
सोशल मीडिया पर पिछले कुछ दिनों से यह बहस छिड़ गई है कि क्या भारत ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता दे दी या देने जा रहा है? इस चर्चा के बाद अब इस मुद्दे पर विदेश मंत्रालय का बयान है. विदेश मंत्रालय (MEA) ने यह साफ किया है कि तालिबान को मान्यता देने पर भारत की क्या स्थिति है और भविष्य में क्या इस पर किसी बदलाव की संभावना है या नहीं.
बहस की शुरुआत तब हुई, जब भारत ने तालिबान के राजनयिकों को ट्रेनिंग देने का फैसला किया. समझौते के मुताबिक भारत अफगानिस्तान के राजदूतों और राजनयिक कर्मचारियों को ऑनलाइन ट्रेनिंग देगा. दरअसल, दोनों देशों के बीच 'Immersing With Indian Thoughts' नामक पाठ्यक्रम को लेकर यह समझौता हुआ. इसके बाद ही सोशल मीडिया पर यह चर्चा होने लगी कि क्या भारत ने तालिबान सरकार को मान्यता दे दी है?
इस सवाल पर MEA ने अपने जवाब में कहा,'तालिबान शासन को मान्यता नहीं देने पर भारत की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है. विदेश मंत्रालय की प्रेस ब्रीफिंग के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा,'अफगानिस्तान में जारी डेवलपमेंट को लेकर हमारी स्थिति बिल्कुल भी नहीं बदली है.
उन्होंने आगे कहा कि इंडियन टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन प्रोग्राम (ITEC) को अन्यथा लिया जाना चाहिए. सरकार से संबंधित कोई भी लखित दस्तावेज इस प्रोग्राम का हिस्सा नहीं होगा. भारत ITEC प्रोग्राम के तहत दुनियाभर के विकासशील देशों को क्षमता बढ़ाने के लिए सहायता प्रदान करता है. बागची ने कहा कि ये छात्रवृत्ति पाठ्यक्रम कई विषयों को कवर करते हैं और कई भारतीय संस्थान इसका संचालन करते हैं. अफगानिस्तान के अलावा और भी कई देशों को लोगों के लिए यह पाठ्यक्रम खुले हैं.
अगस्त 2021 में भारत ने अफगानिस्तान में अपने दूतावास से अधिकारियों को बुला लिया था. इसके बाद अफगानिस्तान में तालिबान ने अपनी सरकार बना ली. इसके बाद से ही तालिबान अपनी सरकार को मान्यता देने के लिए चीन, भारत और पाकिस्तान सहित दुनियाभर के देशों से अपील कर चुका है. लेकिन तालिबानी शासन में अफगानिस्तान में लागू हुए कई कानूनों के कारण कोई भी देश तालिबान को मान्यता देने के लिए तैयार नहीं है.
तालिबान ने अफगानिस्तान में लड़कियों की कॉलेज में पढ़ाई को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है. इस फैसले के समय पूरी दुनिया ने तालिबान का विरोध किया था. हालांकि, तमाम विरोधों के बावजूद तालिबान ने अफगानिस्तान में इसे लागू कर दिया. इसके अलावा तालिबान ने महिला एनजीओ कार्यकर्ताओं पर भी प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी. तालिबान के इस ऐलान ऐसे एनजीओ का अफगानिस्तान में काम करना बंद हो गया, जिसे महिलाओं के लिए चलाया जाता था या फिर जिसमें महिलाएं काम करती थीं.