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जल्द छोड़ दोगी नौकरी, पाकिस्तान की पहली हिंदू महिला DSP से ऐसा किसने कहा?

पाकिस्तान की 26 साल की हिंदू महिला मनीषा रुपेता ने डीएसपी का कार्यभार संभाल लिया है. मनीषा ने 2019 में सिंध लोक सेवा आयोग की परीक्षा दी थी जिसमें उन्हें 16वीं रैंक हासिल हुई. पाकिस्तान की पहली महिला हिंदू डीएसपी होने की वजह से वह एक बार फिर से सुर्खियों में हैं.

पाकिस्तान की हिंदू महिला डीएसपी मनीषा रुपेता (Photo: Twitter) पाकिस्तान की हिंदू महिला डीएसपी मनीषा रुपेता (Photo: Twitter)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 28 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 10:24 PM IST
  • मनीषा रुपेता पाकिस्तान की पहली हिंदू महिला डीएसपी
  • सिंध लोक सेवा आयोग में 16वीं रैंक हासिल की

पाकिस्तान के पिछड़े जिले जाकूबाबाद की एक हिंदू महिला मनीषा रुपेता ने पिछले महीने डीएसपी का कार्यभार संभाला है जिसके बाद से एक बार फिर से वह चर्चा में हैं. वह पाकिस्तान की पहली हिंदू महिला डीएसपी हैं. 

सिंध प्रांत के जाकूबाबाद जिले की रहने वाली 26 साल की मनीषा ने 2019 में सिंध लोक सेवा आयोग की परीक्षा दी थी. मनीषा ने एग्जाम में 16वीं रैंक हासिल की थी.

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रुपेता ने जियो न्यूज को बताया, मुझे यहां तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी, शायद औरों से ज्यादा मेहनत करनी पड़ी. कभी-कभी मुझे लगता था कि दिन ऐसे ही बीतते जाएंगे और मैं पढ़ाई के अलावा कुछ नहीं कर पाऊंगी. 

मेडिकल में करियर ना बनने पर पुलिस सेवा को चुना

रुपेता कहती हैं कि मैं हमेशा से कुछ हटकर करना चाहती थी. उन्होंने कहा, मेरी तीनों बहनों ने मेडिकल की पढ़ाई की है. मुझसे उम्मीद की जा रही थी कि मैं भी एमबीबीएस करूं लेकिन जब मैं परीक्षा पास नहीं कर पाई तो मैंने पुलिस सेवा में जाने का फैसला किया.

छिप-छिपकर तैयारी करती थीं

मनीषा का कहना है कि अपनी बहनों की तरह उन्होंने भी एमबीबीएस की परीक्षा दी थी लेकिन पास नहीं कर सकीं. इसके बाद उन्होंने फिजिकल थेरेपी की डिग्री ली. 

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मनीषा कहती हैं कि मुझे पुलिस की वर्दी बहुत भाती थी इसलिए मैं बिना किसी को बताए सिंध लोक सेवा आयोग की तैयारी छिप-छिपकर करती थी. 

महिलाओं की दयनीय स्थिति देखकर पुलिस की वर्दी चुनी

मनीषा कहती है कि पाकिस्तान में आमतौर पर महिलाएं पुलिस स्टेशन और अदालत जाने से हिचकती हैं. वह परिवार के किसी पुरुष सदस्य के साथ ही इन जगहों पर जाती हैं. ऐसा माना जाता है कि अच्छे परिवारों की लड़कियां पुलिस स्टेशन नहीं जाती, मैं इस धारणा को बदलना चाहती थी. पुलिस का पेशा हमेशा मुझे लुभाता था और प्रेरित करता था. मुझे हमेशा लगा कि यह पेशा समाज में महिलाओं को सशक्त करने में अहम भूमिका निभा सकता है.

पड़ोसियों की शंका

मनीषा कहती हैं कि मेरी सफलता से लोग खुश हैं. हमारे समुदाय में भी खुशी का माहौल है. पूरा देश मुझे सराह रहा है लेकिन मेरे रिश्तेदारों का कहना था कि मैं जल्द ही अपनी फील्ड बदल लूंगी और मैं यह नौकरी बहुत ज्यादा समय तक नहीं कर पाऊंगी.

वह बताती हैं, ऐसा नहीं है कि लोगों की ये राय मुझे लेकर है. पितृसत्तात्मक समाज में पुरुष सोचते हैं कि सिर्फ वही इस पेशे में जा सकते हैं. यह उनकी सोच हो सकती है लेकिन आने वाले सालों में इन लोगों की राय बदलेगी. हो सकता है कि इनमें से ही किसी की बेटी पुलिस सेवा में भर्ती हो जाए.

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13 साल की उम्र मे पिता का निधन और संघर्ष

कविताओं में रुचि रखने वाली मनीषा रुपेता के लिए यह सफर इतना आसान नहीं था. जब वह महज 13 साल की थी तो उनके पिता का इंतकाल हो गया था. पिता के निधन के बाद उनकी मां अपने पांच बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए कराची आ गईं. उनके परिवार में मां के अलावा तीन बहनें और एक भाई है. 

मनीषा अपने संघर्ष भरे दिनों को याद कर कहती हैं कि जाकूबाबाद का माहौल उनकी पढ़ाई में सबसे बड़ी बाधा था. वहां लड़कियों को पढ़ने-लिखने नहीं दिया जाता था. लड़कियों को सिर्फ मेडिकल की पढ़ाई करने दी जाती थी. मनीषा की तीनों बहनें एमबीबीएस डॉक्टर हैं और उनका छोटा भाई भी मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है.

इससे पहले सिंध के उमरकोट जिले की पुष्पा कुमारी ने सिंध पुलिस में पहली हिंदू असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर बनकर कीर्तिमान रचा था.

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