलट उन्होंने पद ग्रहण करने के बाद भारत आने के बजाए चीन जाना चुना. मुइज्जू की चीन यात्रा की चर्चा भारत में खूब हो रही है जिसे लेकर चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने एक प्रोपेगैंडा से भरपूर और कटाक्ष भरी रिपोर्ट छापी है. ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि क्षेत्रीय सहयोग को भारत अपने नुकसान के रूप में देख रहा है जो कि उसके हित में नहीं है.
ग्लोबल टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, 'मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की इस सप्ताह चल रही चीन की राजकीय यात्रा अंतरराष्ट्रीय चर्चा का केंद्र बन गया है, खासकर भारतीय जनता के बीच.'
मुइज्जू ने अपने चीन दौरे में कहा कि उनका इरादा चीन के साथ आर्थिक, व्यापार, पर्यटन, निवेश और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देना है. इस दौरान उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की तारीफ की और कहा कि मालदीव BRI के तहत चीन के साथ अपने सहयोग को बढ़ाना चाहता है. मंगलवार को मुइज्जू ने यह भी कहा कि चीन उनके देश के सबसे करीबी विकास साझेदारों में से एक है.
मुइज्जू की यह यात्रा भारत के साथ राजनीतिक विवाद के बीच हो रही है जिसमें मुइज्जू सरकार ने तीन उप मंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. पीएम मोदी ने अपने लक्षद्वीप दौरे की कुछ तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया था जिस पर मालदीव की एक मंत्री ने इजरायल से जोड़ते हुए पीएम मोदी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की.
एक नेता ने कहा कि लक्षद्वीप कभी भी मालदीव का मुकाबला नहीं कर सकता क्योंकि भारतीयों के घरों से बदबू आती है. इन टिप्पणियों से भारी विवाद हुआ जिसके बाद मालदीव की सरकार ने खुद को इससे अलग करते हुए टिप्पणी करने वाले नेताओं को निलंबित कर दिया.
मुइज्जू के चीन दौरे की कवरेज पर ग्लोबल टाइम्स की टिप्पणी
इस विवाद के बीच मुइज्जू के चीन दौरे की भारतीय मीडिया में जो कवरेज चल रही है, उस पर टिप्पणी करते हुए ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, 'चीन के साथ मालदीव के राजनयिक और आर्थिक आदान-प्रदान को लेकर इस तरह की झुंझलाहट मालदीव को लेकर भारतीय जनता के बीच छिपे अहंकार को दर्शाती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत हमेशा दक्षिण एशिया के क्षेत्र को खुद से पिछड़ा मानता है. मालदीव और श्रीलंका जैसे देश कमोबेश भारत से राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से प्रभावित भी हैं.'
ग्लोबल टाइम्स आगे लिखता है, 'दूसरे देशों के साथ ऐसा व्यवहार करना मानो वे भारत के अधीन हों, एक विकृत मानसिकता है. दूसरे देशों के साथ मालदीव के सहयोग और कूटनीति में भारत के भू-राजनीतिक हितों को प्राथमिकता देने का कोई कारण नहीं है. यह भारत का आंतरिक मामला नहीं है. एक स्वतंत्र संप्रभु देश के रूप में, मालदीव को अपनी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, अन्य देशों के साथ सहयोग करने का अधिकार है, खासकर उन देशों के साथ जो अधिक आर्थिक विकास के अवसर प्रदान कर सकते हैं, और चीन स्पष्ट रूप से अच्छे विकल्पों में से एक है.'
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि मालदीव और चीन का द्विपक्षीय रिश्ता अर्थव्यवस्था, व्यापार और बुनियादी ढांचे के निर्माण, आपसी सम्मान, आपसी विश्वास और एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने पर आधारित रहा है.
मालदीव का चीन के साथ सहयोग भारत के साथ धोखा नहीं
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि मालदीव की अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित करने, पर्यटन या अन्य उद्योगों को बढ़ावा देने और अपने जीवन स्तर को बढ़ाने की इच्छा किसी के साथ धोखा नहीं है, बल्कि एक तथ्य है जिसका पूरी तरह से सम्मान किया जाना चाहिए. चीन के साथ किसी विशिष्ट तरह का सहयोग नहीं है और इसका भारत के साथ संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.
ग्लोबल टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट के अंत में भारत को सलाह भी दे डाली है, चीनी अखबार लिखा है कि भारत को चीन के साथ क्षेत्रीय देशों के सहयोग के बारे में अधिक खुले विचार रखने चाहिए.